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________________ दाद द्वारा आँख फोड़ना नरक -गमन टालने हेतु राजा श्रेणिक महलों में आया। वह अपनी दादी को सरल समझता था । उसने अपनी दादी से भगवान महावीर के दर्शन की प्रार्थना की, पर वह न मानी। उसने स्पष्ट इंकार करते हुए कहा- "मैं निर्ग्रथों के दर्शन नहीं करूँगी।" राजा श्रेणिक ने एक पालकी बनाई, उसमें दादी को बैठाया और समवसरण में ले गया। दादी ने समवसरण के आने से पहले अपनी दोनों आँखें फोड़ डालीं। नरक टालने का पहला प्रयत्न बेकार गया। कपिला द्वारा दान देने से इंकार कपिला ब्राह्मणी चाहे राजा श्रेणिक की दासी थी पर वह कट्टर ब्राह्मण विचारधारा की समर्थक थी। राजा ने कपिला से कहा - " अगर तुम किसी मुनि को अपने हाथ से दान दे दो, तो मेरा नरक टल जायेगा ।" कपिला ब्राह्मणी ने कहा- "मैं तो दान का पात्र ब्राह्मण को मानती हूँ। इन भिखमंगों को दान कैसे दूँ ? राजन् ! मुझे महावीर की वाणी में कोई विश्वास नहीं ।" कपिला के इंकार करने पर राजा ने और ढंग अपनाया। राजपुरुष किसी मुनि को भिक्षा के लिए ले आये। उधर राजा श्रेणिक ने कपिला के हाथ पर कड़ची बाँध दी। मुनिराज जब कपिला के सामने आये, तो कपिला चिल्लाकर कहने लगी - "यह दान मैं नहीं कर रही, राजा श्रेणिक की कड़ची कर रही है।" मुनिराज ने ज्यों ही यह बात सुनी, मुनिराज बिना भोजन लिये चले गये। राजा श्रेणिक का यह प्रयत्न भी बेकार गया। राजा असमंजस में पड़ चुका था । कालशोरिक को कैद करना राजा श्रेणिक कालशौकरिक कसाई के पास गया। उसने कालशौकरिक को कहा - "देखो भाई ! तुम एक दिन के लिये ५०० भैंसे मारने बंद कर दो। मैं तुम्हें उपयोगी इनाम दूँगा और तुम्हारा नुकसान भी पूरा कर दूँगा । तुम्हारे इस प्रयत्न से मेरा नरक -गमन टल जायेगा।" कालशौकरिक राजः श्रेणिक को देखकर दंग रह गया। उसने कहा- "महाराज ! तुम्हारे नरक-स्वर्ग के चक्कर में हम अपना धंधा कैसे चौपट कर दें ? फिर मैं तो इस बात को व्यर्थ समझता हूँ। मैं अपना धंधा चौपट नहीं करूँगा।" कालशौकरिक के इनकार करने पर उसे कैद में डाल दिया गया । उसे अंधकूप में रखा गया ताकि वह एक दिन किसी प्रकार के जीव का वध न कर सके। पर कालशौकरिक वहाँ बैठा भाव --हिंसा करता रहा। वह चित्रमय भैंसा बनाता और उसे काट देता। इस प्रकार उसने कुएँ की दीवारें ५०० भैंसे मारकर भर डालीं । राजा श्रेणिक निश्चिन्त हो गया कि उसका नरक टल गया है। सुबह हुई। राजा श्रेणिक प्रभु महावीर के दर्शन करने आया । फिर उसने कहा- "प्रभु ! मैंने आपके बताये उपायों में से एक पूरा कर दिया है। मैंने कालशौकरिक कसाई को जीव हत्या से मना कर दिया है।" प्रभु महावीर ने राजा श्रेणिक के मनोगत भावों को समझाते हुए कहा- " - "राजन् ! जबर्दस्ती से किसी से अहिंसा का पालन नहीं करवाया जा सकता। बात भाव व मन बदलने से बनती है। उसके मन में हिंसा के भाव अभी भी विद्यमान हैं । चाहे तूने उसे बंदी बना अंधकूप में डाल दिया है। पर उसने आज भी ५०० चित्रमय भैंसों की हत्या की है, जो भावहिंसा है।" राजा श्रेणिक ने वापस बंदीगृह आकर देखा तो प्रभु महावीर का कथन सत्य था । पूर्णिया श्रावक की सामायिक राजा श्रेणिक के नरक -गमन के पहले प्रयत्न विफल हो गये। वह हताश हो गया। वह नरक के भय से इतना डरा हुआ था कि वह पुनः पूर्णिया श्रावक की कुटिया में पहुँचा । पूर्णिया श्रावक आर्थिक दृष्टि से तो गरीब था पर आध्यात्मिक Jain Educationa International सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र For Personal and Private Use Only १६७ www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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