SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान महावीर का जन्म धरती का सौभाग्य था। करोड़ों वर्षों से मानव जाति इसका इन्तजार कर रही थी। वह मनुष्य से परमात्मा के रूप में अपनी लीला दिखाने धरती पर प्रकट होने वाला था। इस युग में चतुर्थ आरा भी समाप्त होने वाला था। अन्तिम तीर्थंकर के आगमन की सूचना जैन परम्परा में शुरू से चली आ रही थी। भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा के भिक्षु व भिक्षुणियाँ इस बात को जानते थे कि २४वाँ तीर्थंकर 'वर्द्धमान' नाम से पैदा होगा। दार्शनिक मत वह समय ऐसा था जब भारत की धरती पर अनेक दर्शन व दार्शनिकों का जन्म हुआ। ये मत स्वमत की प्रशंसा कर दूसरे की निन्दा करते थे। धार्मिक वातावरण हर स्तर पर बिगड़ा हुआ था। उस समय की धार्मिक मान्यताओं को सूत्रकृतांगसूत्र में ४ समवसरण का नाम भगवान महावीर ने दिया है। इनके नाम हैं-(१) क्रियावाद, (२) अक्रियावाद, (३) विनयवाद, (४) अज्ञानवाद। (१) क्रियावाद क्रियावादी आत्मा के साथ क्रिया का सम्बन्ध मानते हैं। उनका सिद्धान्त है कि कर्ता के बिना पुण्य-पाप क्रिया नहीं होती। वे जीव आदि नव तत्त्वों को एकान्त रूप में मानते हैं। इनके १८० भेद हैं। (२) अक्रियावाद अक्रियावादियों का वर्णन दशाश्रुतस्कन्ध की छठी दशा में उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त सूत्रकृतांग में भी इनका वर्णन है। इनकी मान्यता है कि पुण्य-पाप आदि क्रिया स्थिर लगती है, पर उत्पन्न होते ही विनाश होने से कोई भी पदार्थ स्थिर नहीं। तब इसे क्रिया कैसे लगे। वस्तु में नित्य-अनित्य भेद नहीं। इनके ८४ भेद हैं। इनकी मान्यता है ""इहलोक नहीं, परलोक नहीं, माता नहीं, पिता नहीं, अरिहंत नहीं, चक्रवर्ती नहीं, बलदेव नहीं, वासुदेव नहीं, नरक नहीं, नारकी नहीं, अच्छे-बुरे कर्म का फल में अन्तर नहीं। अच्छे कर्म का फल अच्छा, बुरे कर्म का फल बुरा नहीं होता। कल्याण और पाप अफल है, पुनर्जन्म नहीं, मोक्ष नहीं। सभी क्रिया फल शून्य हैं।" (३) अज्ञानवाद अज्ञानवाद का मानना है-“सारे झगड़े ज्ञान के कारण होते हैं। किसी को पूरा ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता। सारे मत ज्ञान से पैदा हुए हैं। ज्ञान अर्जित करना व्यर्थ है। अज्ञान से जगत् का कल्याण है।" सूत्रकृतांग में अज्ञानवाद के ६७ भेद कहे गये हैं। (४) विनयवाद विनयपूर्वक व्यवहार करने वाले विनयवादी कहलाते हैं। वे हर स्थान पर बिना किसी विलम्ब के सबकी विनय करते हैं। चाहे साधु मिले, गृहस्थ मिले, गाय मिले या कुत्ता मिले, सबकी विनय करना विनयवादी का धर्म है। इन सबको वे मन, वचन व कर्म से देश और काल के अनुसार उचित मान देकर धर्म का पालन करते हैं। इनके ३२ भेद हैं। जैन ग्रन्थों में इन वादों के संस्थापकों के नाम तो आये हैं, पर उनका विवरण प्राप्त नहीं होता। निशीथचूर्णि में इन धर्म-मतों की संख्या में बढ़ोत्तरी मिलती है। तत्त्वार्थराजवार्तिक में इन वादों की भाषाओं के नाम उपलब्ध होते हैं। | ४० । सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy