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सुबह हुई। कुण्डकोलिक प्रभु महावीर के दर्शन करने के लिए आया। समवसरण लगा हुआ था। सर्वज्ञ महावीर ने धर्म उपदेश के बाद कुण्डकोलिक से पूछा- “देवानुप्रिय ! क्या धर्म-आराधना करते समय कोई देव ने आकर तुमसे मंखलिपुत्र गोशालक की धर्म-प्रज्ञप्ति की प्रशंसा की थी ?"
कुण्डकोलिक-"हाँ प्रभु ! आपका कथन सत्य है।"
फिर सर्वज्ञदर्शी प्रभु महावीर ने सारे घटनाक्रम पर प्रकाश डाला। कुण्डकोलिक व देव के मध्य हुई बातचीत का वर्णन किया।
प्रभु महावीर ने अपने साधु-साध्वियों को संबोधित करते हुए कहा-“हे आर्यो ! जो गृहस्थाश्रम में रहकर भी अर्थ हेतु प्रश्न, व्याकरण और उत्तर के संबंध में अन्य तीर्थंकरों को निरुत्तर करता है। तो हे आर्यो ! द्वादश गणिपिटक का अध्ययनकर्ता श्रमण निर्ग्रन्थ अन्यतीर्थिकों को निरुत्तर करने में शक्य है।" ।
इस प्रकार प्रभु महावीर ने कुण्डकोलिक के ज्ञान व साधना की प्रशंसा अपनी धर्मसभा में की। इस बात से यह बात सिद्ध होती है कि भगवान महावीर के श्रावक घर में रहते हुए भी तत्त्वज्ञान में किसी को भी पराजित करने में सक्षम थे।
दूसरा तथ्य यह है कि प्रभु महावीर ज्ञान की प्रशंसा करने में नहीं चूकते थे। ज्ञानी के ज्ञान की प्रशंसा वह अपने साधु-साध्वी परिवार में उन्हें (साधु-साध्वी) को शिक्षित करने के लिए करते। वह श्रावक व श्राविका को भी धर्म संघ का बराबरी का स्थान बिना जाति-पाँति, देश, काल, रंग, नस्ल, भाषा, आयु व लिंग के आधार पर देते थे। प्रभु महावीर ज्ञानी के ज्ञान के प्रबल प्रशंसक थे। दूसरों को उनसे प्रेरणा लेने की बात कहते थे।
कुण्डकोलिक ने लम्बे समय तक धर्म-आराधना की। फिर द्वादश श्रावक प्रतिमाओं की आराधना कर देवलोक में उत्पन्न हुआ। सद्दालपुत्र का व्रत ग्रहण __ कांपिलपुर से विहार कर भगवान महावीर पोलासपुर पधारे। पोलासपुर में आजीवक (गोशालक) मत का श्रावक सद्दालपुत्र रहता था। वह गोशालक का परम भक्त था। उसके द्वारा बताये मार्ग पर चलता था। वह जाति का कुम्भकार था। पर सम्पन्न कुम्भकार था। उसकी नगर में ५०० दुकानें थीं जिसमें विभिन्न प्रकार के बर्तन व खिलौने तैयार होते थे। उसके यहाँ अनेक कर्मचारी उन बर्तनों को तैयार करते थे फिर तैयार बर्तनों को दूसरे कर्मचारी बाजार-चौराहों पर बेचते थे। उसके पास तीन करोड़ स्वर्ण-मुद्राएँ थीं और दस हजार गायों का एक व्रज था। उसकी पत्नी सुन्दर, सुशील व धार्मिक प्रवृत्ति की थी। उसका नाम अग्निमित्रा था। वह भी आजीवकोपासिका थी। देव प्रकट होना
एक बार सद्दालपुत्र मध्याह्न में अपनी अशोक वाटिका में बैठा गोशालक द्वारा बताये मार्ग के अनुसार धर्मआराधना कर रहा था कि तभी एक देव प्रकट हुआ। देव ने कहा- “सद्दालपुत्र ! कल प्रातः सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, महाब्राह्मण पधारेंगे। उनके पास जाकर प्रतिहारक, शय्या, पीठ फलकादि के लिए उन्हें निमन्त्रित करना।"
यह बात सुनते ही वह सावधान हो गया, उसने सोचा कि मेरे धर्माचार्य गोशालक ही कल पधारेंगे। क्योंकि वर्तमान में वही सर्वज्ञ और सर्वदर्शी हैं, जिनकी देव ने प्रशंसा की है।
__ अगले दिन सुबह शीघ्रता से उठा। सभी शारीरिक जरूरतों से निवृत्त हो वह अपने धर्माचार्य के पास जाने की तैयारी करने लगा। अभी वह ठीक तरह से तैयार भी नहीं हुआ था कि इतने में जन-प्रवाद सुनाई देने लगा-पोलासपुर के बाहर ज्ञातपुत्र श्रमण भगवान महावीर पधारे हैं।
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सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र
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