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(२५) तीर्थंकर पर पर-चक्र का आक्रमण नहीं होता। (२६) तीर्थंकर का स्व-चक्र भी उपद्रव नहीं करता। (२७) तीर्थंकर के यहाँ अतिवृष्टि नहीं होती। (२८) तीर्थंकर के यहाँ अनावृष्टि नहीं होती। (२९) तीर्थंकर के क्षेत्र में अकाल नहीं पड़ता। (३०) तीर्थंकर जहाँ विराजते हैं वहाँ सारे पूर्वोत्पन्न उपद्रव शान्त हो जाते हैं। तीर्थंकर का बल
तीर्थंकर में जहाँ आत्म-बल होता है वहाँ शारीरिक बल भी उनके समान न पहले था, न है और न आगे होगा। आचार्यों ने उनके शारीरिक बल का इस प्रकार उदाहरण दिया है२,००० शेरों का बल
= १ अष्टापद (विविहार जाति के शेर में) १०,००,००० अष्टापदों का बल = १ बलदेव में २ बलदेवों का बल
= १ वासुदेव में २ वासुदेवों का बल
= १ चक्रवर्ती में १,००,००,००० चक्रवर्तियों का बल = १ इन्द्र में
ऐसे अनन्त इन्द्र मिलकर भी प्रभु की छोटी अँगुली को मिलकर भी नुकसान पहुँचाना चाहें, तो वह उस छोटी अँगुली को झुका नहीं सकते। कहने का तात्पर्य है कि उनके पुण्य प्रताप के कारण वे अनन्त बलशाली होते हैं। भाषा के पेंतीस गुण (१) तीर्थंकर का उपदेश संस्कार-सम्पन्न होता है। (२) एक योजन तक सुनाई देता है। (३) वे 'तू' जैसे अपशब्द प्रयोग नहीं करते। (४) मेघ की तरह गम्भीर। (५) गुंजायमान। (६) घृत की तरह स्निग्ध व शहद से ज्यादा मीठा। (७) उनके वचन से ६२ राग व ३० रागिनियाँ उत्पन्न होती हैं, जिन्हें सुनते ही श्रोता प्रसन्नता अनुभव करते हैं। (८) शब्द कम और विशाल अर्थ वाला प्रवचन कहते हैं। (९) हठरहित उपदेश। (१०) बिना रुकावट के उपदेश चलता रहता है। (११) स्पष्ट व शंकारहित। (१२) श्रोता एक मन होता जाता है। (१३) देश व स्थिति अनुकूल।
सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र
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