SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एक समय विश्वभूति पुष्पकरंडक उद्यान में अपनी पलियों के साथ उन्मुक्त क्रीड़ा कर रहा था। महारानी की उस उद्यान में पुष्प वगैरह लेने आई। उन्होंने विश्वभूति के सुख को देखा, वह भी राजकुमार की भाँति जल-भुन गई । उन्होंने जाकर रानी से कहा- "हे महारानी जी ! राज्य का सच्चा सुख तो विश्वभूति भोगता है। तुम्हारा बेटा विशाखनंदी तो बेचारा युवराज होते हुए भी दुःख भोग रहा है । उसमें हिम्मत नहीं कि वह उद्यान में जा सके।" रानी को यह बात चोट कर गई। रानी ने राजा को फटकार लगाते हुए कहा - " आपके राज्य में कितना अन्याय है कि मेरा बेटा विशाखनंदी युवराज होते हुए भी उद्यान में नहीं जा सकता। आपका भतीजा सारा सारा दिन अपनी रानियों के साथ उद्यान में पुष्प-क्रीड़ा करता रहता है। युवराज वह है या विश्वभूति ?” महाराज बहुत समयज्ञ थे। उन्होंने रानी का क्रोध शांत करते हुये कहा - "यह हमारी कुल मर्यादा है। जब कोई राजा या राजकुमार आदि अपने अन्तःपुर में रानियों-दासियों के साथ उद्यान में हो तो दूसरा कोई प्रवेश नहीं कर सकता।" रानी कहाँ समझने वाली थी। रानी ने कहा - " आपकी मर्यादा किस काम की ? जब मेरा पुत्र भिखारियों की तरह घूमता रहे। कान खोलकर सुन लो, जब तक विश्वभूति को घर से नहीं निकाला जाएगा, तब तक मैं अन्न-जल ग्रहण नहीं करूँगी।" राजा के सामने घोर धर्म-संकट उत्पन्न हो गया। एक तो अपने परिवार की कलह, दूसरा अपने भाई के लड़के की समस्या। उसने सोचा-‘“एक ही राज्य में ऐसा अन्याय कैसे संभव है ?" गुणवान विश्वभूति के सामने मेरा आलसी पुत्र विशाखनंदी है। विश्व भूति हमारे राज्य की शक्ति का प्रतीक है। इन स्त्रियों का स्वभाव द्वेषमय होता है। इनको शांत करने और परिवार की कलह को समाप्त करने के लिए कोई समाधान ढूँढ़ना पड़ेगा । " राजा ने यह बात अपने अमात्य से की। अमात्य ने एक षड्यन्त्र रचा। उसने एक पत्र राजा को पहुँचाया। उस पत्र को पढ़ते ही राजा ने युद्ध की घोषणा कर दी। रणभेरियाँ बजने लगीं। घोषणा हुई - " पड़ोसी सामन्त पुरुषसिंह ने सीमा पर आक्रमण कर दिया है।" विश्वभूति ने जब रणभेरियाँ सुनीं। वह उद्यान में अपनी क्रीड़ा समाप्त कर बाहर निकला । योद्धा वही है, जो अपना कर्त्तव्य पहचाने। अपनी शूरवीरता को परखने का प्रमाण योद्धा युद्ध में देता है। उसने बाहर आकर शहर में प्रवेश किया। फिर राजा के पास आकर प्रार्थना की- “ अचानक यह युद्ध हुआ कैसे ? किस दुश्मन की शामत आई है ?" राजा ने मंत्री के पत्रानुसार विश्वभूति को समझाया - 'पड़ोसी सीमा पर पुरुषसिंह सामन्त ने आतंक मचा रखा है। मैं उसी के साथ युद्ध करने जा रहा हूँ।" साथ में वह बनावटी पत्र भी विश्वभूति को थमा दिया, जिसमें पड़ोसी सामन्त द्वारा युद्ध घोषणा की धमकी लिखी हुई थी । पत्र को देखकर विश्वभूति का क्षत्रियत्व जाग उठा । उसने प्रार्थना की- "महाराज ! मेरे होते हुए आप युद्ध में जायें, यह आपने सोचा कैसे ? यह बात सुनकर मेरा सिर शर्म से झुक गया है। आप आज्ञा दीजिये, मैं उस सामन्त का शीश कुचल दूँ ?” राजा तो यही चाहता था, उसने स्वीकृति प्रदान कर दी । विश्वभूति सेना को सुसज्जित कर चल पड़ा। पर पुरुषसिंह कोई धमकी नहीं दी थी, वह लड़ना भी नहीं चाहता था। जब उसे पता चला कि विश्वभूति सेना सहित आ रहा है, तो वह उपहार लेकर सामने आया। बहुत से हाथी, घोड़े, हीरे-मोती आदि राजा योग्य उपहार समर्पित कर चलता बना। विश्वभूति ने बिना लड़े पुरुषसिंह को उसकी जिम्मेदारियों के लिए जरूरी निर्देश दिये, ताकि सीमा सुरक्षित रह सके। ३० Jain Educationa International सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy