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________________ द्वितीयः खण्ड:-का०-२ कश्चिदेव वस्तुनो भागो गम्यते" [ ] इति । अर्थान्तरपरावृत्तदर्शनद्वारायातत्वात् बुद्धिप्रतिविम्बकमर्थान्तरपरावृते वस्तुनि भ्रान्तैस्तादात्म्येनाऽऽरोपितत्वाच्चोपचाराद् 'वस्तुनो भाग' इति व्यपदिष्टम् । ननु चार्थान्तरनिवृत्तिर्बाह्यवस्तुगतो धर्मः, सा कथं प्रतिबिम्बाधिगमे हेतुभावं करणभाव वा प्रतिपद्यते येन 'निवृत्ता' (? निवृत्त्या) इति उच्यते ? इति- उच्यते, यदि हि विजातीयाद् व्यावृत्तं वस्तु न स्याद् तदा न तत्प्रतिबिम्बकं विजातीयपरावृत्तवस्त्वात्मनाऽध्यवसीयेत । तस्मादर्थान्तरपरावृत्तेर्हेतुभावः करणभावश्च युज्यत एव । 'न चान्यरूपमन्यादृक् कुर्याद् ज्ञानं विशेषणम्' (पृ. ५७ पं० ५) इत्यादावपि यदि ह्यन्यव्यावृत्तिरभावरूपा वस्तुनो विशेषणत्वेनाभिप्रेता स्याद् तदे(दै)तत् सर्वं दूषणमुपपद्यते, यावता वस्तुस्वरूपैवान्यव्यावृत्तिर्विशेषणत्वेनोपादीयते तेन विशेषणानुरूपैव विशेष्ये बुद्धिर्भवत्येव । तथाहि- अगोनिवृत्तिों गौरभिधीयते सोऽश्वादिभ्यो यदन्यत्वं तत्स्वभावैव नान्या, ततश्च यद्यप्यसौ व्यतिरेकेणागोनिवृत्तिः 'गौः' इत्यभिधीयते भेदान्तरप्रतिक्षेपेण तन्मात्रजिज्ञासायाम् तथापि परमार्थतो गोरात्मगतैव सा यथाऽन्यत्वम् । न ह्यन्य(त्वं) नामान्यस्माद् वस्तुनोऽन्यत् अपि तु तदेव, अन्यथा तद्वस्तु ततोऽन्यन्न सिद्धयेत् । तस्मात् विशेषणभावेऽप्यन्यव्यावृत्तेविशेष्ये वस्तुधीर्भवत्येव । ने क्यों ऐसा कहा है कि - ‘अर्थान्तरव्यावृत्ति से कुछ ही वस्तु-अंश अवगत होता है ?' उत्तर : शब्द से जो अर्थप्रतिबिम्ब उत्पन्न और अवगत होता है उसी को दृष्टिसमक्ष रख कर वह कहा गया है, क्योंकि बुद्धिगत प्रतिबिम्ब का अर्थान्तरव्यावृत्तवस्तुदर्शन के बल से ही उद्भव होता है और भ्रान्त लोगों के द्वारा अर्थान्तरव्यावृत्त वस्तु में उस के प्रतिबिम्ब का अभेद आरोप किया जाता है, इसीलिये उस प्रतिबिम्ब को उपचारत: 'वस्तु का भाग' कहा गया है । प्रश्न : आप जो कहना चाहते हैं कि - उपचारत: अर्थान्तरनिवृत्ति से कुछ वस्तुभाग अवगत होता है - यहाँ अर्थान्तरनिवृत्ति जो कि बाह्यवस्तु का धर्म है, वह प्रतिबिम्ब के अवगम में हेतु या कारण कैसे बन सकती है जिस से कि आप 'अर्थान्तरनिवृत्ति से' ऐसा तृतीया विभक्ति का प्रयोग करते हैं ? उत्तर : 'वस्तु यदि विजातीयों से व्यावृत्त न होती तो उस का प्रतिबिम्ब विजातीयव्यावृत्तस्वरूप से अध्यवसित होता है वह नहीं हो सकता था। 'इस तर्क के आधार पर प्रतिबिम्ब के व्यावृत्तवस्तुरूप से होनेवाले अध्यवसाय में वस्तुधर्मभूत अर्थान्तरव्यावृत्ति भी हेतुरूप या कारणरूप मानी जा सकती है । ★ वस्तुस्वरूप अन्यव्यावृत्ति की विशेषणता* पहले जो यह कहा था (पृ० ५७-२१) कि “अभावात्मक विशेषण भावाकारावगाहि ज्ञान को उत्पन्न नहीं कर सकता''.....इत्यादि.... इस के सामने यह कहना है कि यदि हम अभावात्मक अन्यव्यावृत्ति को वस्तु का विशेषण मानते तब सभी दूषण सावकाश थे; किन्तु हम तो वस्तुरूप अन्यव्यावृत्ति को ही विशेषण बनाते हैं, अत: 'विशेषण के अनुरूप ही विशेष्यबुद्धि होती है' यह नियम भी सुरक्षित रहता है । देखिये - गोपिण्ड में अगोनिवृत्ति बतायी जाती है वह गोनिष्ठ अश्वादिभेदस्वभाव ही है । इस लिये, हालाँ कि यहाँ अन्य विशेष (अश्वादि) के निषेधमात्र की जिज्ञासा रहने पर गो में अगोनिवृत्ति अभावरूप से निरूपित की जाती है, फिर भी वह परमार्थ से तो गौ का आत्मस्वरूप ही है जैसे कि अश्वादिअन्यत्व गौ का आत्मस्वभावरूप होता है। *. 'र्या गोरभिधीयते सा' इति तत्त्वसंग्रहे पंजिकायां पृ. ३३४ पं० १५ । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003802
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages436
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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