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________________ उनके बड़े भैया नन्दीवर्द्धन थे। बहिन सुदर्शना थी। पत्नी यशोदा थी। भगवान की पुत्री प्रियदर्शना थी। भगवान के ससुर कलिंग सम्राट सामन्तसेन थे। उनकी एक नातिनी भी हुई। दिगम्बर साहित्य में सामन्तसेन के स्थान पर जितशत्रु नाम मिलता है और यशोदा द्वारा दीक्षा ग्रहण करने का वर्णन है। भगवान का परिवार बहुत आदर्श परिवार था। वहाँ किसी किस्म का तनाव नहीं था। सभी प्यार से रहते थे। सभी वर्द्धमान को जी-जान से चाहते थे। प्रभु वर्द्धमान के प्रसिद्ध नाम निम्न हैं वर्द्धमान-यह नाम उनके माता-पिता द्वारा प्राप्त हुआ जिसका वर्णन हम पीछे कर आये हैं। दिगम्बर पुराणों के अनुसार “वर्द्धमान" और "वीर" नाम इन्द्र द्वारा दिया गया है। महावीर-जगत् प्रसिद्ध "महावीर' नाम इन्द्र द्वारा प्रभु को दिया गया है। क्योंकि किसी अन्य तीर्थंकर के जीवन में व साधना में इतने परीषह नहीं आये जितने भगवान महावीर के जीवन में आये। उन्हें शान्त भाव से जैसे उन्होंने सहा, उसका उदाहरण कहीं उपलब्ध नहीं है। बचपन में देव को हराने के कारण इन्द्र ने उन्हें 'महावीर' नाम दिया। सन्मति-दिगम्बर उत्तरपुराण में इस नाम की एक कथा है-“एक बार संजय और विजय दो आकाशगामी चारण मुनियों के मन में किसी तत्त्व के प्रति शंका उत्पन्न हुई। वह ज्यों ही भगवान के पालने के निकट आये उनकी शंका जाती रही।" तभी से सन्मति (अच्छी बुद्धि) यह नाम प्रसिद्ध हुआ। काश्यप-यह भगवान महावीर का कुल था। बहुत से तीर्थंकरों का गोत्र काश्यप रहा है। उनका वंश इक्ष्वाकु था। ज्ञातपुत्र-कल्पसूत्र में नाय, नायपुत्त, नायकुलचन्द्र, विदेह, विदेहदिन्न, विदेहजच्च और विदेहसुमाल नाम आये हैंये विशेषण हैं पहले तीन पितृ पक्ष के हैं। अगले तीन मातृ पक्ष के हैं। यह नाम जैन आगमों व बौद्ध ग्रंथों में भगवान महावीर को अन्य धर्मनायकों से अलग करता है। जैन आगमों में यह नाम बहुत प्रसिद्ध है। विदेह-भगवान की माता विदेह देश की थी। पिछले जमाने में एक राजा के कई रानियाँ होती थीं। वह अपनी संतान को अपने देशों की पहचान देती थीं। वैशालिक-यह नाम उत्तराध्ययनसूत्र में आया है। इसके टीकाकार ने कहा है प्रभु वैशालिक इसलिए कहलाये क्योंकि उनका कुल विशाल था। उनकी माता वैशाली नरेश चेटक की बहिन थीं। इसलिये वह वैशाली से संबंधित हो गये। प्रस्तुत अध्ययन में प्रभु के जन्माभिषेक का हमने संक्षिप्त वर्णन कल्पसूत्र व उसकी टीका के आधार पर किया है। यह विवरण प्राचीन आचारांग में कम मिलता है। वस्तुतः आगमों में कहीं भी प्रभु का जीवन व्यवस्थित ढंग से उपलब्ध नहीं था। इस कमी को सर्वप्रथम आचार्य भद्रबाहु स्वामी ने अनुभव किया। उन्होंने आगम परम्परा को सामने रख प्रभु जीवन को सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया। आवश्यकनियुक्ति, भाष्य, चूर्णि में २४ तीर्थंकरों के बारे में अच्छा वर्णन आया है। इन नामों में वर्द्धमान और महावीर ही प्रचलित हैं। बाकी नाम तो शास्त्रों तक ही सीमित हैं, जनसाधारण इन्हें नहीं जानता। प्रभु महावीर की जन्म-कुण्डली _ज्योतिष का विषय बहुत ही विस्तृत और गंभीर है। मूल आगमों में और कल्पसूत्र में प्रभु की जन्म-कुण्डली उपलब्ध नहीं होती। वैसे आचारांगसूत्र के द्वितीय श्रुतस्कंध में उल्लेख है-ग्रीष्म ऋतु के प्रथम मास दूसरा पक्ष-चैत्र सुदी त्रयोदशी को हस्तोत्तरा अर्थात् उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र का योग होने पर श्रमण भगवान महावीर का जन्म हुआ। ___इन उल्लेखों से वर्तमान में प्रचलित राशियों का वर्णन नहीं है। इसके बाद जैन आचार्य भद्रबाहु ने मात्र ग्रहों के बारे में उल्लेख किया है। | ४८ ४८ सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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