SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 301
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१८) भूतल से चन्द्र आदि ग्रह कितने ऊँचे हैं ? (१९) चन्द्र, सूर्यादि कितने हैं ? (२०) चन्द्र, सूर्यादि क्या हैं ?" गौतम के उक्त प्रश्नों के उत्तर भगवान महावीर ने इतने विस्तृत रूप से दिये हैं कि उनसे सूर्यप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्तिजैसे प्राचीन पद्धति के ज्योतिष-विज्ञान के मौलिक ग्रन्थ बन गये हैं। उक्त प्रश्नों के उत्तरों से हम इस ग्रन्थ को जटिल बनाना उचित नहीं समझते। भगवान ने इस साल का वर्षावास मिथिला में ही बिताया। चालीसवाँ वर्ष चातुर्मास के बाद भगवान विदेह देश में ही विचरे। अनेक श्रद्धालुओं को निर्ग्रन्थ मार्ग में दीक्षित किया और अनेक गृहस्थों को श्रमणोपासक बनाया। वर्षाकाल निकट आने पर आप फिर मिथिला पधारे और वर्षावास मिथिला में ही किया। इकतालीसवाँ वर्ष ___ चातुर्मास की समाप्ति पर भगवान ने मिथिला से मगध की तरफ विहार कर दिया और क्रमशः राजगृह पधारकर गुणशील चैत्य में वास किया। महाशतक को चेतावनी ___ उन दिनों राजगृह-निवासी महाशतक श्रमणोपासक गृहस्थधर्म की अन्तिम आराधना करके अनशन किए हुए था। अनशन के बाद शभाध्यवसाय और कर्मों के क्षयोपशम से महाशतक को अवधिज्ञान प्रकट हो गया था जिससे वह आनन्द की ही तरह ऊपर, नीचे और तिर्यक् लोक में दूर-दूर तक जानता तथा देखता था। उस समय उसकी स्त्री रेवती मदिरा से मतवाली होकर महाशतक के पास गई और विकृत चेष्टाओं तथा असभ्य वचनों से उसका ध्यान भंग करने लगी। ___ दो बार तो महाशतक ने उसकी बातें सुनी-अनसुनी कर दीं। पर जब वह बार-बार विरुद्ध बातों और अभद्र ओं से उसे सताती ही गई तब वह अपने क्रोध को दबा न सका। अवधिज्ञान से उसकी भविष्य की दशा को जानकर बोला-'हे मृत्यूप्रार्थिनी रेवती ! इतनी उन्मत्त क्यों हो रही है? सात दिन के भीतर ही अलस रोग से पीड़ित हो असमाधिपूर्वक मरकर नरकगति को प्राप्त होने वाली है, इस बात की भी जरा चिन्ता कर।' महाशतक के कटु वचनों से रेवती भयभीत होकर सोचने लगी-‘सचमुच आज महाशतक मेरे ऊपर रुष्ट हुए हैं। न जाने अब मुझे किस बुरी तरह मारेंगे। वह धीरे-धीरे वहाँ से हटकर अपने स्थान पर चली गई। महाशतक के कथनानुसार ही रेवती को अलस रोग हुआ और सात दिन के भीतर उसका देहान्त हो गया। रेवती के प्रति किये गये कटु भाषण के सम्बन्ध में महाशतक को चेतावनी देने के लिए भगवान महावीर ने इन्द्रभूति गौतम को बलाकर कहा-“गौतम ! यहाँ मेरा अन्तेवासी महाशतक श्रमणोपासक अपनी पौषधशाला में अन्तिम अनशन कर काल निर्गमन कर रहा है। अपनी स्त्री रेवती द्वारा मोहजनक वचनों से सताये जाने पर उसने क्रोधवश हो रेवती की कठोर वचनों से तर्जना की है। इसलिए गौतम! महाशतक को जाकर कह कि अन्तिम अनशन कर समभाव में रहे हुए श्रमणोपासक को ऐसा करना उचित नहीं। यथार्थ-सत्य होने पर अप्रिय कठोर वचन बोलना अनशनधारी श्रमणोपासक का कर्त्तव्य नहीं। देवानुप्रिय ! रेवती को अप्रिय वचन कहकर तूने अच्छा नहीं किया। इसका उचित आलोचना-प्रायश्चित्त लेकर तुझे शुद्ध होना चाहिए।' सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र २४१ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy