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________________ कारण थे-जैनों को राज्याश्रय न मिलना तथा जैन संघों में फूट। मुस्लिम हमला कर पहले गुजरात के समुद्री तट, फिर कंधार के खुश्क मार्ग से जैनधर्म को नुकसान पहुंचाते रहे। हिन्दू या ब्राह्मण साहित्य में तो श्रमण व ब्राह्मण शब्द ही उपलब्ध होते हैं। ईरानी ने सबसे पहले सिन्धु के किनारे रहने वालों को 'हिन्दू' कहा। फिर मुस्लिम ने इसी नाम से पुकारा। मुगल काल में इस देश को हिन्दुस्तान कहते थे। आज ब्राह्मण स्वयं को हिन्दू मानकर जैनधर्म, सिक्ख, बौद्ध को इसकी शाखा कहते हैं। पर न तो भारतीय संविधान की धारा में ऐसा वर्णन है और न ही हिन्दू साहित्य उनकी बात को स्वीकार करने को तैयार है। हिन्दू शब्द भौगोलिक शब्द है किसी धर्म का प्रतीक नहीं। १९४७ में हिन्दुस्तान दो भागों में बँट गया भारत व पाकिस्तान। इस दृष्टि से यहाँ का हर नागरिक भारतीय है धार्मिक दृष्टि हिन्दू नहीं। अगर ऐसा हो तो जैन और अन्य धर्म का अन्तर स्पष्ट न हो। जैन किसी भी दृष्टि ने हिन्दू धर्म का अंग नहीं। जैनों का अपना साहित्य, तीर्थंकर, सिद्धान्त व तीर्थस्थान हैं। मनि बौद्ध साहित्य में भगवान महावीर ____ अगर ब्राह्मणों ने प्रभु महावीर को २६०० साल तक महत्त्व नहीं दिया, तो भी सत्य समाप्त न हो सका। बौद्ध ग्रन्थों में प्रभु महावीर का ५१ बार वर्णन उपलब्ध होता है। यह बात दूसरी है यहाँ प्रभु महावीर बुद्ध के विरोध में हैं। आचार्य श्री नगराज जी ने अपने ग्रन्थ 'आगम और त्रिपिटक' भाग १ में इसका अच्छा संकलन किया है। डॉ. भागचन्द जैन ने भी इस विषय पर अच्छा प्रकाश डाला है। इन ५१ प्रसंगों में ३२ तो मूल त्रिपिटकों के हैं। मज्झिम निकाय के दस .दीर्घनिकाय के चार हैं. अंगत्तर निकाय व संयक्त निकाय के सात-सात हैं। सत्तनिपात में दो और विनयपिटक में दो उल्लेख हैं। इन उल्लेखों में अनेकों विषयों पर बुद्ध और निर्ग्रन्थों की बनाई चर्चाओं, घटनाओं का उल्लेख है। बौद्ध ग्रन्थों से प्रभु पार्श्वनाथ की चातुर्याम परम्परा पर अच्छा प्रकाश पड़ता है। प्रभु महावीर का नाम निर्ग्रन्थ ज्ञातपुत्र आया है जो उनका गुण निष्पन्न नाम है। निर्ग्रन्थ जैनधर्म का प्राचीन नाम है। ज्ञातृ वंश के सपूत होने के कारण वह ज्ञातपुत्र कहलाये। ज्ञात लिच्छवियों की श्रेणी थी जिसके प्रमुख राजा सिद्धार्थ थे। उनकी माता त्रिशला चेटकराज की बहिन थीं। बौद्ध साहित्य में कई स्थानों पर निर्ग्रन्थों की तपस्या, कर्मवाद की चर्चा है। अनेक जैन पारिभाषिक शब्द आये हैं। इस तरह बौद्ध साहित्य में हमें एक नहीं दो तीर्थंकरों की परम्परा का अच्छा ज्ञान होता है। महात्मा बुद्ध के चाचा वप्प भी निर्ग्रन्थ थे। एक मान्यता के अनुसार भगवान बुद्ध भी कुछ समय जैन मुनियों के शिष्य रहे। अगर बौद्ध ग्रन्थ न होते तो प्रभु महावीर के सारे जीवन का प्रमाण देना मश्किल था। क्योंकि कछ पारिभाषिक शब्द कुछ विदेशी लेखकों ने प्रभु महावीर और बुद्ध को एक माना। किसी ने जैनधर्म को बौद्ध धर्म की शाखा माना। पर त्रिपिटक साहित्य ने एक क्षण में सारी समस्या हल कर दी। इतना सब होते हुए भी भगवान महावीर के बारे में, जैन मान्यता क्षीण नहीं हुई। जैन आचार्य प्रभु महावीर का जीवन उनके जीवनकाल व जैनधर्म में अब तक लिखते आये हैं। भारतीय साहित्य के सिर्फ बौद्ध साहित्य में प्रभु महावीर का वर्णन मिलता है। जैनधर्म का वर्णन, प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव की परम्परा उनके धर्म का वर्णन वेद, पुराण, उपनिषद् साहित्य में श्रमणों के अन्तर्गत आया है। बुद्ध का वर्णन तो मात्र पुराणों में है, वेदों में नहीं। हालांकि बुद्ध साहित्य में प्रभु महावीर को महात्मा बुद्ध के प्रतिद्वन्द्वी के रूप में चित्रित किया गया है। पर जैनधर्म का इतिहास संघर्षों का इतिहास रहा है। जैनों को मात्र ब्राह्मणों से ही नहीं, बौद्धों से भी संघर्ष करना पड़ा। अकलंक व आचार्य हरिभद्र की कथा इस बात का प्रमाण है कि जैनों को बौद्धों ने भी कष्ट दिये। १४ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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