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श्री सम्मति-तर्कप्रकरणम् वृक्षादीनाह तान् ध्वानस्तद्भावाध्यवसायिनः । ज्ञानस्योत्पादनादेतज्जात्यादेः प्रतिषेधनम् ॥ बुद्धौ येऽर्था विवर्त्तन्ते तानाह जननादयम् । निवृत्त्या च विशिष्टत्वमुक्तमेषामनन्तरम् ॥
[तत्त्व० सं० का० १०६७ तः १०७०] अस्य तात्पर्यार्थः - द्विविधो ह्यर्थः - बाह्यो बुद्धयारूढश्च । तत्र बाह्यस्य न परमार्थतोऽभिधानं शब्दैः, केवलं तदध्यवसायिविकल्पोत्पादनादुपचारादुक्तम् 'शब्दोऽर्थानाह' इति । उपचारस्य प्रयोजनं जात्यभिधाननिराकरणमिति । अवयवार्थस्तु 'अन्यान्यत्वेन' इति अन्यस्मादन्यत्वं व्यावृत्तिः तेनान्यान्यत्वेन हेतुना करणेन वा ये वृक्षादयो भावा विशिष्टा निश्चिता अन्यतो व्यावृत्त्या निश्चिता इति यावत् । एतेन 'अन्तिरनिवृत्तिविशिष्टान्' इत्यत्र पदे 'निवृत्ता' (? निवृत्त्या) इति तृतीयार्थो व्याख्यातः । 'ध्वानः' इति शब्दः । यस्तु बुद्धयारूढोऽर्थस्तस्य मुख्यत एव' शब्दरभिधानम् । 'अयम्' इति ध्वानः । अर्थान्तरनिवृत्तिविशिष्टत्वं कथमेषां योजनीयमित्याशक्य 'निवृत्त्या विशिष्टत्वमुक्तमेषामनन्तरम्' इत्युक्तम् । एषामपि बुद्धिसमारूढानामर्थानामन्यतो व्यावृत्ततया प्रतिभासनादित्यभिप्रायः ।।
ननु यदि न कश्चिदेव वस्त्वंशः शब्देन प्रतिपाद्यते तत् कथमुक्तमाचार्येण - "अर्थान्तरनिवृत्त्या
उत्तर : 'लक्षणकारने जो यह कहा है कि शब्द अर्थान्तरनिवृत्ति विशिष्ट अर्थ का प्रतिपादन करता है - उस का मतलब यह है - अर्थ के दो प्रकार हैं (१) बाह्य (२) और दूसरा बुद्धि-आरूढ । शब्द से परमार्थतः बाह्यार्थ का अभिधान नहीं होता, सिर्फ बाह्यार्थअध्यवसायी विकल्प को वह उत्पन्न करता है इसलिये उपचार से यह कहा गया है कि शब्द अर्थ का निरूपण करता है । 'उपचार से' ऐसा कहने से वास्तव में जाति के निरूपण का निषेध फलित हो जाता है।
अन्यान्यत्वेन..इत्यादि श्लोक के अवयवों का अर्थ यह है कि अन्य से अन्यत्व यानी अन्यव्यावृत्ति । हेतुरूप या कारणभूत इस अन्यव्यावृत्ति से विशिष्ट जिन वृक्षादि अर्थों का भिन्नजातीय वस्तु से सर्वथा पृथकूप में निश्चय (किसी भी तरह पहले) कर लिया गया है उन्हीं वृक्षादि का शब्द से निरूपण होता है क्योंकि शब्द उसी भाव के अध्यवसायी ज्ञान को उत्पन्न करता है । इस श्लोकावयव से यह अर्थ स्पष्ट होता है जो 'अर्थान्तरनिवृत्तिविशिष्टानर्थान्' इस आचार्यवचन में निवृत्ति-पद की लुप्त तृतीया विभक्ति से प्रतिपादित है । श्लोक में 'ध्वान' शब्द का अर्थ है 'शब्द' । जो अर्थ बुद्धि-आरूढ है उस का तो मुख्य से ही (न कि उपचार से) शब्द द्वारा निरूपण होता है । श्लोक में 'अयम्' शब्द से 'ध्वान' का परामर्श समझना । अब यह शंका हो कि यहाँ अर्थान्तरनिवृत्तिवैशिष्ट्य' का योजन (जो कि पहले आशंकित था) वह कैसे फलित हुआ ? तो इस का उत्तर देने के लिये 'निवृत्त्या विशिष्टत्वमुक्तमेषामनन्तरम्' यह श्लोका कहा है । उस का यह तात्पर्य है कि बुद्धिसमारूढ अर्थों का अन्यव्यावृत्तरूप से स्पष्ट ही प्रतिभास शब्दों से होता है।
सारांश, शब्द बाह्यार्थों का अन्यव्यावृत्तिविशिष्ट रूप से प्रतिपादन करता है- यह उपचार से कहा जाता है । और वास्तव में शब्द अन्यव्यावृत्तिविशिष्ट बुद्धिसमारूढ अर्थों का ही निरूपण करता है । यहाँ व्यावृत्तिरूप अपोह अभावात्मक नहीं किन्तु बुद्धिआरूढ अर्थस्वरूप होने से कोई दोष नहीं है ।
★ शब्द द्वारा वस्तु-अंश का अवबोध कैसे ?* प्रश्न : जब आप कहते हैं – शब्द कोई भी बाह्य वस्तु अंश का निरूपण नहीं करता तो फिर आचार्य
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