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________________ सतं-१८, वग्गो- ,सत्तंसत्तं- , उद्देसो-५ 0 पंचमो उद्देसो 0 [७३६] दो भंते! असुरकुमारा एगंसि असुरकुमारावासंसि असुरकुमारदेवत्ताए उववन्ना। तत्थ णं एगे असुरकुमारे देवे पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे, एगे असुरकुमारे देवे से णं नो पासादीए नो दरिसणिज्जे नो अभिरूवे नो पंडिरूवे, से कहमेयं भंते! एवं? गोयमा! असुरकुमारा देवा विहा पन्नता, तं जहा--वेठव्वियसरीरा य अवेठब्वियसरीरा य। तत्थ णं जे से वेठव्वियसरीरे असुरकुमारे देवे से णं पासादीए जाव पडिरूवे। तत्थ णं जे से अवेठव्वियसरीरे असुरकुमारे देवे से णं नो पासादीए जाव नो पडिरूवे। से केणठेणं भंते! एवं वुच्चइ तत्थ णं जे से वेठव्वियसरीरे0 तं चेव जाव नो पडिरूवे'? गोयमा! से जहानामए इहं मणुयलोगंसि दुवे पुरिसा भवंति--एगे पुरिसे अलंकियविभूसिए, एगे पुरिसे अणलंकियविभूसिए; एएसि णं गोयमा! दोण्हं पुरिसाणं कयरे पुरिसे पासादीये जाव पडिरूवे? कयरे पुरिसे नो पासादीए जावन नो पडिरूवे? जे वा से पुरिसे अलंकियविभूसिए, जे वा से पुरिसे अलंकियविभूसिए? भगवं! तत्थ णं जे से पुरिसे अलंकियविभूसिए से णं पुरिसे पासादीये जाव पडिरूवे, तत्थ णं जे से पुरिसे अणलंकियविभूसिए से णं पुरिसे नो पासादीए जाव नो पडिरूवे'। सेतेणढेणं जाव नो पडिरूवे। दो भंते! नागकुमारा देवा एगंसि नागकुमारावासंसि0? एवं चेव। एवं जाव थणियकुमारा। वाणमंतर-जोतिसिय-वेमाणिया एवं चेव। [७३७] दो भंते! नेरइया एगंसि नेरतियावासंसि नेरतियत्ताए उववन्ना। तत्थ णं एगे नेरइए महाकम्मतराए चेव जाव महावेदणतराए चेव, एगे नेरइए अप्पकम्मतराए चेव जाव अप्पवेदणतराए चेव, से कहमेयं भंते! एवं? गोयमा! नेरइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा--मायिमिच्छद्दिट्ठिउववन्नगा य, अमायिसम्मद्दिछिउववन्नगा य। तत्थ णं जे से मायिमिच्छद्दिट्ठिठववन्नए नेरतिए से णं महाकम्मतराए चेव जाव महावेदणतराए चेव, तत्थ णं जे से अमायिसम्मद्दिट्ठिउववन्नए नेरइए से णं अप्पकम्मतराए चेव जाव अप्पवेदणतराए चेव। दो भंते! असुरकुमारा0? एवं चेव। एवं एगिंदिय-विगलिंदियवज्जा जाव वेमाणिया। [७३८]नेरइए णं भंते! अणंतरं उव्वटिता जे भविए पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जितए से णं भंते! कयरं आठयं पडिसंवेदेति? गोयमा! नेरइयाउयं पडिसंवेदेति, पंचेंदियतिरिक्खजोणियाउए से पुरओ कडे चिट्ठ। एवं मणुस्सेसु वि, नवरं मणुस्साए से पुरतो कडे चिट्ठति। असुरकुमारे णं भंते! अणंतरं उव्वटिता जे भविए पुढविकाइएसु उववज्जित्तए0 पुच्छा। गोयमा! असुरकुमाराठयं पडिसंवेदेति, पुढविकाइयाउए से पुरतो कडे चिट्ठ।। एवं जो जहिं भविओ उववज्जित्तए तस्स तं पुरतो कडं चिट्ठति, जत्थ ठितो तं पडिसंवेदेति जाव वेमाणिए। नवरं पुढविकाइओ पुढविकाइएसु उववज्जंतओ पुढविकाइयाउयं पडिसंवेदेति, अन्ने य से पुढविकाइयाउए पुरतो कडे चिट्ठति। एवं जाव मणुस्सो सट्ठाणे उववातेयव्वो, परट्ठाणे तहेव। [७३९]दो भंते! असुरकुमारा एगंसि असुरकुमारावासंसि असुरकुमारदेवत्ताए उववन्ना। तत्थ [दीपरत्नसागर संशोधितः] [370] [५-भगवई
SR No.003709
Book TitleAgam 05 Bhagavai Panchamam Angsuttam Mulam PDF File
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2012
Total Pages565
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size5 MB
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