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________________ इसी वर्ष भगवान के शिष्य वेहास और अभय आदि श्रमणों ने विपुलाचल पर मोक्ष प्राप्त किया। प्रभु महावीर ने २५वाँ चातुर्मास राजगृह में व्यतीत किया। मैतार्य मुनि ___मगध देश में राजा श्रेणिक के शासनकाल में एक चाण्डाल राजगृह में रहता था। उसका नाम मेहर (यम) था। उसकी पत्नी मेती बड़े घरों में सफाई आदि के कार्य के लिये जाती थी। उसका एक ऐसे सम्पन्न परिवार में आना-जाना था जहाँ कि बच्चे पैदा होते ही मर जाया करते थे। सेठानी का जीवन एक बाँझ स्त्री से ज्यादा दुःखमय था क्योंकि बाँझ प्रसव पीड़ा से बच जाती है। यह तो प्रसव वेदना भी सहती थी और निःसन्तान भी रहती थी। एक समय की बात है कि सेठानी ने अपना दुख मेती नाम की चाण्डालिनी से कहा। मेती ने सेठानी को धैर्य बँधाते हुए कहा- “सेठानी जी ! आप दुःखी मत होइये। इस बार अगर मेरे सन्तान हुई, तो मैं तुम्हें दे दूंगी।' सेठानी व मेती में गुप्त समझौता हो गया। ___ कालान्तर में दोनों स्त्रियाँ गर्भवती हुईं। सेठानी ने एक कन्या को जन्म दिया और मेती ने एक पुत्र को। रातोंरात दोनों सन्तानों की अदला-बदली हो गई। सेठानी ने अपने पुत्र का नाम मैतार्य रखा। उसका लालन-पालन चाव से हुआ। ____ जब मैतार्य कुमार १६ वर्ष का हुआ, तो स्वर्ग में स्थित एक मित्र देव ने उसे प्रतिबोध देने की बात सोची। उसने मैतार्य को स्वप्न में कहा कि "अब गृह-त्याग करके संयम ग्रहण करो।" पर मैतार्य ने स्वप्न को स्वप्न समझा। उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। समय बीता। मैतार्य की शादी ८ कन्याओं के साथ तय हुई। देव ने पुनः उसे सावधान करते हुए कहा-“अब तुम्हारी शादी होने वाली है। शादी के बाद तू भोग-विलास में फँस जायेगा। इसलिए अब भी समय है कि तू असार संसार का त्याग कर साधु बन जा।" पर वह न माना। देव ने सोचा-'इसे अब किसी अन्य ढंग से प्रतिबोध देना चाहिये। । देव ने एक योजना बनाई। उसने मेती चाण्डालिनी के शरीर में प्रवेश किया। देव के वशीभूत हुई चाण्डालिनी यह प्रचार करने लगी-“मैतार्य मेरा पुत्र है। मैंने इसे जन्म दिया है, इसका पिता मेहर है। मैंने सेठानी से अदला-बदली की थी। अब यह तरुण हो गया है। हम इसकी शादी चाण्डाल-परिवार में करेंगे न कि श्रेष्ठी कन्याओं के यहाँ उसकी शादी करेंगे।" ___ मैतार्य के चाण्डाल होने की सूचना से मैतार्य से आठ कन्याओं ने संपर्क तोड़ लिया। मैतार्य को अपना घर छोड़ना पड़ा। मैतार्य पुनः चाण्डाल-परिवार में अपनी माता के पास आ गया। मैतार्य चाण्डाल-पुत्र होते हुए भी वह इस रूप में नहीं रहना चाहता था। इतनी बेइज्जती उसके लिए असहनीय थी। ___ अब मैतार्य एकांत में बैठा अपनी आँखों से आँसू बहाता रहता। उसे समझ में न आता कि वह चाण्डाल-पुत्र है या सेठानी का पुत्र? __ एक दिन वह इसी तरह दुःखी बैठा था कि स्वर्ग से वही मित्र देव प्रकट होकर कहने लगा-“मित्र ! मुझे पहचानो। मैं उज्जयिनी के राजा मुनिचन्द्र का पुत्र था और तुम पुरोहित पुत्र। संयम का पालन करने के कारण हम दोनों देवता बने। तीर्थंकर देव ने तुम्हें दुर्लभबोधि बताया था। मैंने तुम्हें वचन दिया था कि स्वर्ग से आकर तुम्हें प्रतिबोध दूंगा। उठो ! जागो और मानव-जन्म की कद्र करो। संयम ग्रहण कर आत्मा का कल्याण करो।" अब मैतार्य को अपने पूर्वभव की सब बातें याद आने लगीं। मैतार्य पहले से अपनी दशा से दुःखी था। उसने देव से कहा-“हे मित्र ! तूने यह क्या अनर्थ किया? मुझे श्रेष्ठी-पुत्र से चाण्डाल-पुत्र बना दिया। पहले मेरी प्रतिष्ठा वापस कराओ। अब मैं पुनः श्रेष्ठी-पुत्र तो नहीं बन सकता। अतः तुम मुझे राजा श्रेणिक के जामाता बनाओ, तभी दीक्षा ग्रहण करूँगा।" | १९४ १९४ सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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