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पिताजी ने उपाध्याय का सम्मान वस्त्र, अलंकार, नारियल से किया। पाठशाला के सब बच्चों को सामूहिक भोज दिया। फिर तीन ज्ञान के धारक प्रभु वर्धमान को सांसारिक पाठशाला में छोड़ आये। उन्होंने पाठशाला को राजकुमार के योग्य बनवाया। इसका लाभ पाठशाला के हर बच्चे को हुआ। __ माता-पिता जब वर्धमान को अध्ययन के लिए भेज रहे थे, तभी इन्द्र का सिंहासन कंपायमान हुआ। उसने अवधिज्ञान से देखा-"तीन ज्ञान के धारक अंतिम तीर्थंकर को पाठशाला में भेजा जा रहा है।" इन्द्र ने उसी समय वृद्ध ब्राह्मण का रूप बनाया फिर पाठशाला में आ गया।
उसने कहा- “उपाध्याय जी ! मेरे कुछ प्रश्न व्याकरण संबंधी है। अगर आप समाधान कर दें, तो मैं ऋणी रहूँगा।"
इन्द्र वेशधारी ब्राह्मण ने प्रश्न किये। बालक वर्धमान ने सभी प्रश्नों का उत्तर एक बार में ही दे डाला, जबकि उनके गुरु तक ने यह प्रश्न सुने नहीं थे। इन्द्र ने उन्हीं प्रश्नों को 'इन्द्र व्याकरण' का नाम दिया। ___ जब उपाध्याय ने इस बालक को देखा तो हतप्रभ रह गये। उन्होंने कहा-“तू तो जन्मजात ज्ञानी है। तुम्हें पढ़ाना हमारे बस की बात नहीं। वह उन्हें पहले दिन ही राजा के पास छोड़ आये।"
राजा सिद्धार्थ और महारानी त्रिशला वर्धमान की बुद्धि से प्रसन्न थे। अब वह घर आ गये।५ विवाह
भगवान महावीर के यौवन के बारे में जैनशास्त्र व इतिहासकारों ने बहुत कम लिखा है। उनके पारिवारिक जीवन में, उनके परिजनों के नामों के अतिरिक्त आचारांग, कल्पसूत्र आदि में कुछ नहीं आता। यही हाल बाद का है। इस लम्बे अंतराल में कोई घटना घटित न हुई हो यह तो असम्भव है।
श्वेताम्बर आगमों में प्रभु महावीर के श्वसुर का नाम जितशत्रु था। कलिंग नरेश समरसेन ने अपनी योग्य पुत्री कोण्डीय गोत्रीय यशोदा की शादी का प्रस्ताव राजा सिद्धार्थ के सामने रखा। सांसारिक दृष्टि से राजा प्रभु महावीर का फूफा था।
दिगम्बर ग्रंथों के अनुसार महावीर के ससुर का नाम जितशत्रु था। पर श्वेताम्बर ग्रंथों के अनुसार उनका पाणिग्रहण हुआ। यह विवाह उन्होंने माता-पिता की आज्ञा को शिरोधार्य करते हुए किया। जल में कमलवत् जीवन जीने का उदाहरण संसार के सामने रखा। विवाह का विस्तृत वर्णन जैन आचार्य ने शायद इसलिये नहीं किया कि जैनशास्त्र के रचयिता साधु थे। सभी ब्रह्मचारी थे। उन्होंने उन्हीं घटनाओं को महत्त्व दिया जो जीवन को वैराग्य की ओर ले जावें।
प्रभु महावीर ने शादी की। पर वह शादी कब, कितनी आयु में हुई इसका वर्णन नहीं मिलता है। वर्णन आता है उनकी पुत्री प्रियदर्शना के साध्वी बनने का। प्रियदर्शना का पति जमालि, जो प्रभु महावीर का भानजा भी था। भ. महावीर के केवलज्ञान के बाद साधु बनता है। साधु विचारधारा में उसने नये सिद्धांत की कल्पना की। वह ५०० साधुओं के साथ संघ से बाहर निकला। ____ अब प्रश्न है यह समय कैसे गुजरा। हमारी अपनी कल्पना है कि प्रभु जन्म से तीन ज्ञान के धारक थे इसलिए उन्हें अपना भविष्य व होने वाली घटनाओं का पर्ण ज्ञान था। वह क्षत्रिय राजकमार थे। भावी तीर्थंकर थे। उन्होंने कछ समय महल में रहकर व बाहर घूमकर, संसार में फैले ब्राह्मणवाद को करीब से जरूर देखा होगा। उनके रिश्तेदार तो सब निग्रंथों के भक्त थे। पर बड़े-बड़े राज्यों में यज्ञों का आयोजन होता था। ये यज्ञ कई-कई दिन चलते। राजा व प्रजा इनमें शामिल होती। हजारों पशु धर्म के नाम पर कत्ल हो जाते। इस हिंसा को देखकर उन्हे हिंसा के भयंकर रूप का अनुभव हुआ होगा। अज्ञानी तो हिंसा अज्ञानवश करता है। पर तथाकथित पंडित भी धर्म के नाम पर हिंसा करे। वेदमंत्रों द्वारा
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सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र
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