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________________ अन्य तीर्थकरों के विषयों में आवश्यक जानकारी (तीर्थंकर चरित्र) जैनधर्म में 'कुछ तीर्थंकरों का तो बहुत विस्तार से वर्णन है । पर कुछ तीर्थंकर ऐसे भी हैं, जिनके जीवन की घटनाओं का क्रम नहीं मिलता है। एक बात उल्लेखनीय है कि भगवान ऋषभदेव के समय पंच महाव्रत, प्रतिक्रमण, चातुर्मास करना आवश्यक ठहराया। पर बीच के तीर्थंकरों के समय में चातुर्याम धर्म, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह दोनों का एक व्रत अपरिग्रह बनाया गया। बाकी तीर्थंकरों ने ब्रह्मचर्य को परिग्रह व्रत से अलग रखकर पाँच महाव्रत बताये । भगवान अजितनाथ दूसरे तीर्थंकर भगवान अजितनाथ का वर्णन थेरगाथा १/ २०१ में प्रत्येकबुद्ध के रूप में आया है। महाभारत में अजित और शिव को एक चित्रित किया गया है। लगता है ये तीर्थंकर दोनों मान्यताओं में जैनों की तरह पूजनीय रहे होंगे। सोरसन्स ने महाभारत के विशेष नामों का कोष बनाया है। इसमें सुपार्श्व चन्द्र और सुमति नाम के जैन तीर्थंकरों को असुर बताया गया है। २ वैदिक मान्यता के उल्लेख नहीं मिलता। अनुसार जैनधर्म असुरों का धर्म रहा है। असुर आर्हतों के उपासक थे किन्तु जैन ग्रंथों में ऐसा विष्णुपुराण, ३ पद्मपुराण, ४ मत्स्यपुराण, ५ ,५ देवी भागवत ६ में असुरों को आर्हत या जैनधर्म का अनुयायी बताया गया। अवतारों के निरूपण में भगवान ऋषभ को विष्णु का, सुपार्श्व को कुपथ असुर का अंशावतार माना गया है। महाभारत में विष्णु और शिव के सहस्र नाम आये हैं उस सूची में श्रेयांस, अनन्त, धर्म, शान्ति और संभव के नाम विष्णु के रूप में आये हैं जो वस्तुतः जैन तीर्थंकरों के नाम हैं। इनकी महानता के कारण महाभारत के लेखक ने उन्हें तीर्थंकरों के विशेषणों के रूप में जोड़ा है। नाम साम्य के अतिरिक्त इन महापुरुषों का सम्बन्ध असुरों से जोड़ा गया है। असुर वेद विरोधी आर्हत् धर्मोपासक थे । भगवान शान्तिनाथ भगवान शान्तिनाथ सोलहवें तीर्थंकर थे । पूर्वभव में वे राजा मेघरथ थे। उन्होंने एक कबूतर के बदले अपनी जंघा का माँस देकर उसके प्राणों की रक्षा की थी। इस घटना का वर्णन महाभारत में राजा शिवि के रूप में किया था । अगले जन्म इस अनुकम्पा के कारण उन्होंने चक्रवर्ती व तीर्थंकर गोल बाँधा । कुरु वंश में हस्तिनापुर में माता अचिरा और राजा विश्वसेन के यहाँ उनका जन्म हुआ था। जन्म होते ही राज्य में फैला रोग समाप्त हो गया था। बौद्ध ग्रंथ में भी शांतिनाथ की दया का समर्थन 'जीमूतवाहन' के रूप में मिलता है। इसी तरह हस्तिनापुर में श्री कुंथुनाथ पैदा हुए। भी चक्रवर्ती व तीर्थंकर थे। इनका निर्वाण सम्मेद शिखर पर्वत पर हुआ । चौदहवें तीर्थंकर अरनाथ का वर्णन अंगुत्तरनिकाय में 'अरक' नाम से आया है। इनके बारे में कहा गया है- बुद्ध से पहले जो सात तीर्थंकर पैदा हुए थे यह उनमें अंतिम थे । सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only १७ www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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