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समान योग्य आकृति वाला, कान्त प्रियदर्शी और सुरूप पुत्र को वह जन्म देगी। वह पुत्र लक्षणों और व्यंजनों से युक्त होगा। शैशव समाप्त कर परिपक्व ज्ञान वाला होगा, जब वह यौवन में प्रवेश करेगा तो दानवीर, पराक्रमी और चारों दिशाओं का अधिशास्ता, चक्रवर्ती या चार गति का अन्त करने वाला तीर्थंकर होगा।
महारानी त्रिशला के स्वप्नों का फल
स्वप्न
फल
(१) गज
वह चार प्रकार के तीर्थ साधु, साध्वी, श्रावक व श्राविका की स्थापना करेगा। (२) वृषभ बोधिबीज वपन करेगा। (३) सिंह वह सिंह की भाँति कामवासना का नाश कर संसार में भटकते प्राणी की रक्षा करेगा। (४) लक्ष्मी वह एक वर्ष दान करके तीर्थंकर पद प्राप्त करेगा। (५) पुष्पमाला वह त्रिलोक पूज्य होगा। सब लोग उसकी चरण-धल मस्तक पर धारण करेंगे। (६) चन्द्रमा वह चन्द्रमा के समान शीतल, क्षमा आदि धर्म को धरती पर फैलाएगा। (७) सूर्य वह अज्ञानरूपी अंधकार का नाश करेगा। (८) ध्वजा वह धर्म-ध्वजा संसार में फैलाएगा। (९) कलश वह धर्मरूपी प्रसाद पर कलश की तरह सुशोभित होगा। (१०) पद्मसरोवर उसके लिए देवता स्वर्ण कमल का आसन निर्मित करेंगे। (११) समुद्र वह समुद्र की तरह अनन्त ज्ञान-दर्शन रूप मणि का धारक होगा। (१२) विमान वह वैमानिक देवों द्वारा पूजित होगा। (१३) निर्धूम अग्नि वह धर्मरूपी सुवर्ण को शुद्ध व निर्मल करने वाला होगा। (१४) रत्नराशि वह वैभव सम्पन्न होगा। आचारांगसूत्र में स्वप्न-पाठकों का वर्णन नहीं। उत्तरपुराण में स्वप्न का फल राजा स्वयं बताता है।
मातृ-भक्त प्रभु महावीर भगवान महावीर का जीव गर्भ में था, तो वह तीन ज्ञान का धारक था। उसने सोचा-'मेरे हिलने-डुलने से मेरी माता को कष्ट होता है। मुझे इसमें निमित्त नहीं बनना चाहिए।' यह सोचकर वह निश्चल हो गये। हिलना-डुलना बन्द कर दिया, अकम्प बन गये। सारे अंगों को सिकोड़ लिया।
इस बात से माता त्रिशला को बहुत चोट पहुँची। उसने सोचा-'क्या किसी देव ने मेरा गर्भ अपहरण कर लिया है? क्या वह मर गया है ? क्या वह गल गया है?' विविध आशंकाओं से त्रिशला को हृदयाघात पहुँचा। वह रोने लगी, फिर इसी गम में मूर्च्छित होकर गिर पड़ी। परिचारिकाओं ने उपचार किया। फिर रानी से उनकी अस्वस्थता का कारण पूछा। रानी ने अपने गर्भ के जीव की क्रिया के बारे में बताया-"मेरा गर्भस्थ जीव न हिलता है न डुलता है, उसका स्पन्दन भी बन्द हो गया है।"
यह सुनकर महल में शोर मच गया। घर में दास-दासी रानी के गर्भस्थ जीव की कुशलता माँगने लगे। महाराजा सिद्धार्थ स्वयं पधारे। उन्होंने ज्योतिषियों से इसका कारण पूछा।
सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र
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