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________________ पर जल्द ही सब सामान्य हो गया। भगवान महावीर के जीव से अपनी माता का शोक देखा न गया। उन्होंने गर्भ में यह प्रतिज्ञा की कि जब तक मेरे माता-पिता जीवित रहेंगे, तब तक मैं साधु नहीं बनूँगा। कुछ समय के पश्चात् महावीर के जीव ने हिलना-डुलना शुरू किया। माता के चेहरे पर मुस्कराहट दौड़ आई। यह घटना महावीर के गर्भ में आने के साढ़े छह महीने की है। इस घटना का महावीर के जीव पर गहरा असर हुआ। 'अभी तो मैं गर्भ में हूँ, माँ ने मेरा मुँह नहीं देखा, फिर भी माता को मेरे से इतना मोह है। जब मैं उनके जीवनकाल में साधु बनूँगा तो कितना दुःख होगा।'-यही सोच भगवान ने गर्भ में प्रतिज्ञा धारण की। ___ इस घटना का वर्णन कल्पसूत्र, आवश्यकचूर्णि, चउपन्नमहापुरिसचरियं, महावीरचरियं, त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र, विशेषावश्यकभाष्य में उपलब्ध होता है। पर आचारांग, आवश्यकनियुक्ति, पउमचरियं व दिगम्बर ग्रन्थों में इसका वर्णन नहीं मिलता है। ___ इस प्रकार रानी त्रिशला ने महावीर के जीव को वात्सल्य भाव से पाला। जब भगवान का जीव गर्भ में आया। धन-धान्य की वृद्धि होने लगी। शक्रेन्द्र के आदेश से वैश्रमण जृम्भक देवों के द्वारा अटूट धन राजा सिद्धार्थ के भण्डार में पहुंचाया गया। गर्भ-धारण के ६ मास पूर्व ही देवगण ने तीर्थंकर के माता-पिता के राजप्रासाद पर रत्नों की वृष्टि करनी शुरू कर दी। रानी त्रिशला का दोहद ___ गर्भ के समय माता त्रिशला को कई दोहद उत्पन्न हुए जैसे कि मैं अपने हाथों से दान दूं। सद्गुरु को आहार प्रदान करूँ। देश में अमारि की घोषणा करवाऊँ। समुद्र, चन्द्र और पीयूष का पान करूँ, उत्तम वस्त्र धारण करूँ। ___ कल्पसूत्र की कल्पलता वृत्ति के अनुसार त्रिशला रानी को यह दोहद उत्पन्न हुआ कि मैं इन्द्राणी के कुण्डल पहनूँ। यह दोहद पूरा होना असम्भव था। दोहद पूरा न होने के कारण वह दुःखी रहने लगी। इन्द्र का आसन कम्पित हुआ। उसने अवधिज्ञान से जाना। अपनी शक्ति से दिव्य नगर का निर्माण पर्वत पर किया। वह वहाँ सपरिवार रहने लगा। राजा सिद्धार्थ को ज्ञात होने पर वह ससैन्य इन्द्र के पास आया और कुण्डलों की याचना की। इन्द्र ने उन कुण्डलों को देने से इन्कार किया। दोनों राजाओं में युद्ध हुआ। इस युद्ध में इन्द्र जानबूझकर हार गया। किले पर सिद्धार्थ का अधिकार हो गया। इन्द्राणी के कानों के कुण्डल छीनकर रानी का दोहद पूरा हुआ। जन्म और उत्सव श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है-“मासानां मधुमासोस्मि।"-मैं महीनों में माधव मास-चैत्र हूँ और ऋतुओं में बसन्त। आज से २६०० वर्ष पूर्व इसी तरह का मास था। भारत में भगवान ऋषभदेव, पवन पुत्र हनुमान भगवान राम व भगवान महावीर का जन्म इसी मास में हुआ था। ___कल्पसूत्र में आचार्य भद्रबाहु स्वामी ने कहा है- “नौ महीने साढ़े सात दिन पूर्ण होने पर हस्तोत्तरा नक्षत्र के योग में त्रिशला क्षत्रियाणी ने आरोग्यपूर्वक पुत्र को जन्म दिया। वह देवताओं की भाँति जरायु-रुधिर व मल से रहित थे। उनके जन्म पर सारा संसार प्रकाश से जगमगा उठा था। शीतल, मन्द, सुगन्धित, दक्षिण पवन चल रहा था। सभी दिशाएँ शान्त और विशुद्ध थीं। शकुन जय-विजय के सूचक थे।" देवों द्वारा जन्म-महोत्सव ___भगवान महावीर के जन्म के समय छप्पन दिक्कुमारियाँ अपनी परम्परा अनुसार सूतिका कर्म हेतु आईं। उन्होंने जन्म-महोत्सव मनाया और अपने स्थान पर चली गईं। सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र ४५ | ४५ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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