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“उच्चटाणंगएसु महेसु ।” अर्थात् सभी ग्रह उच्च स्थानों पर थे। दूसरे - “पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि ।” अर्थात् प्रभु का जन्म मध्य रात्रि में हुआ । आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी ने 'भगवान महावीर : एक अनुशीलन' ग्रंथ के पृष्ठ २५४-२६३ तक उनकी कुण्डली का विवेचन किया है। वह एक स्थान पर लिखते हैं
"इस (जैनशास्त्रों) से स्पष्ट है कि उस समय मेष आदि राशियों का प्रचलन भी नहीं था । यदि होता तो आंशिक रूप में कहीं न कहीं उल्लेख होता । "
आचारांग कल्पसूत्र के इन सूत्रों की व्याख्या कल्पसूत्र के टीकाकारों ने की है। उन्होंने ग्रहों के उच्च स्थान व अंशों का वर्णन इस प्रकार लिखा है
ग्रह
सूर्य
चन्द्रमा
मंगल
बुध
गुरु
शुक्र
शनि
राशि
मेष
वृषभ
मकर
कन्या
कर्क
मीन
तुला
अंश
१०
३
२८
१५
५
२७
२०
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१२
२
शु.
जन्म-कुण्डली - भगवान महावीर
११
१ बु. सू.
३
१०
म. के.
गु. रा.
९
७ श.
८
कल्पसूत्र किरणावली टीका पत्र में कहा गया है-सुखी, भोगी, धनी, नेता, मण्डलपति, नृपति और चक्रवर्ती क्रमशः उच्च ग्रहों के प्रभाव के कारण होते हैं
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चं.
(१) तीन ग्रह उच्च होने पर नरेन्द्र होता है।
(२) पाँच ग्रह उच्च होने पर अर्ध चक्रवर्ती होता है।
(३) छह ग्रह उच्च होने पर चक्रवर्ती का भोग भोगता है।
(४) सात ग्रह उच्च होने पर तीर्थंकर होता है।
(५) यदि एक भी ग्रह उच्च हो तो वह व्यक्ति महान् उन्नति करता है। यदि दो-तीन ग्रह उच्च हों तो वह महान् उन्नति करता है। कल्पसूत्र में राहु व केतु का उल्लेख नहीं है।
आचार्य देवेन्द्र मुनि इस कुण्डली के विवेचन से पूर्ण सहमत नहीं लगते। वह अपने ग्रंथ 'महावीर : एक अनुशीलन' के पृष्ठ २६१ पर लिखते हैं
"इस पद्धति से भगवान महावीर के जन्मकालीन ग्रहों में चन्द्रमा और बुध दोनों ग्रह निश्चित रूप से उच्चतम नहीं हैं।" वह टीकाकार के इस कथन से भी सहमत नहीं किसात ग्रह उच्च होने पर तीर्थंकर का जन्म होता है।
वर्तमान में विभिन्न लेखकों ने ज्योतिष के आधार पर निम्न प्रकार की जन्म कुण्डली बनाई है। इसका विवेचन हम अपने विज्ञ पाठकों पर छोड़ेंगे। क्योंकि महावीर जैसे व्यक्ति की महानता ज्योतिष से ज्यादा उनके उपदेश में है। उनकी वह क्रान्ति है कि जो उन्होंने बिना किसी के सहारे संसार के सामने रखी। दासता, अस्पृश्यता, यज्ञ, वेद, पशुबलि को दूर करना किसी के वश का कार्य नहीं था । उन्होंने मानवता के लिये अपना राजसुख, परिवार एक झटके में त्याग दिया।
सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र
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