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________________ ब्राह्मण चाहे विद्वान् हो या मूर्ख, सदाचारी हो या व्यभिचारी, अग्नि की तरह सदा पूजनीय व पवित्र है।३ पण्डे व पुरोहित लोगों के भाग्य के निर्माता बन गये। ब्राह्मणों के अधिकार इतने विस्तृत हो गये कि वह शूद्र के धन के स्वामी भी हो गये। ब्राह्मण ब्रह्ममुख के समान पवित्र माना जाता था। वेद का ज्ञान देना, पढ़ना ब्राह्मण का अधिकार था। शूद्र लोगों को न वेद पढ़ने का अधिकार था, न उन्हें वेद सुनने का। शूद्रों की तरह स्त्री को भी वेद पढ़ने का अधिकारी नहीं माना जाता था। यदि शूद्र कभी भूल से वेद का पाठ सुन लेता तो उसके कानों में गरमागरम सीसा पिघलाकर डाला जाता था। यदि वह कण्ठस्थ कर लेता तो उसे बुरी तरह मारा जाता था। वेद के ऋचा बोलने वाले शूद्र की जीभ काट दी जाती। उन्हें यज्ञ-प्रसाद ग्रहण करने व व्रतादि का उपदेश देना मना था। स्त्री व शूद्र दोनों स्वतन्त्रता के योग्य नहीं थे। दासों व स्त्रियों की मण्डियाँ लगती थीं। उस समय यह घोष आम था“न स्त्री स्वातंत्र्यमर्हति। अस्वतन्त्रा स्त्री पुरुषप्रधान।" -वशिष्ठ स्मृति, पृष्ठ ११ इन दोनों को धार्मिक व सामाजिक अधिकारों से वंचित कर दिया गया था। बोधायन स्मृति २/२/५२ पर कहा गया है। “बचपन में पिता, विवाह के पश्चात् पति व वृद्धावस्था में पुत्रों के संरक्षण में रहकर स्त्री को जीवन व्यतीत करना चाहिए।" सारा स्मृति साहित्य शूद्रों की करुण गाथा कहता है। गीता ९/३२ में श्रीकृष्ण ने कहा है "स्त्रियाँ, वैश्य और शूद्र सब पाप योनि हैं, पापजन्य हैं।" इनके संस्कार बिना मंत्र के किये जाते थे ताकि मंत्र अपवित्र न हो जायें।" राजनैतिक स्थिति राजनैतिक क्षेत्र में दो तरह की व्यवस्थाएँ थीं-गणराज्य व राजतन्त्र। भगवान महावीर के नाना चेटक वैशाली गणराज्य के प्रमुख थे। इसके अतिरिक्त लिच्छवी गणराज्य के शाक्य, मल्ल, कोशल, आमलकप्पा, वजिगण, पिप्पलि वन, मोरीय गण छोटे गणराज्य थे। इनके अतिरिक्त कोशल, वत्स, अवन्ती, कलिंग, अंग, वंग आदि स्वतन्त्र राज्य थे। गणराज्यों में परस्पर स्नेह था। ___ उस समय में भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा के संत मुनि केशीकुमार थे, उस समय की स्थिति का सुन्दर चित्रण उत्तराध्ययनसूत्र २३/७५ में फरमाया है। “आज चारों ओर अंधकार है। भोलीभाली जनता अंधकार में भटक रही है। इस काल-रात्रि का कब अंत होगा और कौन-सा सूर्य इस क्षितिज पर प्रकाश बिखेरेगा? संसार को धर्मतत्त्व से कौन आलोकित करेगा? यह चिन्ता का विषय है।" यह बात उन्होंने प्रभु महावीर के प्रथम शिष्य इन्द्रभूति गौतम को कही थी। उस समय भारत में ही नहीं, समस्त विश्व में व्यवस्था डाँवाडोल थी। धरती महापुरुष की बाट जोह रही थी। ऐसे समय में भारत की धरा पर बुद्ध व महावीर पैदा हुए। चीन में लाओत्से, कन्फ्यूशियस, यूनान में पाईथागोरस, अफलातून और सुकरात, ईरान में जरतुस्थ, फिलिस्तीन में जिरेनिया और इजकिल५ पैदा हुए। सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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