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________________ भगवान मल्लीनाथ इसके बाद भगवती मल्लीनाथ का वर्णन आता है। स्वयं श्रमण महावीर द्वारा ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र में मल्ली भगवती की कथा वर्णित की गई है। भगवान मल्लिनाथ को श्वेताम्बर परम्परा स्त्री तीर्थंकर के रूप में स्वीकार करती है इसके विपरीत दिगम्बर परम्परा उन्हें पुरुष रूप में स्वीकार करती है। दिगम्बर परम्परा की मान्यता है कि स्त्री क्योंकि नग्न नहीं रह सकती, इसलिए पूर्ण संयम ग्रहण नहीं कर सकती, स्त्री के तीर्थकर होने का प्रश्न नहीं उठता। स्त्री के तीर्थंकर के बारे में दोनों मान्यतायें एक-जैसी है पर श्वेताम्बर स्त्री का तीर्थंकर होना अछेरा (अचम्भा) मानते हैं। श्वेताम्बर परम्परा में इस प्रकार के कई आश्चर्य मिलते हैं। ज्ञाताधर्मकथांग में भगवती मल्ली का वर्णन ऐतिहासिक ढंग से मिलता है“पूर्वजन्म में संयम व तप की आराधना के कारण ७ जीवों ने मनुष्य गोत्र बाँधा।" १. प्रतिबुद्ध इक्ष्वाकु वंश का राजा हुआ जिसकी राजधानी अयोध्या थी। २. चन्द्रच्छाय अंग देश का राजा हुआ जिसकी राजधानी चम्पा थी। ३. शंख काशी देश का राजा हुआ जिसकी राजधानी वाराणसी थी। ४. रुक्मि कुणाल देश का राजा हुआ जिसकी राजधानी श्रावस्ती थी। ५. अदीनशत्रु कुरु देश का राजा हुआ जिसकी राजधानी हस्तिनापुर थी। ६. जितशत्रु पंचाल देश का राजा हुआ जिसकी राजधानी कांपिल्यपुर थी। ७. सातवाँ जीव जो महाबल मुनि का था मिथिला के राजा कुम्भं व रानी प्रभावती के स्त्री तीर्थंकर के रूप में पैदा हुआ। माता ने चौदह स्वप्न देखे। पाठकों से स्वप्नफल राजा व रानी ने पूछा। मल्ली का भविष्य जानकर दोनों प्रसन्न हुए। यौवनावस्था में मल्लीदेवी की चर्चा अनुपम सुन्दरी के रूप में होने लगी। यह चर्चा देश-देशान्तरों में फैल गई। पूर्वजन्म के कर्मोदय से छहों राजा भगवती मल्ली की माँग करने लगे। वह अपनी सेना के साथ नगर में आ घुसे। भगवती मल्ली ने बुद्धिमत्ता के साथ उन राजाओं को रोकने में सहायता की। फिर उन्हें प्रतिबोध देकर सभी को संयम-पथ पर लगाया। फिर स्वयं अनेकों प्रजाजनों के साथ साधना मार्ग अंगीकार किया केवलज्ञान प्राप्त कर आप तीर्थंकर रूप में धर्म-प्रचार करने लगे। लम्बा समय धर्म-प्रचार करने के पश्चात् भगवती मल्ली का निर्वाण सम्मेद शिखर पर्वत पर हुआ। भगवान मुनिसुव्रत स्वामी बीसवें तीर्थंकर मुनिसुव्रत का समय श्री रामचन्द्र जी के समकालीन है। जैन रामायण के अनुसार बहुत से जीवों ने प्रभु से संयम ग्रहण किया। वाल्मीकि रामायण में तापस व श्रमणों का उल्लेख कई स्थानों पर हुआ है। यह बात और है कि जैन रामायण व हिन्दू रामायण में घटना क्रम की दृष्टि से काफी अंतर है। पर यह अंतर तो सभी हिन्दू रामायणों में भी प्राप्त होता है। इसी कारण गोस्वामी तुलसीदास ने हिन्दू व जैन रामायणों को आधार रखकर रामचरितमानस की रचना की। बौद्ध के ‘दशरथ जातक' व जैन की 'पउम सिरि चरिउ' में राम का वर्णन है। प्रभु मल्लीनाथ, मुनिसुव्रत इक्कीसवें तीर्थंकर नमिनाथ का वैदिक ग्रंथों में कोई वर्णन नहीं है। | १८ सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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