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________________ जीव एक समय में एक ही वेद का अनुभव करता है-स्त्रीवेद का अथवा पुरुषवेद का। स्त्रीवेद के अनुभवकाल में पुरुषवेद का अनुभव नहीं करता और पुरुषवेद के अनुभवकाल में स्त्रीवेद का। पुरुषवेद के उदयकाल में पुरुष स्त्री की और स्त्रीवेद के उदयकाल में स्त्री पुरुष की प्रार्थना करती है। इस प्रकार अपने-अपने वेदोदयकाल में स्त्री-पुरुष एक-दूसरे की अभिलाषा करते हैं।"८७ गणधर अचलभ्राता और मेतार्य ने गुणशील चैत्य में मासिक अनशन कर निर्वाण प्राप्त किया। इस साल का वर्षावास भगवान ने नालन्दा में किया। उनचालीवाँ वर्ष चातुर्मास के अनन्तर नालन्दा से विचरते हुए भगवान विदेह जनपद में पधारे। देश के अन्यान्य ग्राम, नगरों में प्रवचन का उपदेश देते हुए आप मिथिला पधारे। यहाँ पर राजा जितशत्रु ने आपका बड़ा आदर किया। समवसरण मिथिला के बाहर माणिभद्र चैत्य में हुआ। राजा जितशत्रु और रानी धारणी प्रमुख राज-परिवार तथा भाविक नगरजनों से चैत्य का मैदान विशाल धर्मसभा के रूप में परिवर्तित हो गया। आपने निर्ग्रन्थ प्रवचन-उपदेश दिया। सभा जन संतुष्ट होकर अपने-अपने स्थानों पर चले गए। सभा-विसर्जन के बाद अनगार इन्द्रभूति ने वन्दन पुरस्सर ज्योतिषशास्त्र से सम्बन्धित अनेक प्रश्न किये जिनमें बीस प्रश्न मुख्य थे। गौतम ने पूछा“(१) सूर्य प्रतिवर्ष कितने मण्डलों का भ्रमण करता है ? (२) सूर्य तिर्यभ्रमण कैसे करता है? (३) सूर्य तथा चन्द्र कितने क्षेत्र को प्रकाशित करते हैं ? (४) प्रकाशक का अवस्थान कैसा है ? (५) सूर्य का प्रकाश कहाँ रुकता है ? (६) ओजस् (प्रकाश) की स्थिति कितने काल की है ? (७) कौन-से पुद्गल सूर्य के प्रकाश का स्पर्श करते हैं ? (८) सूर्योदय की स्थिति कैसी है ? (९) पौरुषी छाया का क्या परिणाम है? (१०) योग किसे कहते हैं ? (११) संवत्सरों का प्रारम्भ कहाँ से होता है ? (१२) संवत्सर कितने कहे हैं ? (१३) चन्द्रमा की वृद्धि-हानि क्यों दीखती है ? (१४) किस समय चाँद की चाँदनी बढ़ती है ? (१५) चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारा इनमें शीघ्र गति कौन है ? (१६) चाँद की चाँदनी का लक्षण क्या है ? (१७) चन्द्रादि ग्रहों का च्यवन और उपपात कैसे होता है ? २४० सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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