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________________ महावीर-“गांगेय ! यह सभी मैं स्वयं जानता हूँ। किसी भी अनुमान अथवा आगम के आधार पर मैं नहीं कहता। आत्म-प्रत्यक्ष से जानी हुई बात ही कहता हूँ।" गांगेय-"भगवन् ! अनुमान और आगम के आधार के बिना इस विषय में कैसे जाना जा सकता है ?' महावीर-“गांगेय ! केवली पूर्व से जानता है, पश्चिम से जानता है, उत्तर और दक्षिण से जानता है। केवली परिमित जानता है और अपरिमित भी जानता है। केवली का ज्ञान प्रत्यक्ष होने से उसमें सर्व वस्तुतत्त्व प्रतिभासित होते हैं।" गांगेय-"भगवन् ! नरकगति में नारक, तिर्यंचगति में तिर्यंच, मनुष्यगति में मनुष्य और देवगति में देव स्वयं उत्पन्न होते हैं या किसी की प्रेरणा से ? वह अपनी गतियों से स्वयं निकलते हैं या उन्हें कोई निकालता है?' ____ महावीर-“आर्य गांगेय ! सभी जीव अपने शुभाशुभ कर्म के अनुसार शुभाशुभ गतियों में उत्पन्न होते हैं और वहाँ से निकलते हैं। इसमें दूसरा कोई भी प्रेरक नहीं है।" इस प्रकार प्रश्नोत्तर के पश्चात् गांगेय अनगार ने भगवान को यथार्थ रूप से पहचाना, उसे यह पूर्ण निष्ठा हो गई कि ये सर्वज्ञ सर्वदर्शी हैं। भगवान महावीर को त्रिप्रदक्षिणापर्वक वन्दन और नमस्कार कर महावीर के पंच महाव्रतरूप धर्म में प्रविष्ट हुए। भगवान अनेक क्षेत्रों में धर्म की प्रभावना कर पुनः वैशाली पधारे और यह बत्तीसवाँ वर्षावास भी वैशाली में किया। तैंतीसवाँ वर्ष : गौतम की जिज्ञासाएँ : शील और श्रुत __ वर्षावास पूर्ण होने पर भगवान ने वैशाली से मगध की ओर प्रस्थान किया। अनेकानेक क्षेत्रों को पावन करते हुए राजगृह पधारे और गुणशील उद्यान में ठहरे। गुणशील उद्यान के आसपास अन्य मतावलम्बी कई साधु व परिव्राजक रहते थे। समय-समय पर उनमें प्रश्नोत्तर होते थे। वे अपने मत का मण्डन और परमत का खण्डन किया करते थे। अन्य मतावलम्बियों की विचारधारा कहाँ तक सत्यलक्षी है, यह जानने के लिए गौतम ने भगवान से प्रश्न किया-"भगवन् ! कुछ अन्यतीर्थिक यह कहते हैं कि शील (सदाचार) श्रेष्ठ है। दूसरे कहते हैं श्रुत श्रेष्ठ है। तीसरे का अभिमत है कि शील और श्रुत दोनों श्रेष्ठ हैं। भगवन् ! आपका इस सम्बन्ध में क्या कथन है ?" ___ महावीर-“गौतम ! अन्यतीर्थिकों का प्रस्तुत कथन सम्यक् नहीं है। मेरा स्पष्ट मन्तव्य है-पुरुष चार प्रकार के होते हैं। कितने ही शील-सम्पन्न होते हैं श्रुत-सम्पन्न नहीं, कितने ही श्रुत-सम्पन्न होते हैं शील-सम्पन्न नहीं, कितने ही शील-सम्पन्न भी होते हैं और श्रुत-सम्पन्न भी। और कितने ही शील-सम्पन्न भी नहीं होते और न श्रुत-सम्पन्न ही होते हैं। इनमें जो शीलवान हैं परन्तु श्रुतवान उनको उसे मैं देश-आराधक कहता हूँ, जो शीलवान नहीं पर श्रुतवान हैं उनको मैं देश-विराधक कहता हूँ, जो शीलवान और श्रुतवान हैं उन्हें मैं सर्वाराधक कहता हूँ और जो न शीलवान हैं और न श्रुतवान हैं उन्हें मैं सर्वविराधक कहता हूँ।"७३ आराधना भगवान के समाधान से प्रसन्न होकर गौतम की जिज्ञासा और आगे बढ़ी तथा उन्होंने अन्य विविध प्रश्न पूछेगौतम- "भगवन् ! आराधना कितने प्रकार की है?" महावीर-“आराधना के तीन प्रकार है-(१) ज्ञानाराधना, (२) दर्शनाराधना, और (३) चारित्राराधना।" गौतम-"ज्ञानाराधना के कितने प्रकार हैं ?' महावीर-“वह तीन प्रकार की है-(१) उत्कृष्ट, (२) मध्यम, और (३) जघन्य। | २२२ २२२ - सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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