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________________ भगवान नेमिनाथ बाईसवें तीर्थंकर का जन्म समुद्रविजय राजा व रानी शिवादेवी के यहाँ सोरियपुर में हुआ। यह समय यादवों की उन्नति का समय था। उनकी मँगनी राजुल राजकुमारी से हुई। बारात दुल्हन के दरवाजे पर पहुँची। अचानक आपने देखा कि हजारों पशु बाड़े में बँधे पड़े हैं। पता लगाया तो पता चला कि ये सभी बरातियों की सेवा के लिए कई दिन से बाँधे पड़े हैं। आपने बारात वापस कर दी। घर में आकर एक वर्ष वर्षीदान दिया, फिर गिरनार पर जाकर संयम ग्रहण किया। आपकी मंगेतर राजुल ने आपका अनुकरण किया। उसने भी अपनी सैकड़ों सखियों के साथ संयम ग्रहण किया। भगवान नेमिनाथ की कथा जैन आगम अंतकृद्दशा, निरयावलिका, दशवैकालिक, उतराध्ययनसूत्र में बड़े मार्मिक ढंग से उपलब्ध है। सैकड़ों लेखकों ने देश की विभिन्न भाषाओं-संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिन्दी, पंजाबी में लिखा है। पर्युषण के दिनों में अंतकृद्दशासूत्र पढ़ा जाता है। इस कारण यह गाथा हर व्यक्ति की जुबान पर है। हजारों कवियों ने नेमि-राजुल की विरह गाथा को प्रेम-गाथा के रूप में चित्रित किया है। ___ भगवान नेमिनाथ का दूसरा नाम अरिष्टनेमि भी है। अरिष्टनेमि का वर्णन वेदों, पुराणों में भी आया है। इसीलिए सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन ने कहा था-"वेदों में ऋषभ, अजित, अरिष्टनेमि जैन तीर्थंकरों का वर्णन उपलब्ध होता है।" भगवान अरिष्टनेमि के संबंध में अधिक सामग्री देखने के लिए आचार्य देवेन्द्र मुनि जी का शोध ग्रंथ "भगवान अरिष्टनेमि व कर्मयोगी श्रीकृष्ण : एक विवेचन" देखना चाहिये। जिसमें आचार्यश्री ने बहुत प्रयत्न से भगवान अरिष्टनेमि के बारे में प्राचीन ग्रंथों से संदर्भ जुटाये हैं। भगवान पार्श्वनाथ तेईसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के बारे में डॉ. हर्मन जैकोबी के विचार हम पीछे लिख आये हैं। पूर्व व पश्चिम के इतिहासकार आपको भारत का प्रथम ऐतिहासक महापुरुष मानते हैं। भगवान पार्श्वनाथ काशी-नरेश अश्वसेन व माता वामादेवी के सुपुत्र थे। आपका युग तप में हठयोग का युग था। उसी समय उपनिषद् ग्रंथ लिखे गये। इन सब ग्रंथों पर आपके उपदेशों का खुला असर है। क्योंकि सभी उपनिषद् ध्यान, आत्मा, मोक्ष की बात करते हैं। वेद, यज्ञ, हवन, पशुबलि विरोधी हैं। श्रमण परम्परा के प्रशंसक हैं। भगवान पार्श्वनाथ ने योगियों द्वारा तप के प्रदर्शन की क्रिया का विरोध किया। उस समय में योगी जिंदा पानी या अग्नि में समाधि ले लेते थे, उल्टा लटकते थे, पंचाग्नि तप करते थे। उनकी सभी क्रियाओं में अज्ञानता झलकती थी। इसी तरह की एक घटना काशी में भी घटी। जब भगवान पार्श्वनाथ ने कमठ संन्यासी को लकड़ी चीरकर सर्प का जलता जोड़ा निकालकर दिखाया। जलते सर्प जोड़े को आपने नवकार मंत्र सुनाया। इसी कारण उनकी सद्गति हुई। दोनों मरकर धरणेन्द्र व पद्मावती नाम के देवरूप में पैदा हुए। श्वेताम्बर परम्परा आपको विवाहित मानती है। आपकी शादी राजकुमारी प्रभावती से होनी मानी जाती है। इनके पिता की युद्ध में आपने सहायता की थी। भगवान पार्श्वनाथ का जन्म ७२७ ई. पू. में हुआ था। १०० वर्ष की आयु में आपने सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त किया। आज भी इस पहाड़ का नाम पारसनाथ हिल्स व स्टेशन का नाम पारसनाथ है। आपका वर्णन बौद्ध ग्रंथों में अनेकों स्थलों पर उपलब्ध होता है। भगवान बुद्ध ने कुछ समय श्रमणों के निर्ग्रन्थ धर्म की साधना की थी जिसके बारे में वे शिष्य सारिपुत्र से कहते हैं- “सारिपुत्र ! बोधिप्राप्त से पूर्व मैं दाढ़ी-मूछों का लुंचन सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र - १९ । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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