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________________ सद्दालपुत्र-“क्यों ? मेरे धर्माचार्य के साथ विवाद करने में तुम समर्थ क्यों नहीं?'' गोशालक-“सद्दालपुत्र ! जैसे कोई युवा मल्ल पुरुष भेड़ें, सुअर आदि पशु या कू कर, तीतर, बतख आदि पक्षी को पाँव, पूँछ, पंख जहाँ कहीं से पकड़ता है मजबूती से पकड़ता है, वैसे ही श्रमण भगवान महावीर भी हेतु, युक्ति, प्रश्न और उत्तर में जहाँ-जहाँ मुझे पकड़ते हैं, वहाँ-वहाँ निरुत्तर करके ही छोड़ते हैं। इसलिए मैं तुम्हारे धर्माचार्य के साथ विवाद करने में असमर्थ हूँ।” सद्दालपुत्र-“देवानुप्रिय ! आपने मेरे धर्माचार्य श्रमण भगवान महावीर की वास्तविक प्रशंसा की है। इसलिए मैं आपको पीठ फलक आदि का निमन्त्रण देता हूँ। आप मेरी भाण्डशाला में जाकर ठहर सकते हो। गोशालक भाण्डशाला में ठहर गया। वहाँ सद्दालपुत्र ने उसे बहुत समझाया, पर वह नहीं माना। गोशालक के मन को गहरी चोट लगी, जो कभी शांत नहीं हुई।" पोलासपुर में ही अतिमुक्त मुनि ने दीक्षा ग्रहण की जिसकी कथा इस प्रकार हैअतिमुक्तकुमार भगवान महावीर के शिष्य-परिवार में सबसे छोटे मुनि अतिमुक्तकुमार थे। इसका वर्णन अन्तकृद्दशांग व भगवतीसूत्र में स्वयं भगवान महावीर ने किया है। यह पोलासपुर के राजा विजय व रानी श्रीदेवी के पुत्र थे। उपासकदशांग में पोलासपुर का राजा जितशत्रु बताया गया है। जितशत्रु उस समय का कोई विशेषण रहा होगा। वहाँ श्रीवन उद्यान था। एक बार भगवान महावीर अपनी धर्मदेशना देते हुए पोलासपुर पधारे।। उनके प्रमुख शिष्य इन्द्रभूति भिक्षा के लिए शहर में घूम रहे थे। कुछ ही दूर कुछ बच्चे उद्यान में सोने की गेंद से खेल रहे थे। उस खेल स्थान का नाम इन्द्रस्थान था। ज्यों ही गणधर गौतम इस स्थान से गुजरे। अतिमुक्त ने उनको देखा। शान्त, दान्त और मन्द मुस्कान से भरा मुख, विशाल भाल, उन्नत मस्तक, चमकते नेत्र, अभय की मंजुलमूर्ति विशिष्ट श्वेत वे त वेश-भूषा ने अतिमक्त को आकर्षित किया। वह कछ देर टकटकी लगाकर उनकी ओर देखता रहा। फिर उनके करीब आकर पूछने लगा-"भदन्त ! आप कौन हैं और किस कारण घर-घर में घूम रहे हैं ?" गणधर गौतम ने उस अद्भुत बालक को देखा। उसका चेहरा सहजता, सरलता का सुन्दर प्रतीक था। गौतम स्वामी ने साधु भाषा में उस बालक की जिज्ञासा शांत करते हुए कहा-“देवानुप्रिय ! हम श्रमण निर्ग्रन्थ मुनि हैं। भिक्षा के लिए हम उच्च, नीच, मध्यम कुलों में घूमते हैं।'' अतिमुक्तक ने पूछा- “क्या आप मेरे घर भिक्षा के लिए पधारेंगे?' गौतम स्वामी ने उत्तर दिया-“हाँ, क्यों नहीं।" अतिमुक्तक ने पुनः कहा--"फिर आप मेरे साथ अभी चलिये। मैं आपको अपने घर से भिक्षा दिलवाता हूँ।" यह कहकर अतिमुक्तक ने चार ज्ञान के धारक, लब्धिधारी गौतम की अंगुली पकड़ ली। वह गणधर गौतम को अपने महलों अंगली पकडकर ले गया। महल आ गया। माता श्रीदेवी गणधर गौतम के आगमन से प्रसन्न हई। उसने विधि सहित वन्दन किया, फिर भोजन दिया। अतिमुक्तक गणधर गौतम की अंगुली पकड़कर बाहर आया। वह उनसे पूछने लगा-“महाराज ! आप कहाँ रहते हैं ?" गौतम ने बड़े ही स्नेह और सरलता से उत्तर दिया-“हम अपने धर्माचार्य भगवान महावीर के पास रहते हैं, जो इस समय नगर के बाहर श्रीवन में विराजमान हैं, हम उनके शिष्य हैं।' अतिमुक्तक छह वर्ष का बालक था। वह गणधर गौतम से काफी प्रभावित हो चुका था। ऐसा लगता था कि उनका पूर्व परिचित हो। | १८२ सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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