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________________ प्रस्तुत ग्रन्थ हमारा लेखन क्षेत्र मूलतः पंजाबी भाषा रहा है। जिनशासन प्रभाविका, जैनज्योति उपप्रवर्तिनी साध्वी श्री स्वर्णकान्ता जी म. की प्रेरणा से ५० के करीब छोटी-बड़ी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें आगमों के अनुवाद, कथा साहित्य, स्तोत्र साहित्य, इतिहास व पुरातत्त्व पर पुस्तकें शामिल है। महासाध्वी श्री सुधा जी की सत्प्रेरणा और आशीर्वाद का फल है कि उनका साहित्य सारे संसार में पहुंच रहा है। इस बीमारी की अवस्था में गुरुणी स्वर्णा आत्म-बल इतना उच्चा है कि लगता नहीं कि वह बीमार हैं। उनके अधूरे कार्यों को आगे बढ़ाना श्रीसंघ का कर्त्तव्य है। हमारा जीवन उनके उपकारों की कहानी है। उनकी प्रेरणा से हम पंजाबी में प्रथम बार जैन साहित्य लिख सके। किसी जैन साध्वी को भारत के राष्ट्रपति ने जैन ज्योति पद दिया। पंजाबी विश्वविद्यालय ने "आचार्य आत्माराम जैन भाषणमाला' में भाषण करने का निमन्त्रण दिया। उन्हें पद से अलंकृत किया। उनका ५०वाँ दीक्षा महोत्सव पद उन्हें अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट किया गया। यही नहीं प्रभु महावीर का २५०० साला निर्वाण महोत्सव उन्हीं की प्रेरणा व दिशा-निर्देश में मनाया गया। सरकारी समिति की वह विशिष्ट अतिथि बनीं। ये सारे कार्य प्रथम बार हए। उनका जीवन हर साध-साध्वी के लिए प्रेरणा स्रोत है। हमारी गुरुणी ज्ञान की भण्डार हैं। इतना सब पाकर भी उन्हें अहं छू नहीं गया। उनके उपकारों को भुलाना असम्भव है। वह प्रवर्तिनी महासती श्री पार्वती जी म. की शिष्यानुशिष्या हैं प्रवर्तिनी जी हिन्दी की प्रथम जैन महिला लेखिका थीं। उनके सन्मान में आपने इण्टरनेशनल पार्वती जैन अवार्ड स्थापित करवाया। हमारे हर कार्य में उनका स्नेह व आशीर्वाद रहता है। वह भक्तों को हर कष्ट से उबारती हैं। साध्वी सुधा जी व साध्वी राजकुमारी उनकी दो प्रमुख शिष्या हैं। उनके परिवार में ३० के करीब साध्वियाँ हैं जो सभी सम्पन्न परिवारों से सम्बन्धित हैं। सांसारिक सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण हैं। साध्वी किरण जी, साध्वी संतोष जी, डॉ. स्मृति जी का पूर्ण सहयोग रहा है। साध्वी डॉ. स्मृति जी बहुत ही प्रतिभाशालिनी साध्वी हैं। वे अध्ययनशील हैं। इस पुस्तक की पांडुलिपि का निरीक्षण, संपादन व संशोधन उन्होंने अत्यधिक श्रम से किया है। सभी साध्वी गुरुणी की सेवा समर्पणभाव से करती हैं। अम्बाला में ३२ साल से विराजमान महासाध्वी श्री स्वर्णकान्ता जी इतनी प्रसिद्ध हैं कि जैन-अजैन सभी इन्हें पहचानते हैं। आप सम्प्रदाय, भाषा, जाति के भेद से दूर हैं। आपके गुणों की झलक आपके शिष्या परिवार पर भी देखने को मिलती है। इस पुस्तक में भगवान महावीर जीवन से सम्बन्धित अनेक रंगीन चित्र हमें उ. भा. प्रवर्तक भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी म. के विद्वान् शिष्यरत्न उपप्रवर्तक श्री अमुर मुनि जी के सचित्र कल्पसूत्र से प्राप्त हुए हैं। श्री अमर मुनि जी म. की इस उदारता व कला के प्रति हम हार्दिक कृतज्ञ हैं। प्रेरिका महाश्रमणी ज्ञानप्रज्ञा साध्वी सुधा जी म. आप साध्वी श्री स्वर्णकान्ता जी म. की प्रमुख शिष्या हैं। साध्वी राजकुमारी जी के बाद आपका स्थान है। आपका जन्म पट्टी में सम्पन्न जैन परिवार में हुआ था। बी. ए. तक आपने शिक्षा ग्रहण की। आप बहुभाषाविद्, विनम्र प्रवचन भूषण, शास्त्रों के रहस्यों की ज्ञाता साध्वी हैं। सांसारिक दृष्टि से आप महासाध्वी श्री स्वर्णकान्ता जी की भानजी हैं। आप सभी कामों को सहज ढंग से कर डालती हैं। हमारे जीवन पर आपके अथाह उपकार हैं। गुरुणी जी की हर बात का फैसला लेने का अधिकार आपका है। आप धर्म-प्रचार में प्रेरणा देती रहती हैं। पंजाबी साहित्य की सतत धारा को आप प्रज्वलित रखती हैं। गुरुणी जी के भक्तों को धर्म कार्यों की प्रेरणा देती रहती हैं। कई वर्षों से आपका आग्रह था कि पंजाबी साहित्य पंजाब तक सीमित है। हमें एक सर्वमान्य प्रभु महावीर का जीवन-चरित्र तैयार करना चाहिए। उनकी बलवती प्रेरणा इस वर्ष रंग लाई। १७ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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