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________________ ० मुनि दीपरत्नसागरेण संशोधितः सम्पादित्तश्च पढमो वक्खारो समत्तो ० बीओ-वक्खारो । [२२] जंबुद्दीवे णं भंते दीवे भारहे वासे कतिविहे काले पन्नत्ते गोयमा दुविहे काले पन्नत्ते तं वक्खारो-२ जहा- ओसप्पिणिकाले य उस्सप्पिणिकाले य ओसप्पिणिकाले णं० छव्विहे सुसमसुमाकाले सुसमाकाले सुसमदुस्समाकाले दुस्समसुसमाकाले दुस्समाकाले दुस्समदुस्समाकाले उस्सप्पिणिकाले० छविहे दुस्समदुस्समाकाले जाव सुसमसुसमाकले एगमेगस्स णं भंते मुहत्तस्स केवइया उस्सासद्धा विआहिया गोयमा असंखेज्जाणं समयाणं समुदय-समिइ-समागमेणं सा एगा आविलिअत्ति वुच्चइ संखेज्जाओ आवलियाओ ऊसासो संखेज्जाओ आवलियाओ नीसासो । [२३] हदुस्स अणवगल्लस्स निरुवकिट्ठस्स जंतुणो । एगे ऊसासनीसासे एस पाणुत्ति वुच्चई । [२४] सत्त पाणूई से थोवे सत्त थोवाइं से लवे । लवाणं सत्तहत्तरीए एस मुहत्तेति आहिए । [२५] तिण्णि सहस्सा सत्त य सयाइं तेवत्तरिं च ऊसासा ____एस मुहुत्तो भणिओ सव्वेहिं अनंतनाणीहिं । [२६] एएणं मुहत्तप्पमाणेणं तीसंमुहता अहोरत्ते पन्नरसअहोरत्ता पक्खो दोपक्खा मासोदोमासा उदू तिण्णि उदूअयणे दोअयणा संवच्छरे पंचसंवच्छरिए जुगे वीसंजुगाइं वाससए दस वाससयाई वाससहस्से पर्यवाससहस्साणं वाससयसहस्से चउरासीइंवाससयसहस्साइं से एगे पुव्वंगे चउरासीईपुव्वंगसयसहस्साइं से एगे पुव्वे एवं बिगुणं बिगुणं नेयव्वं-तुडियंगे तुडिए अडडंगे अडडे अववंगे अववे हुहुयंगे हुहुए उप्पलंगे उप्पले पउमंगे पउमे नलिणंगे नलिणे अत्थि णिउरंगे उत्थिनिउरे अउयंगे अठए नउयंगे नए पउयंगे पठए चूलियंगे जाव चउरासीइं सीसपहेलियंगसयसहस्साइं सा एगा सीसपहेलिया एतावताए गणिए एतावताव गणियस्स विसए तेणं परं ओवमिए | [२७] से किं तं ओवमिए ओवमिए दविहे पलिओवमे य सागरोवमे य पलिओवमस्स परूवणं करिस्सामि-परमाणू दुविहे पन्नत्ते तं जहा- सुहमे य वावहारिए य अनंताणं सुहमपरमाणुपोग्गलाणं समुदयसमिइ-समागमेणं वावहारिए परमाणू निप्फज्जइ तत्थ नो सत्थं कमइ- | [२८] सत्थेणं सुतिक्खेणवि छेत्तु भित्तुं च जं किर न सक्का तं परमाणुं सिद्धा वयंति आदि पमाणाणं । [२९] अनंताणं वावहारियपरमाणूणं समुदय-समिइ-समागमेणं सा एगा उस्सण्हसण्हिआइ वा सण्हसण्हियाइ वा उद्धरेणूइ वा तसरेणूइ वा रहरेणूइ वा वलग्गेइ वा लिक्खाइ वा जूयाइ वा जबमज्झेइ वा उस्सेहंगुलेण वा अट्ठ उस्सण्हसण्हियाओ सा एगा सण्हसण्हिया अट्ठ सण्हसण्हियाओ सा एगा उद्धरेणू अटठ दीपरत्नसागर संशोधितः] [8] [१८-जंबूद्दीवपन्नत्ति]
SR No.003735
Book TitleAgam 18 Jambudivpannatti Sattam Uvvangsuttam Mulam PDF File Without Correction
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2013
Total Pages122
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 18, & agam_jambudwipapragnapti
File Size2 MB
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