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________________ (१४) व्यर्थ बातों से दूर, अर्थ भरपूर। (१५) जीव-अजीव आदि ९ तत्त्वों का विवेचन। (१६) सांसारिक कार्यों का वर्णन संक्षिप्त भाषा में। (१७) बच्चा भी समझ लेता है। (१८) स्व-प्रशंसा व पर-निन्दारहित। (१९) दूध और मिश्री की तरह मीठा-मीठा। (२०) गुप्त रहस्य प्रकट न करने वाला। (२१) खुशामदरहित। (२२) जन-कल्याण व आत्म-कल्याणकारी। (२३) आत्मा का आहत् नहीं करता। (२४) भाषा का विशुद्ध उपयोग। (२५) न धीमा न उच्च बल्कि मध्यम स्वर। (२६) श्रोता प्रवचन में धन्य-धन्य कह उठते हैं। (२७) चित्र की भाँति वस्तु का स्वरूप स्पष्ट समझाते हैं। (२८) विश्रामरहित। (२९) जो भी प्रवचन सुनता है उसका संशय बिना पूछे दूर हो जाता है। (३०) सुनने वाले उनके वाक्य को हृदय में बसा लेते है। (३१) हर पक्ष से सही। (३२) प्रभावशाली व तेजस्वी। (३३) दृढ़तापूर्ण। (३४) थकावटरहित। (३५) विवक्षित अर्थ की सम्यक् सिद्धि तक अविच्छिन्न अर्थ वाली हो। ___ तीर्थंकरों की भाषा में इतने गुण होते हैं कि जो भी उनके समवसरण में आता है वह कुछ पाकर जाता है। उनका उपदेश बेकार नहीं जाता। कोई-कोई व्रत ग्रहण करता है। अन्य गुण (१) अनन्त ज्ञान, (२) अनन्त दर्शन, (३) अनन्त चारित्र, (४) अनन्त बल, (५) अनन्त वीर्य, (६) अनन्त क्षायिक समकित, (७) वज्रऋषभनाराच संहनन, (८) समचतुरस्रस्थान, (९) ३४ अतिशय (ऊपर वर्णन हो चुका है), (१०) वाणी के ३५ गुण (वर्णन हो चुका है), (११) १००८ शरीर के लक्षण, (१२) ६४ इन्द्रों द्वारा पूजित। इसके अतिरिक्त संसार की सभी श्रेष्ठ शक्तियों के वे स्वामी त्रैलोक्य चक्रवर्ती होते हैं। | १२ — सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र १२ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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