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________________ मोका नगरी में गणधरों द्वारा प्रश्नोत्तर प्रभु महावीर जब हस्तिानपुर में विराजमान थे तो लम्बा समय वहाँ रहे। हस्तिनापुर जैन संस्कृति का प्राचीन केन्द्र था। इसके साथ अन्य धर्मों के धर्माचार्य भी यहाँ घूमते थे। हस्तिनापुर धर्म-प्रचार करने के पश्चात् प्रभु महावीर मोका नगरी पधारे। मुनि कल्याणविजय, आचार्य विजयइन्द्रसूरि व आचार्य देवेन्द्र मुनि ने इसकी पहचान पंजाब के शहर मगामण्डी से की है। उस समय प्रभु महावीर नन्दन चैत्य में विराजमान हुए। गणधर अग्निभूति ने प्रभु महावीर से पूछा-- "हे भगवन् ! असुरराज चमर के पास कितनी ऋद्धि, कान्ति, बल, कीर्ति, सुख, प्रभाव तथा विकुर्वणा शक्ति है?" प्रभु महावीर ने अपने शिष्य को उत्तर देते हुए समझाया-“हे देवानुप्रिय ! उस असुरराज चमर के पास ३४ लाख भवनवासी, ६४ हजार सामानिक देव, ३३ त्रायस्त्रिंशक देव, ४ लोकपाल, ५ पटरानी, ७ सेन तथा २ लाख ५६ हजार आत्म-रक्षकों और अन्य भवनवासी की देव ऋद्धि है। वह उन पर शासन करता हुआ सांसारिक सुखभोग भोगता हुआ जीवन-यापन कर रहा है। उसे वैक्रिय शरीर बनाने की विशेष अभिरुचि है। वह सम्पूर्ण जम्बूद्वीप तो क्या तिर्यक् लोक के असंख्य द्वीप व समुद्र असुरकुमार देव और देवियों से भर जाएँ, उनके रूप विकुर्वित कर सकता है। वायुभूति गणधर की जिज्ञासा अब वायुभूति ने असुरराज बलि के सम्बंध में प्रश्न किया। प्रभु महावीर ने अग्निभूति को उत्तर देते हुए समझाया-“उसके पास ४४ लाख भवनवासी, ६ हजार सामानिक देव, ३३ त्रायस्त्रिंशक देव, ४ लोकपाल, ६ पटरानी, २४ हजार आत्म-रक्षक देव हैं। बाकी ऋद्धि व शक्ति असुरराज चमर की तरह ही समझनी चाहिये। अग्निभूति ने इसी तरह स्तनितकुमार, व्यंतर देव और ज्योतिष्कों के संबंध में प्रश्न पूछे। इनके उत्तर में प्रभु महावीर ने फरमाया-"व्यंतरों तथा ज्योतिष्कों में त्रायस्त्रिंशक तथा लोकपाल नहीं होते। वह ४ हजार सामानिक देव तथा १६ हजार आत्म-रक्षक देवों और पटरानियों के स्वामी होते हैं।" ये प्रश्न भगवतीसूत्र ३/१/२७०-२८३ में उपलब्ध होते हैं। यह प्रथम बार है जब इन्द्रभूति के अतिरिक्त प्रभु महावीर के किसी अन्य गणधर ने प्रश्न किये हों। भगवान महावीर यहाँ से पुनः वापस लौटे। वह वाणिज्यग्राम में वर्षावास हेतु पधारे। उनतीसवाँ वर्ष वर्षावास समाप्त करके प्रभु महावीर विदेह देश की ओर पधारने लगे। आप फिर मगध देश की राजधानी राजगृही के गुणशील चैत्य में पधारे। राजगृही अब निग्रंथों का मुख्य केन्द्र बन चुका था। यहाँ के राजा व प्रजा दोनों प्रभु महावीर के प्रति समर्पित थी। इतना सब होते हुए भी यहाँ बौद्ध, आजीवक, सांख्य आदि मतों को मानने वाले विपुल संख्या में निवास करते थे। एक समय आजीवक भिक्षुओं के संबन्ध में इन्द्रभूति गौतम ने भगवान से पूछा-"आजीवक लोग स्थविरों से पूछते हैं कि निर्ग्रन्थो ! तुम्हारे श्रमणोपासक का, जब वह सामायिक व्रत में रहा हुआ हो, कोई भाण्ड चोरी चला जाय तो सामायिक पूरा कर वह उसकी तलाश करता है या नहीं? यदि करता है तो वह अपने भाण्ड की तलाश करता है या पराये की?" उत्तर में भगवान ने कहा-“गौतम ! वह अपने भाण्ड की तलाश करता है, पराये की नहीं।" गौतम-“भगवन् ! शीलव्रत, गुणव्रत, प्रत्याख्यान और पौषधोपवास से उसका भाण्ड 'अभाण्ड' नहीं हो जाता?" सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र ___ -२१५ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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