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________________ छह महीने तक यह क्रम चलता रहा। अर्जुनमाली ने इन परीषहों, उपसर्गों को हँसते-हँसते झेला। वह सोचते-'ये लोग सत्य कहते हैं-मैं पापी, हत्यारा हूँ। इनके स्वजनों-मित्रों का घाती हूँ। मेरे पाप का कोई दण्ड प्राश्चित्त नहीं है। पहले मैंने इन्हें कष्ट दिये हैं, अब इन्हें कुछ भी कहने का अधिकार है।' ___यह उपसर्ग-परीषह रंग लाए। मात्र छह महीने संयम-पालन करके अर्जुन मुनि को केवलज्ञान, केवलदर्शन प्राप्त हो गया। वह सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हो गये। अब उनकी आत्मा परमात्मा बन गई। जन्म, जरा, व्याधि से मुक्त हो गये। काश्यप की दीक्षा राजगृह के काश्यप गाथापति ने प्रभु महावीर का धर्म-उपदेश सुन दीक्षा ग्रहण की। ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। उत्कृष्ट तप द्वारा १६ वर्ष संयम पाला। अन्त समय में विपुलागिरि पर्वत से मोक्ष पधारे।३२ __उस समय बहुत से महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों ने साधु जीवन अंगीकार किया। इनमें वारत्त नामक गाथापति भी था। साधु बनते ही उसने ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। १२ वर्षों तक संयम की उत्कृष्ट आराधना कर वह भी मोक्ष पधारे। नन्द मणिकार द्वारा श्रावक व्रत ग्रहण करना भगवान महावीर का यह वर्षावास राजगृह नगर में सम्पन्न हुआ। इसमें नन्द मणिकार ने प्रभु महावीर के उपदेश को सुनकर श्रावक व्रत ग्रहण किये थे। इस श्रावक की कथा इस प्रकार है प्रभु महावीर के समवसरण में देव ने स्वर्ग से आकर वन्दन किया फिर उसने विभिन्न प्रकार के नाटक प्रभु महावीर के सामने किये। उस देव के साथ अनेकों देव-देवियाँ थीं। कुछ ही समय के पश्चात् देव ने अपनी माया समेट ली। प्रभु महावीर को पुनः वन्दन कर जाने की आज्ञा माँगी। मगध सम्राट श्रेणिक भी प्रभु के इस समवसरण में बैठा यह सब देख रहा था। उसने जब देव के समस्त नाटकों व ऋद्धि को देखा तो दंग रह गया। प्रभु महावीर के शिष्य गणधर इन्द्रभूति से प्रश्न किया-"भंते ! यह देव जो अभीअभी आपके समक्ष अपनी ऋद्धि का प्रदर्शन करके गया है, वह कौन था ?" प्रभु महावीर-“गौतम ! यह सौधर्म देवलोक में दुर्दर देव था। अभी-अभी वहीं स्वर्ग में उत्पन्न हुआ है। उसके अधीन ४ हजार सामानिक देव-देवियों का परिवार स्वर्ग में रहता है। दुर्दरांक इसके विमान का चिन्ह है।" गणधर गौतम ने प्रभु महावीर के समक्ष जिज्ञासा रखी-"प्रभु ! ऐसा कौन-सा कर्म था जिसके कारण इसे यह ऋद्धि मिली। यह पूर्वभव में कौन था?" इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु महावीर ने गणधर गौतम की जिज्ञासा का समाधान करते हुए इसका विचित्र पूर्वभव बताया- 'हे देवानुप्रिय ! इस देव के पूर्वभव की कथा मैं तुम्हे सुनाता हूँ__ इसी राजगृह नगरी में एक नन्दन मणिकार रहता था। वह हीरे, मोती, मणियों का कार्य करने के कारण प्रसिद्ध था। धन-धान्य से सम्पन्न था। एक बार मैं (भगवान महावीर) अपना धर्म-प्रचार करते हुए राजगृह नगरी में आया। वहाँ मेरे समवसरण में इसने श्रावक के व्रत स्वीकार किये। यह जीव-अजीव का ज्ञाता श्रमणोपासक बन गया। ___ अब यह श्रावकों के व्रत का शुद्धता से पालन करता। यह भोजन में संयम रखता। अष्टमी, चतुर्दशी आदि पर्व तिथियों पर उपवास-पौषध व्रत का पालन करता। जीवन में प्रामाणिकता रखता। ___ पर धीरे-धीरे संत समागम न मिलने के कारण उसकी धर्म-श्रद्धा में शिथिलता आने लगी। यह सब प्रवचन सुनने व स्वाध्याय के न करने से हुआ। पर कर्म गति बड़ी विचित्र है, एक बार इसके मन में पुनः धर्म के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हो गई। इसने अपनी पौषधशाला में पौषध व्रत की धर्म-आराधना शुरू की। यह पौषध इसने तीन दिन के लिए ग्रहण किया। सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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