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________________ गौतम-“दर्शनाराधना कितने प्रकार की है ?'' महावीर-“वह भी ज्ञानाराधना की तरह तीन प्रकार की है।" गौतम-“भगवन् ! जिस जीव को उत्कृष्ट ज्ञानाराधना होती है उसे क्या उत्कृष्ट दर्शनाराधना भी होती है? जिस जीव को उत्कृष्ट दर्शनाराधना होती है क्या उसे उत्कृष्ट ज्ञानाराधना भी होती है ?' महावीर-“जिस जीव को उत्कृष्ट ज्ञानाराधना होती है उसे उत्कृष्ट या मध्यम दर्शनाराधना होती है और जिसे उत्कृष्ट दर्शनाराधना होती है उसे उत्कृष्ट या जघन्य ज्ञानाराधना होती है।'' गौतम-“भगवन् ! उत्कृष्ट ज्ञानाराधना का आराधक कितने भवों के पश्चात् सिद्ध होता है ?' महावीर-"कितने ही जीव उसी भव में सिद्ध होते हैं, कितने ही दो भवों में सिद्ध होते हैं, कितने ही जीव कल्पोपपन्न (१२ देवलोक में) और कितने ही कल्पातीत देव में उत्पन्न होते हैं, इसी प्रकार दर्शनाराधना और चारित्राराधना के सम्बन्ध में जानना चाहिए।" पुद्गल-परिणाम गौतम-"भगवन् ! पुद्गल का परिणाम कितने प्रकार का है?" महावीर-“वह वर्ण-परिणाम, गंध-परिणाम, रस-परिणाम, स्पर्श-परिणाम और संस्थान-परिणाम रूप पाँच प्रकार का है।" गौतम-"भगवन् ! वर्ण-परिणाम कितने प्रकार का है?' महावीर-“कृष्ण वर्ण-परिणाम, नील वर्ण-परिणाम, लोहित वर्ण-परिणाम, हरिद्रा वर्ण-परिणाम, शुक्ल वर्ण-परिणाम।७४ इसी प्रकार गंध-परिणाम-सुरभिगंध और दुरभिगंध रूप दो प्रकार का है। रस-परिणाम तिक्त रस-परिणाम, कटुक रस-परिणाम, कषाय रस-परिणाम, अम्ल रस-परिणाम, मधुर रस-परिणाम रूप पाँच प्रकार है। और स्पर्श-परिणाम-कर्कश, कोमल, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष रूप आठ प्रकार का है।" गौतम-“भगवन् ! संस्थान-परिणाम कितने प्रकार का है ?'' महावीर-“परिमण्डल संस्थान-परिणाम, वर्तुल संस्थान-परिणाम, त्रस संस्थान-परिणाम, चतुरस्त्र संस्थान-परिणाम, आयत संस्थान-परिणाम, इस प्रकार पाँच प्रकार का है।" गौतम ने पुद्गलों के सम्बन्ध में भी अनेक जिज्ञासाएँ प्रस्तुत की, भगवान ने सभी का सम्यक् प्रकार से समाधान दिया।७५ जीव और जीवात्मा गौतम-"भगवन् ! अन्यतीर्थिकों का यह अभिमत है कि प्राणीहिंसा, मृषावाद, चौर्य, मैथुन, संग्रहेच्छा, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य, हर्ष, शोक, पर-निन्दा, माया, मृषा, मिथ्यात्व आदि दुष्ट भावों में प्रवृत्ति करने वाले प्राणी का जीव पृथक् है और उसका जीवात्मा पृथक् है। इसी तरह इन दुष्ट भावों का परित्याग करके धर्ममार्ग में प्रवृत्ति करने वाले प्राणी का जीव भी अन्य है। जो औत्पत्तिकी, पारिणामिकी आदि बुद्धियुक्त हैं उनका जीव पृथक् है और जीवात्मा पृथक् है। पदार्थ-ज्ञान तर्क, निश्चय और अवधारण करने वाले का जीव पृथक् है और जीवात्मा पृथक् है, जो अज्ञान और पराक्रम करने वाला है उसका भी जीव अन्य है और जीवात्मा अन्य है। यहाँ तक कि नारक, देव और तिर्यक् जातीय पशु-पक्षी आदि देहधारियों का भी जीव अन्य है और जीवात्मा अन्य है। ज्ञानावरणीयादि कर्मवान, कृष्णलेश्यादि लेश्यवान, सम्यक् दृष्टि, मिथ्या दृष्टि, दर्शनवान और ज्ञानवान इन सभी का जीव अन्य है और जीवात्मा अन्य है। अन्यतीर्थिकों की प्रस्तुत मान्यता के सम्बन्ध में आपश्री का क्या कथन है?" सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र ___ २२३ २२३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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