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________________ "नगर में सभी स्थानों पर सफाई करवाओ। सफाई के बाद सुगन्धित द्रव्य का छिड़काव करो। " “राजमार्गों को सजाया जाये। मुख्य मार्ग पर मंच इस ढंग से बनाया जाये कि लोग दूर से राजसी समारोह को देख सकें। दीवारों पर सफेदी करवा दो और उन पर मंगल सूत्रकथाएँ लगाओ। शहर में सभी नाटक - मण्डली, नृत्य-मण्डलियाँ, रस्सी पर खेलने वाले, कुश्ती और मुष्टि-युद्ध करने वालों को, विदूषकों को, बन्दर के समान उछल-कूद करने वालों को, गड्ढे फाँदने वालों को, नदी तैरने वालों को, कथा वाचकों को, रास करने वालों को, बाँस पर चढ़कर खेल दिखाने वालों को, हाथ में चित्र लेकर भिक्षा माँगने वाले मंखों को, तूण नाम का वाद्य बजाने वालों को, वीणा, मृदंग व तालियाँ बजाने वालों को सुसज्जित करो। उन्हें त्रिक, चतुष्पथ (चौक) व चवर आदि में अपनी कला का प्रदर्शन करने की राजाज्ञा सुनाओ।" राजाज्ञा से लगता है कि राजा सिद्धार्थ स्वतन्त्र राज्य के एकछत्र स्वामी थे । वे राज्य की राजधानी में इतना कुछ करने का आदेश देते हैं। उनकी अपनी स्वतन्त्र सत्ता थी । जैसे कैदियों को छोड़ना, ऋण आदि खत्म करने का आदेश प्रमुखतः सम्पन्न राज्य के लक्षण हैं। वे कोई मामूली राजा या सामन्त नहीं थे। जैसे कि पश्चिमी विद्वानों का मत रहा है कि राजा सिद्धार्थ मामूली सामंत थे। कल्पसूत्र में उन्हें स्पष्ट राजा कहा गया है। कल्पसूत्र जैनधर्म का प्राचीन लिखि प्रमाण है जिसमें २४ तीर्थंकरों का वर्णन है। उसके बाद राजा व्यायामशाला में जाते हैं। दैनिक चर्या सम्पन्न करते हैं । फिर सजधजकर राजसभा में आते हैं । आनन्द और उल्लास के मधुर क्षणों में १० दिन के महोत्सव की घोषणा करते हैं जिसका नाम 'स्थित पतित' महोत्सव था। तीसरे दिन बालक को चन्द्र-सूर्य के दर्शन करवाये गये। छठे दिन रात्रि जागरण हुआ । नामकरण संस्कार बारहवें दिन नामकरण संस्कार हुआ। उस दिन राजा सिद्धार्थ ने अपने इष्ट मित्रों, स्वजनों, स्नेहियों व भृत्यों को आमन्त्रित कर भोजन, पानी, अलंकारों से सबका सत्कार किया । सब लोग प्रसन्न थे । उन सभी के मध्य राजा सिद्धार्थ ने घोषणा की - "जिस दिन से यह बालक गर्भ में आया है हमारे राज्य - परिवार में हर प्रकार की वृद्धि होती जा रही है इसलिए हम इसका नाम वर्द्धमान रखेंगे ।" राजा सिद्धार्थ की बात का सब लोगों ने हर्ष-ध्वनि से स्वागत किया। राज्य - परिवार व अधिकारी वर्ग प्रभु महावीर के पिता के तीन नाम आचारांग व कल्पसूत्र में प्राप्त होते हैं(१) यशस्वी, (२) श्रेयांस, (३) सिद्धार्थ । महारानी त्रिशला जो विदेह देश वैशाली की सुपुत्री थीं उनके भी तीन नाम आये हैं(१) विदेहदिन्ना, (२) प्रियकारिणी, (३) त्रिशला । राजा सिद्धार्थ के लिए नरेन्द्र और क्षत्रिय शब्दों का प्रयोग हुआ है । कल्पसूत्र के अनुसार उनके दरबार में ये पदाधिकारी थे। गणनायक, दण्डनायक, युवराज, तलवर, माण्डलिक, कौटुम्बिक, मंत्री, महामंत्री, गणक, दैवारक, अमात्य, वीर, पीठमर्दक, नागर, निगम, कोठरी, सेनापति, सार्थवाह, दूत, संधिपाल । आचार्य देवेन्द्र मुनि जी ने अपने ग्रन्थ 'भगवान महावीर : एक अनुशीलन' में पश्चिमी विद्वानों की कड़ी आलोचना की है कि वह बिना किसी कारण के राजा सिद्धार्थ को सामन्त लिखते हैं। वह लिखते है - "यदि सिद्धार्थ साधारण क्षत्रिय होता तो क्या वैशाली का महान् प्रतापी चेटक, जो १८ देशों का प्रमुख भी था, उनसे अपनी प्रिय बहिन त्रिशला की शादी करता । त्रिशला भी एक सामान्य क्षत्रियाणी नहीं थी, वह भी महारानी थी।" Jain Educationa International सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र For Personal and Private Use Only ४७ www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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