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इन सब बातों के विपरीत एक भी ऐसा उदाहरण उपलब्ध नहीं, जब किसी जैन राजा ने किसी अन्य धर्म पर जुल्म ढाया हो। जैन हमेशा देशभक्त लोग रहे हैं। मौर्य युग हो या नन्द साम्राज्य, खारवेल हो या कुमारपाल; सभी राजाओं ने जैनधर्म के साथ अन्य धर्मों को पूर्ण राजकीय संरक्षण दिया। कुमारपाल ने सोमनाथ के मन्दिर का जीर्णोद्धार किया। जैन मंत्रियों ने जैन मन्दिरों के अतिरिक्त हिन्दू मन्दिर व मस्जिदों के निर्माण में सहयोग दिया। आज भी जब विश्वबंधुता व अहिंसा की बात होती है तो जैनधर्म का कार्य सबसे आगे है। अहिंसा का सम्बन्ध जितना महावीर से है उतना किसी महापुरुष से नहीं। जैनधर्म के बारे में अन्य मिथ्यालाप मिलते हैं जिन्हें हमारी पाठ्य पुस्तकों में डाल दिया गया है जिन्हें हमारे छोटे बच्चे पढ़ते हैं। जैन समाज इस जन्म शताब्दी के २६०० वर्ष पर इस बात पर ध्यान देने की परमावश्यकता है कि जैनों की स्वतन्त्र सत्ता, इतिहास, संस्कृति, सभ्यता के बारे में अधिक से अधिक लोगों को परिचय कराया जाये। जैनों को जैनत्व के रूप में परिचय कराना होगा, नहीं तो जैन, बौद्ध की तरह इतिहास की बात रह जायेंगे। परम्पराएँ ऐसे ही समाप्त होती हैं। पर जैनों पर जुल्म आज भी जारी हैं। कोई भी सत्ताधारी हो कोई न कोई घटना घटित हो जाती है। आज भी जैन मन्दिरों के निर्माण में रुकावट डाली जा रही है, जैनधर्म को मिटाने का दृढ़ प्रयत्न जारी है।
१८८१ से अब तक जैन अल्पसहायक समाज रहा है पर अभी भी जैनधर्म को न तो स्वतंत्र धर्म माना गया है ना ही अल्पसंख्यक आयोग में स्थान दिया गया है। ब्राह्मण समाज फांसीवादी परम्परा को आगे बढ़ाये हुए हैं। पर इन बातों के लिए जैनों की अज्ञानता भी प्रमुख दोषी है उनकी ना कोई राजनैतिक विचारधारा है न अन्त। मंच के बिना सरकार कोई बात समझाई नहीं जा सकती है न परम्परा की रक्षा की जा सकती है।
विवाह के विषय में दिगम्बर मान्यता
प्रसिद्ध जैन विद्वान पं. वलभद्र जैन के जैनधर्म के मौलिक इतिहास भाग-२ में इस प्रकार लिखा है। हमने पुस्तक के पृष्ठ ५२ पर जो लिखा है उसके प्रकाशन में त्रुटियाँ रह गई हैं। लाईन १६ पर श्वेताम्बर के स्थान पर दिगम्बर पढ़ा जावे। राजा जितशत्रु को प्रभु का फूफा हमने पं. वलभद्र जैन की पुस्तक जैनधर्म का मौलिक इतिहास को आधार मानकर लिखा है। श्वेताम्बर साहित्य इस रिश्ते का उल्लेख नहीं ये बात हम अपने विद्वानों पर छोड़ते हैं । पाठकों से अनुरोध है कि यह पृष्ठ को शुद्ध करके पढ़ें। ___ "भगवान महावीर का बाल्य-जीवन उत्तरोत्तर युवावस्था में परिणत होता गया। इस अवस्था में भी उनका चित्त भोगों की ओर नहीं था। यद्यपि उन्हें भोग और उपभोग की वस्तुओं की कमी नहीं थी, किन्तु उनके अन्तर्मानस में उनके प्रति कोई आकर्षण नहीं था। वे जल में कमलवत् उनसे निस्पृह रहते थे। वे उस काल में होने वाली विषम परिस्थिति से परिचित थे। राज्यकार्य में भी उनका मन नहीं लगता था। राजा सिद्धार्थ और माता त्रिशला उन्हें गृहस्थ-मार्ग को अपनाने की प्रेरणा करते थे और चाहते थे कि वर्द्धमान का चित्त किसी तरह राज्य-कार्य के संचालन की ओर हो। एक दिन राजा सिद्धार्थ और माता त्रिशला ने महावीर को वैवाहिक सम्बन्ध करने के लिए प्रेरित किया। कलिंग देश का राजा जितशत्रु, जिनके साथ राजा सिद्धार्थ की छोटी बहन यशोदा का विवाह हुआ था, अपनी री यशोदया के साथ कुमार वर्द्धमान का विवाह सम्बन्ध करना चाहता था। परन्तु कुमार वर्द्धमान ने इसे स्वीकार नहीं किया।' पं. वलभद्र जैन ने यह प्रमाण कहाँ से लिखा है, इसका वर्णन उन्होंने नहीं किया।
कुछ तथ्य
हमने इसके लिए गणि श्री कल्याणविजय जी म. व आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी म. का अनुकरण किया है। दोनों महापुरुषों ने भगवान महावीर के जीवन के हर पहलू को छुआ है। गणि कल्याणविजय तो स्वयं उन स्थानों पर गये हैं, जहाँ प्रभु महावीर पधारे थे। वह इस सदी के प्रमुख जैन इतिहासकार हैं। उन्होंने आगमों के आधार पर प्रभु महावीर के विहार क्षेत्र को तय किया है जिसे सभी विद्वानों ने मान्य किया है।
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