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छह धर्मनायक ___ बौद्ध ग्रन्थों में छह धर्मनायकों का बार-बार उल्लेख आया है। उनके बारे में संक्षिप्त वर्णन इसलिए जरूरी है क्योंकि इनमें ५ की मान्यता इतिहास से समाप्त हो चुकी है। पूर्ण काश्यप व उनकी मान्यता
यह काश्यप जाति के ब्राह्मण थे। नग्न रहते थे। इनके अनुयायियों की संख्या ८०,००० थी। एक दिन राजा ने उन्हें द्वारपाल का कार्य सौंप दिया, जिसे इन्होंने अपना अपमान समझा। वे गुस्से में अपमानित हो जंगल में निकल पड़े, जहाँ चोरों ने इनके वस्त्र छीन लिये। तब से इन्हें लोगों ने वस्त्र भी दिये, पर इन्होंने कहा-“वस्त्र लज्जा को ढकने के लिए है और लज्जा का मूल पापमय प्रवृत्ति है। मैं तो इस प्रवृत्ति से दूर हूँ। इसलिए मुझे वस्त्रों से क्या प्रयोजन?'
ये अक्रियावाद के समर्थक थे। उनका मानना था-"अगर कोई कुछ करे या कराये, काटे या कटवाये, कष्ट दे या दिलाये, शोक करे या कराये, किसी को कुछ दुःख हो या कोई दे, डर लगे या डराये, प्राणियों को मार डाले, घर में सेंध लगाये, डाका डाले, एक ही मकान पर डाका डाले, लूटमार करे, परदारगमन करे, असत्य बोले तो भी पाप नहीं लगता। तीक्ष्ण धार वाले चक्र से यदि कोई इस संसार के पशुओं को मारकर माँस का ढेर लगा दे, तो भी उनको पाप नहीं है। इसमें कोई दोष नहीं। गंगा नदी के दक्षिणी किनारे पर जाकर यदि कोई मार-पीट करे, काटे या कटवाये, कष्ट दे या दिलाये तो भी उसमें पाप नहीं।
गंगा नदी के उत्तरी किनारे पर जाकर कोई दान करे, यज्ञ करे या करवाये, तो भी उसमें कोई पुण्य नहीं मिलता। दान, संयम, धर्म और सत्य में कोई पुण्य नहीं है। मंखलि गोशालक और उसकी मान्यता ___ गोशालक भगवान महावीर से बहुत समय सम्पर्क में रहा। इस संदर्भ में सूत्रकृतांग, भगवती, उपासकदशांग में विवरण प्राप्त होता है। भगवान महावीर के साधनाकाल में वह ५ वर्ष तक साथ रहा। पर बाद में उसने अलग मत चलाया उसका मन्तव्य था कि “प्राणी के अपवित्र होने में न कुछ हेतु है, न कारण। शुद्धि के लिए हेतु भी कोई नहीं है, कुछ भी कारण नहीं है। बिना हेतु और बिना कारण के ही प्राणी शुद्ध होते हैं। निज शक्ति या दूसरे की शक्ति से कुछ नहीं होता। बल, वीर्य, पुरुषार्थ या पराक्रम यह सब कुछ नहीं है। सब प्राणी बलहीन और निर्वीर्य हैं-वे नियति (भाग्य), संगत और स्वभाव के द्वारा परिणत होते हैं-अक्लमंद हो या मूर्ख सबको दुःखों का नाश करके ८० लाख के महाकल्पों के भ्रमण के बाद होता है।"८ इस नियतिवाद को आजीवक मत भी कहा गया है। ___ बौद्ध ग्रन्थों में भी मंखलि-पुत्र का स्थान-स्थान पर वर्णन आया है। वह भगवान महावीर व बुद्ध का मुख्य विरोधी था। जैन परम्परा के अनुसार वह तेजोलेश्या का स्वामी था। उसके भक्तों की गिनती लाखों में थी। अजित केशकम्बली और उनकी मान्यता ___ यह केशों के बने कम्बल के वस्त्र पहनता था। इसकी विचारधारा लोकायत मत के समान थी। कई लोग इसे नास्तिक मत मानते थे। उनका मत था-दान, यज्ञ, होम तथ्यहीन हैं। श्रेष्ठ और कनिष्ट कर्म का फल और परिणाम नहीं है। इहलोक, परलोक, होम, माता-पिता, देवता, नरक आदि कुछ नहीं है। इनका ज्ञान देने वाले श्रमण इस संसार में नहीं हैं। यह शरीर चार धातुओं का बना है। ये धातु जब समाप्त हो जाते हैं, मृत्यु हो जाती है, मिट्टी में मिल जाते हैं। आस्तिकवाद बकवास है। इस सिद्धान्त का नाम उच्छेदवादी था।
सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र
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