________________
[३५१] जहा से तिमिरविद्धंसे , उच्चिटुंते दिवायरे ।
जलंते व तेएण , एवं हवइ बहुस्सुए || [३५२] जहा से उडुवई
चं दे, नक्खत्तपरिवारिए । पडिपुण्णे पुण्णमासीए , एवं हवइ बहुस्सुए || [३५३] जहा से सामाइ यंगाणं, कोट्ठागारे सुरक्खिए ।
अज्झयणं-११
स
।
।
नानाधन्नपडिपुण्णे, एवं हवइ बहुस्सुए ।। [३५४] जहा सा दुमाण पवरा , जंबू नाम सुदंसणा
अनाढियस्स देवस्स , एवं हवइ बहुस्सुए || [३५५] जहा सा नईण पवरा , सलिला सागरंगमा
सीया नीलवं तपवहा, एवं हवइ बहस्सुए || [३५६] जहा से नगाण पवरे , सुमहं मं दरे गिरी
नानोसहिपज्जलिए, एवं हवइ बहुस्सुए || [३५७] जहा से सयंभुरमणे , उदही अक्खओदए
नानारयणपडिपुण्णे, एवं हवइ बहुस्सुए || [३५८] समुद्दगंभीरसमा दुरासया
अचक्किया केणइ दुप्पहंसया सुयस्स पुण्णा विउलस्स ताइणो
खवित्तु कम्मं गइम्त्तमं गया || [३५९] तम्हा सुयमहिद्विज्जा , उत्तमट्ठगवेसए जेणप्पाणं परं चेव , सिद्धि संपाउणेज्जासि || त्ति बेमि
• इक्कारसमं अज्झयणं सम्मत्तं . . बारसमं अज्झयणं - हरिएसिज्ज .
।
[३६०] सोवागकुलसंभूओ, गुणुत्तरधरो मु नी ।
हरिएसबलो नाम , आसि भिक्खू जिइं दिओ ।। [३६१] इरिएसणभासाए, उच्चारसमिईसु य
जओ आयाणनिक्खेवे , संजओ सुसमाहिओ ।। [३६२] मनगुत्तो वयगुत्तो , कायगुत्तो जिइं दिओ ।
भिक्खट्ठा बं भइज्जमि, जन्नवाडे उव विओ ।। [३६३] तं पासिऊणं एज्जं तं, तवेण परिसोसियं ।
पंतोवहिउवगरणं, उवहसंति अ नारिया ।। [३६४] जाईमयपडिथद्धा, हिंसगा अजिइं दिया ।
अबंभचारिणो बाला , इमं वयणमब्बवी ।। [३६५] कयरे आगच्छड़ दित्तरूवे ? काले विकराले फोक्कनासे ।
दीपरत्नसागर संशोधितः]
[25]
[४३-उत्तरज्झयणं]