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प्रक्रुध कात्यायन और उनके सिद्धान्त
आचार्य बुद्धघोष ने लिखा है- प्रक्रुध उसका नाम था, कात्यायन गोत्र था । वह अन्योन्यवादी था । उसका मत था"सात पदार्थ किसी के लिए करवाये, बनाये या बनवाये हुए नहीं वे बन्ध्य कूटस्थ और नगर द्वार के स्तम्भ की तरह अचल हैं। वे न हिलते हैं, न बदलते हैं। एक-दूसरे को सताते नहीं हैं। एक-दूसरे को सुख-दुःख उत्पन्न करने में असमर्थ हैं। वे हैं - पृथ्वी, अप्, तेज, वायु, सुख, दुःख व जीव । इन्हें मारने वाला, सुनने वाला, सुनाने वाला, जानने वाला कोई नहीं हैं। अगर कोई तीक्ष्ण शस्त्र से किसी का सिर काट डालता है तो वह उसका प्राण नहीं लेता। इतना ही समझना चाहिए कि सात पदार्थ के बीच अवकाश में शस्त्र घुस गया है। "
संजयवेलट्ठ पुत्र व उसकी मान्यता
इसका नाम छह बोल के साथ आया है । पर इसके बारे में विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है। वह विक्षेपवादी था । उसका मत था - "यदि कोई मुझे पूछे कि क्या परलोक है और मुझे ऐसा लगे परलोक है तो मैं कहूँगा, हाँ।"
" परन्तु मुझे वैसा नहीं लगता, मुझे ऐसा भी नहीं लगता कि परलोक नहीं है । औपपातिक प्राणी है या नहीं । अच्छे-बुरे कर्म का फल होता है या नहीं। तथागत मृत्यु के बाद रहता है या नहीं। इनमें से किसी भी बात के विषय में मेरी कोई निश्चित धारणा नहीं है ।"
निर्ग्रन्थ ज्ञातपुत्र का चातुर्याम मार्ग
बौद्ध ग्रन्थों में अनेक प्रकरणों में भगवान महावीर का वर्णन ज्ञातपुत्र के रूप में आया है । ज्ञातृ प्रभु महावीर का वंश था जो लिच्छवियों की शाखा थी। राजा सिद्धार्थ इस वंश के राजा थे।
ज्ञातवंशी क्षत्रिय भगवान पार्श्वनाथ के उपासक थे। ज्ञातपुत्र भगवान महावीर नाम था । उनका धर्म निर्ग्रन्थ धर्म
उत्तराध्ययनसूत्र में केशी- गौतम संवाद में भगवान पार्श्वनाथ के मार्ग को चातुर्याम मार्ग बताया गया है। वहाँ लिखा
"प्रथम और अन्तिम तीर्थंकर के मुनि व साध्वियाँ पाँच महाव्रत का पालन करती हैं। पर दूसरे से २३वें तीर्थंकर के मुनि चार महाव्रतों का पालन करते थे ।"
था ।
है
यहाँ ४ व्रतों में ब्रह्मचर्य को अपरिग्रह महाव्रत का अंग माना गया है। इस कारण इस धर्म को चातुर्याम मार्ग कहा जाता है।
१. मनुस्मृति ५ / २८ / ३६
२. वही ५ / २२/४४
३. वही ८ / ३१७-३१९
४. (क) गौतम धर्मसूत्र, पृष्ठ १६५
(ख) अध्यययन ३, पृष्ठ ८९-९०
५. महावीर : एक अनुशीलन, पृष्ठ २/२
६. नास्तिकवादी नास्तिकप्रज्ञ, नास्तिकदृष्टि, नोसम्यक्त्वादी, नोनित्यवादी, उच्छेवादी, स्व-पर लोकवादी ।
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७.
८.
(क) भारतीय संस्कृति और अहिंसा, पृष्ठ ४५-४६
(ख) भगवान बुद्ध, पृष्ठ १४
(क) भारतीय संस्कृति और अहिंसा, पृष्ठ ४५-४६
(ख) भगवान बुद्ध, पृष्ठ १८१-१८३
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सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र
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