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________________ बाईसवाँ भव-मनुष्य का सभी श्वेताम्बर ग्रन्थों में बाईसवाँ भव मनुष्य का है पर इन ग्रन्थों में नाम, आयुष्य, जीवन का प्रसंग नहीं मिलता है। “महावीरचरियं" में गुणचन्द्र ने इतना अवश्य बताया है कि इसी भव में तप-जप की साधना कर इस जीव ने चक्रवर्ती के योग्य पुण्य अर्जित किया। कल्पसूत्र में भी इस भव का वर्णन प्राप्त नहीं होता है। आचार्य विजयधर्मसूरि ने इस भव में पिता का नाम प्रियमित्र व माता का नाम विमलाय बताया है। स्वयं का नाम विमल कहा गया है। विमल, संयम ग्रहण कर तप करता है। पर आचार्य जी ने यह प्रमाण कहाँ से लिया इसका उल्लेख नहीं किया है। तेईसवाँ भव-प्रियमित्र चक्रवर्ती इस भव की आयु पूर्ण कर नयसार का जीव महाविदेह क्षेत्र की मूका नगरी में धनंजय राजा की पत्नी रानी धारिणी के यहाँ पैदा हुआ। उसके यहाँ चक्ररत्न पैदा होने से उसने संसार के राजाओं को अपने अधीन किया। वह प्रियमित्र चक्रवर्ती बना। चक्रवर्ती का वैभव पाकर भी उसका मन वैराग्य में लगा हुआ था। वह आर्हत वाणी का उपासक था। उसका सौभाग्य था कि उसकी नगरी में पोट्टिलाचार्य पधारे। उसने प्रवचन सुना। दीक्षा ग्रहण की। एक करोड़ वर्ष तक संयम-आराधना की। समवायांगसूत्र में इस भव में उसका नाम पोट्टिल था। उसने पोट्टिलाचार्य से दीक्षा ग्रहण की। नवाङ्गी टीकाकार अभयदेवसूरि ने उन्हें राजपुत्र माना है। समवायांग के अतिरिक्त अन्य ग्रन्थों में इस भव के जीव का नाम प्रियमित्र है। दिगम्बर आचार्य गुणभद्र ने मूका नगरी के स्थान पर पुण्डरीकिणी नाम दिया है और माता-पिता का नाम मनोरमा और सुमित्र बताया है। पोट्टिलाचार्य के स्थान पर भगवान क्षेमंकर के पास प्रियमित्र एक हजार राजाओं के साथ संयम ग्रहण करता है। चौबीसवाँ भव-महाशुक्र यहाँ से आयुष्य पूर्ण कर यह जीव महाशुक्र कल्प के सर्वार्थसिद्ध विमान में उत्पन्न हुआ। उत्तरपुराण व समवायांगसूत्र के विमान का नाम सहस्रार आया है। यहाँ आयु किसी ग्रन्थ में १७ सागरोपम है और किसी में १८ सागरोपम है। पच्चीसवाँ भव-नन्दन राजकुमार यही भव था जिस भव में भगवान महावीर ने तीर्थंकर योग्य कर्म का उपार्जन किया। वह देवलोक की आयु पूर्ण कर क्षिप्रा नगरी के जितशत्रु सम्राट् की भद्रा महारानी की कुक्षि से पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ। उसका नाम नन्दन रखा गया। ___ बचपन से राजकुमार वैराग्य मनोवृत्ति का था। वह दीन-दुःखियों का सहारा था। श्रमणों का सहज भक्त था। वह गुणों का भण्डार था। उसकी आयु २५ लाख वर्ष थी। एक लाख वर्ष तक उसने निरन्तर साधु-जीवन ग्रहण किया। उसके गुरु का नाम यहाँ भी पोट्टिलाचार्य था। समस्त एक लाख वर्ष के साधु-जीवन में उसने ११ लाख, ६० हजार मासखमण का तप कर कर्मों को खपाया। सेवा, स्वाध्याय व तप की त्रिवेणी उसके अन्दर बहती थी। इसी जन्म में उसने तीर्थंकर गोत्र का उपार्जन कर लिया। दिगम्बर परम्परा अनुसार महावीर के जीव ने इस भव में तीर्थंकर गोत्र के १६ बोल पूर्ण किये व श्वेताम्बर परम्परा में २० बोल, ऐसा वर्णन प्राप्त होता है। माता का नाम वीरमती तथा पिता का नाम नन्दिवर्धन है। उनका अपना नाम नन्द था। नन्दन मुनि के जीव ने इसी भव में एक मास की संल्लेखना धारण की। छब्बीसवाँ भव-प्राणत देवलोक में यहाँ से आयुष्य पूर्ण कर वह प्राणत देवलोक में पुष्पोत्तरावतंसक विमान में बीस सागर की स्थिति वाला देव हुआ। उत्तरपुराण के अनुसार अच्युत स्वर्ग में पुष्पोत्तर विमान में श्रेष्ठ इन्द्र बना जहाँ उसकी आयु २२ सागरोपम थी। सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र _ ३५ ३५ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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