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स्थविरों ने प्रभु महावीर के कथन को सहर्ष स्वीकार किया। वह परस्पर कहने लगे- "यह देह से लघु है, पर आत्मा की दृष्टि से महान् है । यह सागर से भी अधिक गंभीर है और हिमगिरि से भी अधिक उन्नत है। जिसकी आत्मा विशुद्ध है वही पूज्य है, आदरणीय है, साधना के क्षेत्र में देह की पूजा नहीं, किन्तु गुणों की पूजा होने लगती है ।" स्थविर अतिमुक्तक मुनि की सेवा करने लगे । ४६
अतिमुक्तक मुनि ने एकाग्र और एकनिष्ठ होकर स्थविरों से ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। संयम और तप के कारण उनका कोमल शरीर कुम्हलाने लगा। उनकी गुलाबी आभा तेज में परिणत हो गई। गुणसंवत्सर तप की सुदीर्घ आराधना से देह बल क्षीण होने लगा किन्तु मनोबल के साथ वह लघु साधक तपोमार्ग पर निरन्तर बढ़ता गया ।
जीवन के अन्त में विपुलगिरि पर संलेखना से उसने अजर, अमर पद प्राप्त किया । ४७
पोलासपुर से विहार कर प्रभु महावीर अपने समस्त शिष्य-परिवार सहित अनेक नगरों-ग्रामों में धर्म-प्रचार करने लगे।
बाईसवाँ वर्ष
प्रभु
अब वर्षावास आ चुका था। वह वर्षावास का समय बिताने वाणिज्यग्राम पधारे। इस वर्ष अनेक जीवों ने उपदेश से प्रभावित होकर महाव्रत व श्रावक व्रत अंगीकार किये।
चातुर्मास समाप्त होते ही प्रभु महावीर ने वाणिज्यग्राम से मगध देश की ओर विहार किया । वह इसकी राजधानी राजगृह के गुणशील चैत्य में पधारे। प्रभु महावीर के आगमन की सूचना राजा श्रेणिक व रानी चेलना को लगी । दोनों प्रभु महावीर को वन्दन करने आये ।
प्रभु महावीर पोलासपुर से विहार कर राजगृह में धर्म-प्रचार कर रहे थे । यहीं उनका शिष्य महाशतक गाथापति रहता था। उसके पास १४ करोड़ स्वर्ण मुद्राएँ थीं। रेवती आदि १३ पत्नियाँ थीं। रेवती अपने पितृ-गृह से ८ करोड़ का हिरण्य लाई थी और एक व्रज भी लाई थी । शेष पत्नियाँ भी एक-एक करोड़ का हिरण्य लाई थीं और एक-एक व्रज ।
भगवान महावीर के आगमन का समाचार महाशतक को मिल चुका था । वह भी अन्य लोगों की तरह प्रभु महावीर की धर्मदेशना सुनने गया । राजा श्रेणिक व राज्य-परिवार के सदस्य, गरीब, अछूत, साहूकार, प्रभु महावीर की वाणी का आनंद ले रहे थे। उपदेश समाप्त होने के पश्चात् महाशतक ने श्रावक के बारह व्रत स्वीकार किये।
महाशतक की रेवती नामक पत्नी दुष्ट स्वभाव की थी । वह बड़ी क्रूर, लालची और कामासक्त थी। वह शराब, माँस का हर रोज सेवन करती थी । धर्म-कर्म के नाम से उसे चिढ़ थी। उसने इसी लालचवश अपनी छह सौतों को शस्त्र-प्रयोग से और छह को विष प्रयोग से मरवा दिया। उनकी सारी सम्पत्ति की वह स्वयं स्वामिनी बन गई।
एक बार प्रभु महावीर राजगृह में पधारे। राजा श्रेणिक ने अमारि की घोषणा की। इस कानून के अनुसार किसी भी व्यक्ति को माँस दुकानों से मिलना बंद हो गया। रेवती रसलोलुप थी। उसने अपने यहाँ एक नौकर को अपने पितृ-गृह भेजा। वहाँ से वह हर रोज दो बछड़ों का माँस मंगवाने लगी, जिसे पकाकर वह शराब के साथ सेवन करती । रेवती
किसी बात का भी महाशतक को पता नहीं था क्योंकि उसका अधिकांश समय धर्म-आराधना हेतु बनी पौषधशाला में बीतता । पर जब उसे रेवती की इस करतूत का पता चला कि वह पीहर से दो बछड़ों का माँस मँगाकर सेवन करती तो महाशतक को रेवती से घृणा हो गई । वह उससे विरक्त होकर आत्म-साधना में लीन रहने लगा ।
महाशतक को साधना करते हुए १४ वर्ष व्यतीत हो चुके थे तब उसने बड़े पुत्र को घर का भार सँभालने के लिए स्वयं पौषधशाला में धर्म प्रज्ञप्ति के अनुसार साधना करने लगा।
एक दिन की बात है रेवती गाथा पत्नी माँस और शराब के नशे में धुत्त हुई अत्यन्त कामातुर एवं निर्लज्ज होकर महाशतक के पास आई। उसे वह अपने कामपाश में बाँधने के लिए प्रयत्न करने लगी पर महाशतक पूर्ण विरक्त रहा ।
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सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र
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