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________________ देवता ने कहा-"ठीक है, जैसा तुम चाहते हो, वैसा हो जायेगा। मैं तुम्हें राजा श्रेणिक का जामाता बनाऊँगा।" मैतार्य यह सुनकर प्रसन्न हो गया। देवता देवलोक में वापस हो गया। देवता ने अपनी देवमाया द्वारा एक योजना बनाई। उसने एक बकरे की उत्पत्ति की, जो सोने की मैंगनी करता था। लोग उस बकरे से हैरान थे। मैतार्य ने अपने पिता यम को कहा-“पिताजी ! राजा श्रेणिक को यह स्वर्ण-मैंगनी भेंट करके प्रसन्न करो। जब राजा प्रसन्न हो जाये, तो बदले में मेरे लिए राजकन्या का रिश्ता माँग लेना।" मैतार्य के पिता ने तीन दिन की मैंगनी तीन थालों में इकट्ठी कर राजा श्रेणिक को भेंट की। अभयकुमार को भी इन स्वर्ण-मैंगनियों को देखकर अचम्भा हुआ। उसने पूछा- “सोने की मैंगनी तुम कहाँ से लाते हो ?' अभय ने कहा-“हमारे घर एक बकरा है जो रोजाना सोने की मैंगनी देता है। वह आम बकरों से अलग है।'' अभयकुमार ने पूछा-“तुम यह मैगनियाँ राजा को क्यों देते हो?" यम ने स्पष्ट उत्तर दिया-“मन्त्रिवर ! बात यह है कि मैं राजकन्या की शादी अपने पुत्र से करने का इच्छुक हूँ।" इतनी बात सुनते ही राजा श्रेणिक क्रुद्ध हो गया। पर अभय ने अपनी बुद्धि से काम लेते हुए यम से कहा-“पहले तुम हमें अपना बकरा दे जाओ। हम सलाह करके तुम्हें बतायेंगे।" दूसरे दिन बकरा राजा श्रेणिक के पास आ गया। वहाँ उसने मैंगनियाँ दुर्गन्धपूर्ण की। अभय को उस बकरे और सामान्य बकरे में कुछ अंतर लगा। वह सोचने लगा- 'यह बकरा कोई देवमाया है। अगर देवता की इच्छा यही है तो मुझे चाण्डाल की बात की पूरी परीक्षा करनी चाहिये।' दूसरे दिन चाण्डाल बकरा वापस लेने आया तो अभयकुमार ने उसे बकरा सौंपते हुए कहा-“यदि तुम हमारी शर्ते पूरी कर सको तो मगधेश श्रेणिक अपनी कन्या का विवाह तुम्हारे पुत्र से कर देंगे।" चाण्डाल ने पूछा- "आप शर्त बतायें।" अभय ने कहा-“अगर रातभर में तुम सोने की दीवार राजगृह के चारों ओर खड़ी कर दो। भारगिरि से राजगृह तक एक सेतु का निर्माण करो। उस सेतु के नीचे गंगा, यमुना, सरस्वती और क्षीरसागर का सम्मिलित जल प्रवाहित करो। उस मिश्रित जल में तुम्हारा पुत्र मैतार्य स्नान करके पवित्र बने तभी हम उसे राज-जामाता स्वीकार करेंगे। इसके बाद राज्य-सिंहासन पर बैठ छत्र, चामर धारण करे। तभी यह राजकन्या का स्वामी होगा।" ___ चाण्डाल ने सारी शर्ते ध्यान से सुनीं। घर आकर सभी बातें अपने पुत्र को बता दीं। वे सारी शर्ते मित्र देव से कहीं। देव के लिए क्या असम्भव था। रातभर में सब बातें पूरी हो गईं। मैतार्य को चार प्रकार के मिश्रित जल से स्नान कराकर सिंहासन पर बिठाया गया। छत्र, चामर धारण कराया। राजगृही की जनता ने यह सुखद आश्चर्य देखा। राजा श्रेणिक ने अपनी कन्या की शादी मैतार्य से कर दी। अब वह राज-जामाता बन गया। उसकी प्रतिष्ठा जितनी गिरी थी उससे कई गुना बढ़ गई। अब वह महलों के सुख भोग रहा था। अब मित्र देव पुनः प्रतिबोध देने आया। मैतार्य ने कहा-“मित्र ! मेरी नई शादी हुई है। मुझे १२ वर्ष तक पत्नी से भोग भोगने दो। उसके बाद मैं संयम ग्रहण करूँगा।" १२ वर्ष का समय बीत चुका था। तो राजकन्या ने कहा-“स्वामी ! १२ वर्ष आप अपनी इच्छा से घर पर रहे। अब १२ वर्ष मेरी इच्छा से घर पर रहो।' इस बार भी देव पुनः आया। पर मैतार्य ने १२ वर्ष का समय माँगा। २४ वर्ष बीतने पर मैतार्य प्रभु महावीर के चरणों में मुनि बन गया। उसने ९ पूर्वो तक शास्त्रों का अध्ययन किया फिर एकलविहारी बन आत्म-साधना करने लगा। सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र १९५ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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