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________________ प्रभु महावीर के समाधान से गणधर गौतम इन्द्रभूति का समाधान हो गया। इससे भी सिद्ध होता है कि तियच भी पूर्वजन्म याद आने पर धर्म-आराधना कर सकते हैं। प्रभु महावीर ने कहा- “थोड़ी-सी धर्म - आराधना जीव के जीवन में क्रान्तिकारी परिवर्तन ला सकती हैं।" उन्नीसवाँ वर्ष वर्षावास सम्पन्न कर प्रभु महावीर धर्म-प्रचार करने के लिये कुछ समय राजगृह में रहे। राजा श्रेणिक प्रभु महावीर का परम भक्त था। जीवन में शुरू के दिनों में वह कुछ समय बौद्ध भिक्षुओं के संपर्क में आया था पर फिर अनाथी मुनि की घटना व रानी चेलणा ने उसे जैन राजा बना दिया। पर इसका यह अर्थ नहीं कि वह दूसरे धर्मों को द्वेषभाव से देखता था । वह सभी धर्म का अहिंसक ढंग से सम्मान करता था । जैनधर्म में किसी को लालच देकर जैन बनाने की परम्परा को कभी तीर्थंकरों ने स्वीकार नहीं किया। जैनधर्म गुणों पूजा करता है । वे गुण हैं-अहिंसा, संयम व तप । जहाँ पूर्वाग्रह नहीं, मिथ्यात्व नहीं, पाप नहीं, वही जैनधर्म की दृष्टि से सच्चा धर्म है। जैन आत्मा से परमात्मा बनने की यात्रा का नाम है। राजा श्रेणिक की जिज्ञासा प्रभु महावीर राजगृही नगरी में विराजमान थे । गुणशील चैत्य में प्रभु महावीर की धर्मसभा में जिनवाणी की अखण्ड धारा चल रही थी। राजा श्रेणिक प्रभु महावीर का प्रवचन सुन रहा था। तभी एक विचित्र घटना ने राजा श्रेणिक में कई जिज्ञासाएँ उत्पन्न कर दीं जिसे प्रभु महावीर ने बाद में शांत किया । उसी सभा में एक बूढ़ा कोढ़ी आया। फटे-पुराने वस्त्रों और बीमारी ने उसका बुरा हाल कर रखा था। आते ही उसने इधर-उधर की बातें कीं । राजा श्रेणिक, अभयकुमार और प्रभु महावीर को छींक आई। फिर उस पुरुष ने राजा श्रेणिक को संबोधित करते हुए कहा- "तुम चिरकाल तक जीओ।" लोग हैरान थे कि कैसा व्यक्ति है जो प्रभु महावीर की ओर पीठ कर राजा को नमस्कार कर रहा है। प्रभु महावीर की ओर देखा । नमस्कार करते हुए बोला - "तुम शीघ्र ही क्यों नहीं मर जाते ?" फिर उसने इस वृद्ध कुष्टि की बात सुनकर सारी धर्मसभा में तहलका मच गया। राजा श्रेणिक क्रोधित होने लगे। पर यह तो प्रभु महावीर का समवसरण था जहाँ शेर और बकरी एक घाट पर जल ग्रहण करते थे । यहाँ कौन, किसे रोकने का अधिकार रखता था ? सबको कुछ भी कहने का अधिकार था । वृद्ध कुष्टि ने अभयकुमार को संबोधित करते हुए कहा- "तुम चाहे जीओ, चाहे मरो ।" लोगों का कुतूहल बढ़ता जा रहा था। वहाँ एक कसाई काल शौकरिक भी बैठा था । उसे देखते ही वृद्ध कुष्टि ने कहा - "तुम न तो मरो, न जीओ।" इस वृद्ध कुष्टि की बात भी किसी की समझ में नहीं आ रही थी । सारी सभा उसके प्रभु महावीर के प्रति अभद्र व्यवहार से दुःखी थी। पर शीघ्र वह व्यक्ति अदृश्य हो गया। राजा श्रेणिक ने पूछा- "प्रभु ! यह कुष्टि वृद्ध कौन था, जो आपके प्रति भरी सभा में अभद्र शब्दों का प्रयोग करके गया है ?" प्रभु महावीर ने समाधान करते हुए कहा - " राजन् ! इस सभा में आया वृद्ध कुष्टि कोई मनुष्य नहीं था, यह तो देव था। इसने जो कहा है इस कटु सत्य को तुम समझ नहीं पाये । इसने हमारे बारे में जो भविष्यवाणी की है यह सब अमर सत्य है । यह कर्म गति का फल है।" Jain Educationa International सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र For Personal and Private Use Only १६५ www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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