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लग्न
माता
त्रिशला पिता
सिद्धार्थ जन्म-स्थान
क्षत्रियकुण्डग्राम समय
ई. पू. ५९९ मास व तिथि
चैत्र त्रयोदशी नक्षत्र
उत्तर फाल्गुनी राशि
कन्या
मकर पाठकों को ध्यान रहे कि यह जन्म-कुण्डली महावीर के जीवन में नहीं बनी थी। अगर बनी होती तो राजा ने जहाँ स्वप्न-पाठकों को बुलाया था, वहाँ जन्म पर ज्योतिषियों से जन्म-कुण्डली का निर्माण करवाते। पर यह बहुत बाद की बात है। उस समय राहू-केतु ग्रहों का उल्लेख ग्रंथों में नहीं आया। आचार्य देवेन्द्र मुनि लिखते हैं-टीकाकार का यह स्थान आधारहीन है कि सात ग्रह उच्च होने पर तीर्थंकर का जन्म होता है। भगवान महावीर का परिवार विराट् था, कुल विराट् था, वंश विराट् था। उनके अपने व्यक्तित्त्व के बारे में उववाईसूत्र में सुन्दर उल्लेख मिलता है।
“उनकी आँखें पद्मकमल के समान विकसित थीं। ललाट अर्ध-चन्द्रमा के समान दीप्तियुक्त था। वृषभ के समान माँसल स्कंध थे। भुजायें लम्बी थीं। पूरा शरीर सुगठित था। सुन्दर आकार था। प्रज्ज्वलित निधूम अग्नि की शिखा के समान तेजस्वी था जिसे देखते ही मन मुग्ध हो जाता है। उनके शरीर को देखने के लिए आँखें बार-बार लालायित होती थीं। उनके दर्शन के साथ ही मन में भव्यता व प्रियता का भाव जाग पड़ता।१० उनका शारीरिक संगठन संस्थान, आकार अत्युत्तम था। उनके शरीर की प्रभा निर्मल स्वर्ण रेखा की तरह थी।१२ वह एक हजार आठ लक्षणों से युक्त था।३
भगवती सूत्र में कहा गया है-"भगवान का शरीर उदार, शृंगाररहित, अलंकाररहित होते हुए भी विभूषित, लक्षण, व्यंजन और गुण से युक्त था। अत्यंत शोभायमान था।" __ भगवान का जीव तीर्थंकर गोत्र के उपार्जन करने के कारण जन्म से तीन ज्ञान का धारक था। भगवान को अपने पूर्वभवों का ज्ञान था। मनुष्य में उनकी कान्ति और बुद्धि निराली थी। यही निराला ढंग उन्हें जनसामान्य में महान् बनाता है। महापुरुष के लक्षण अलग होते हैं, जो जन्म से ही प्रकट होने लगते हैं। ऐसा कुछ महावीर के व्यक्तित्त्व में छिपा था। उनके बाह्य दर्शन से व्यक्ति आनंदित हो जाता। उनका चेहरा चाँद की तरह चमकता था।
__ भगवान महावीर का लालन-पालन बड़े पवित्र वातावरण में हुआ। उनकी देखभाल के लिए राजा ने ५ धाय माताएँ रखीं। उनके अलग-अलग कार्य थे।
१. कोई उन्हें दूध पिलाती। २. कोई स्नान कराती। ३. कोई वस्त्र-आभूषण से सुसज्जित करती । ४. कोई उन्हें बाल-क्रीड़ाएँ करवाती।
५. कोई उन्हें गोद में बैठाती। बाल-क्रीड़ाएँ
महापुरुष का जीवन लीलाओं से भरा होता है। महापुरुष के जीवन में सब सहज घटित होता है। इन बाल-क्रीड़ाओं का सर्वप्रथम उल्लेख विशेषावश्यक भाष्य में और आवश्यकनियुक्ति में आया है जिसे बाद में आचार्यों ने विस्तृत रूप दिया।
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सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र
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