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________________ [३३४] अभिक्खणं कोही हवइ , पबंधं च पकुव्वई मेत्तिज्जमाणो वमइ , सुयं लभ्रूण मज्जई ।। [३३५] अवि पावपरिक्खेवी, अवि मित्तेसु कुप्पई । सुप्पियस्सावि मित्तस्स , रहे भासइ पावयं ।। [३३६] पइण्णवाई दुहिले , थद्धे लुद्धे अ निग्गहे । अज्झयणं-११ । - - - - - - असंविभागी अवियत्ते , अविनीए [३३७] अह पन्नरसहिं ठाणेहिं , सुविनीए त्ति वुच्चई नीयावित्ती अचवले , अमाई अकुऊहले ।। [३३८] अप्पं च अहिक्खिवई , पबंधं च न कुव्वई मेत्तिज्जमाणो भयई , सुयं ल न मज्जई ।। [३३९] न य पावपरिक्खेवी , नय मित्तेसु कुप्पई अप्पियस्सावि मित्तस्स , रहे कल्लाण भासई ।। [३४०] कलहडमरवज्जए, बुद्धे अ अभिजाइए हिरिमं पडिसंली ने, सुविनीए त्ति वुच्चई ।। [३४१] वसे गुरकूले निच्चं , जोगवं उवहाण पियंकरे पियवाई , से सिक्खं लडुमरिहई ।। [३४२] जहा संखं मि पयं निहियं दुहओ वि विरायइ एवं बहुस्सुए भिक्खू , धम्मो कित्ती तहा सुयं ।। [३४३] जहा से कं बोयाणं, आइण्णे कं थए सिया आसे जवेण पवरे , एव हवइ बहुस्सुए ।। [३४४] जहाऽऽइण्णसमारूढे, सूरे दढपरक्कमे उभओ नं दिघोसेणं, एवं हवइ बहुस्सुए || [३४५] जहा करेणुपरिकिण्णे , कुंजरे सद्विहायणे बलवंते अप्पडिहए , एवं हवइ बहुस्सुए ।। [३४६] जहा से तिक्खसिंगे , जायखंधे विरायई वसहे जुहाहिवई , एवं हवइ बहुस्सुए || [३४७] जहा से तिक्खदाढे , उदग्गे दुप्पहंसए सीहे मियाण पवरे , एवं हवइ बहुस्सुए ।। [३४८] जहा से वासुदेवे , संखचक्कगयाधरे अप्पडिहयबले जोहे , एवं हवइ बहुस्सुए || [३४९] जहा से चाउरं ते, चक्कवट्टी महि इढिए चउद्दसरयणाहिवई, एवं हवइ बहुस्सुए || [३५०] जहा से सहस्सक्खे , वज्जपाणी पुरं दरे सक्के दिवाहिवई , एवं हवइ बहुस्सुए || - - - _ । । । दीपरत्नसागर संशोधितः] [24] [४३-उत्तरज्झयण]
SR No.003785
Book TitleAgam 43 Uttarjjhayanam Chauttham Mulsuttam Mulam PDF File
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2012
Total Pages112
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 43, & agam_uttaradhyayan
File Size2 MB
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