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________________ प्रस्तुत पुस्तक की प्रेरिका दिव्य विभूति श्री. सुधा जी म. -प्रवचन प्रभाविका साध्वी श्री किरण जी म. ___ महान् कार्यों को करने की सप्रेरणा महामानवों की अन्तःस्थली से स्वतः उद्भूत होती है। वर्तमान युग में वर्धमान महावीर की जीवनी को जन-जन तक पहुँचाने का सुकार्य यद्यपि बहुत समय से हमारे मन में तरंगित था तथापि इस महान् कार्य को प्रेरणा मिली है-दिव्य विभूति महासती श्री सुधा जी महाराज से। स्वर्णमय नक्षत्र-खचित जैन गगन का आप एक विलक्षण नक्षत्र हैं, ध्रुवतारा हैं, आध्यात्मिक पक्ष से आप उपप्रवर्तनी श्री स्वर्णकान्ता जी महाराज की सुशिष्या हैं धर्मपुत्री हैं, तो भौतिक पक्ष से उनकी भानजी हैं। ___ अगस्त माह की प्रथम तिथि को सन् १९४३ में पंजाब राज्य के पट्टी नगर में श्री त्रिलोकचन्द जी एवं श्री कौशल्यादेवी जी के सुगृह में आपका जन्म हुआ। पंजाब की वीर प्रसूता भूमि आन-बान और शान के लिए विश्व-विख्यात है, जिसने शूरवीरों, दानवीरों, ऋषि-मुनियों, भक्तजनों जैसे रत्नों को जन्म देकर अपने आपको धन्य किया है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि गुरु गोविन्दसिंह जैसे शूरवीरों की कर्मभूमि और नानक जैसे भक्त-शिरोमणि, आचार्य श्री आत्माराम जी म. जैसे महान् सन्तों एवं महान् व्यक्तित्व को जन्म देने वाली महान् यही पंजाब की पावनधरा है। इतिहास की पुनरावृत्ति होती ही है। परम्परा को कायम रखते हुए जैन जगत की जीवन्त ज्योति गुरुणी श्री सुधा जी म. ने भी इस अंचल को अपने स्वनाम धन्य जीवन से गौरवान्वित किया। आध्यात्मिकता का वातावरण तो परिवेश से मिला ही किन्तु आचार्य सम्राट् श्री आत्माराम जी म. जैसे महान् सन्त की जीवनयात्रा के अन्तिम क्षणों में उनकी अपरिमित सहिष्णुता, वेदन क्षमता देखकर आपके हृदय में वैराग्य के अंकुर फूट पड़े। शनैः-शनैः वैराग्य के नन्हें पौधे को वृक्ष बनने के अनुकूल वातावरण मिलता रहा और जब यह महान् वृक्ष अपनी शीतलच्छाया से धराधाम के आतप तप्त जन को छाया देने के लिए आतुर हो उठा तो विवश होकर पारिवारिक जनों को दीक्षा की आज्ञा देनी पड़ी। १४ फरवरी १९६५ के शुभ दिन श्री प्रेमचन्द्र जी म. व श्री हेमचन्द्र जी म. के पावन सान्निध्य में आपने हरियाणा प्रदेश के कैथल प्रान्त में सर्वविरति दीक्षा अंगीकार की और तब से उपप्रवर्तिनी श्री स्वर्णकान्ता जी म. की द्वितीय शिष्या के रूप में धर्म की प्रभावना अनवरत कर रही हैं। अहंकार रहित, सरल, संयमपूर्ण आपका जीवन स्वर्ण की तरह अनुपम है। साध्वी श्री स्वर्णकान्ता जी म. जैसी उच्चकोटि की साध्वी रत्ना के लिए एक सुशिष्या की भाँति आपके हृदय में पूर्ण समर्पण व निष्ठा का भाव है। आपके मुखमण्डल पर तेज के साथ करुणा, प्रभाव के साथ निष्ठा, तथा व्यावहारिकता के साथ आध्यात्मिकता का मंजुल समन्वय है। जिस प्रकार नदियों में गंगा, पुष्पों में गुलाब, वृक्षों में चन्दन १९ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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