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महावीर-“अन्यतीर्थिकों की यह मान्यता मिथ्या है। मेरा स्पष्ट मन्तव्य है कि 'जीव' और 'जीवात्मा' एक ही पदार्थ है। जो 'जीव' है वही जीवात्मा है।"
केवली की भाषा
गौतम- "भगवन ! अन्यतीर्थिकों का यह मन्तव्य है कि यक्षावेश से परवश होकर कभी केवली भी मषा अथवा सत्यमषा भाषा बोलते हैं, यह किस प्रकार? क्या केवली ये दो प्रकार की भाषा बोलते हैं ?" __महावीर-“अन्यतीर्थिकों का प्रस्तुत कथन मिथ्या है। मेरा स्पष्ट मन्तव्य है कि न कभी केवली को यक्षावेश होता है और न वे कभी भी मृषा या सत्यमृषा भाषा बोलते हैं। वे असावद्य, अपीड़ाकारक सत्य भाषा बोलते हैं।'७६ राजा गागलि की दीक्षा
राजगृह से भगवान चम्पा की तरफ विचरे और पृष्ठ चम्पा में पिठर, गागलि आदि की दीक्षाएँ हुईं। वहाँ से भगवान वापस गुणशील चैत्य में पधारे। उन दिनों गुणशील चैत्य के निकट कालोदायी, शैलोदायी, शैवालोदायी, उदक, नामोदक, अन्नपाल, शैवाल, शंखपाल, सुहस्ती और गाथापति आदि अनेक अन्यतीर्थिक रहते थे। श्रमणोपासक मदुक और कालोदायी की तत्त्वचर्चा ___ एक समय वे श्रमण भगवान महावीर प्ररूपित पञ्चास्तिकाय विषयक चर्चा करते हुए बोले-"श्रमण ज्ञातपुत्र धमास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय इन पाँच 'अस्तिकायों' की प्ररूपणा करते हैं और इन पाँच में से 'जीवास्तिकाय' को वे 'जीवकाय' कहते हैं और शेष चारों क धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय और जीवास्तिकाय इन चार अस्तिकायों को 'अरूपिकाय' बताते हैं
और एक पुद्गलास्तिकाय को 'रूपिकाय'। आर्यो ! श्रमण ज्ञातपुत्र का यह निरूपण क्या सत्य है? इस कथन में वास्तविकता क्या होनी चाहिये?"
जिस समय अन्यतीर्थिक उक्त चर्चा कर रहे थे, उसके पहले ही भगवान के आगमन के समाचार राजगृह में पहुँच चुके थे और भाविक नागरिकगण वन्दन-नमस्कार और धर्म-श्रवण के लिए गुणशील चैत्य की तरफ जा रहे थे। उन नागरिकगणों में एक मदुक नामक श्रमणोपासक भी था।
मदुक महावीर का भक्त और जिन-प्रवचन का ज्ञाता गृहस्थ था। वह पैदल महावीर के समवसरण में जा रहा था। कालोदायी आदि अन्यतीर्थिक बैठे हुए महावीर के पञ्चास्तिकाय की चर्चा कर रहे थे कि मदुक वहाँ से होकर गुजरा। उसे देखते ही वे एक-दूसरे को संबोधन करते हुए बोले-“देवानुप्रियो ! देखिये यह श्रमणोपासक जा रहा है, चलिए हम इस विषय में इसे पूछे। यह ज्ञातपुत्र के तत्त्वों का खासा अभ्यासी है।'' यह कहते हुए वे मदुक के पास गये
और उसे रोककर बोले-“हे मद्दुक ! तेरे धर्माचार्य धर्मोपदेशक श्रमण ज्ञातपुत्र पाँच अस्तिकायों का प्रतिपादन करते हैं और उनमें से किसी को जीव कहते हैं, किसी को अजीव, किसी को रूपी बतलाते हैं और किसी को अरूपी, सो मद्दुक ! तेरा इस विषय में क्या अभिप्राय है? क्या तू इन धर्मास्तिकायादि को जानता और देखता है ?" ___ मदुक-"इनके कार्यों से इनका अनुमान किया जा सकता है, बाकी धर्मास्तिकायादि पदार्थ अरूपी होने से जाने
और देखे नहीं जा सकते।" ° अन्यतीर्थिक-“हे मदुक ! तू कैसा श्रमणोपासक है जो अपने धर्माचार्य के कहे हुए धर्मास्तिकायादि पदार्थों को जानता और देखता नहीं है?"
मद्दुक "आयुष्मानो ! हवा चलती है, यह बात सत्य है ?'' अन्यतीर्थिक- “हाँ, हवा चलती है, पर इससे क्या?''
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सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र
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