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________________ भक्त की पुकार कभी खाली नहीं जाती । यही अर्जुनमाली के साथ हुआ। वह यक्ष अर्जुनमाली के शरीर में प्रवेश कर गया। उसके बंधन टूट गये। उसने छह पुरुषों और बंधुमति को वहीं मार दिया । अब अर्जुन के शरीर में अर्जुन नहीं रहा था । उसके शरीर पर मुद्गरपाणी का अधिकार था। अर्जुन देवता का भारी मुद्गर उठाये फिरता । हर रोज छह पुरुष और एक महिला की हत्या करना उसका रोजाना का क्रम बन गया । अर्जुन के भयंकर उपद्रव से राजा और प्रजा में हाहाकार मच गई। सारे राजगृह में भयंकर आतंक छा गया। राजा ने उसे पकड़ने के अनेक प्रयास किये, पर सफलता हाथ न लगी । ५ महीने १३ दिन में उसने १,१४१ मनुष्यों का घात किया । पर इस बात का असली अर्जुन को तो पता ही नहीं था । यह काम तो देव - शक्ति अर्जुन के शरीर में रहकर कर रही थी । आखिर राजा श्रेणिक ने नगर के द्वार बन्द करवा दिये। साथ में प्रजा को निर्देश दिया- "कोई भी व्यक्ति, किसी भी जरूरत के लिए जंगल में न जाए। क्योंकि वहाँ अर्जुनमाली घूमता है जो छह पुरुष व एक स्त्री को हर रोज मारता है ।" राजा के आदेश को सारी प्रजा मानने लगी। उसी समय संसार के समस्त जीवों के आराध्य चरम तीर्थंकर प्रभु महावीर राजगृह नगर पधारे। नगर में गुप्तचरों के माध्यम से प्रभु महावीर के आगमन की सूचना मिली। राजा ने इस बार प्रभु महावीर को भाव वन्दन किया क्योंकि वह भी अर्जुनमाली से आतंकित था । उधर राजगृह में सुदर्शन नामक श्रमणोपासक रहता था। प्रभु महावीर के आगमन का समाचार उसने भी सुना। उसने अपने माता-पिता से प्रभु महावीर के दर्शन - वन्दन की आज्ञा माँगी। माता-पिता ने उसे अर्जुन के आतंक के बारे में बताया। पर वह तनिक विचलित नही हुआ। नगर के द्वार खुलवाकर वह बाहर निकला। सुदर्शन को अपनी जान से प्यारे प्रभु महावीर के दर्शन थे। सुदर्शन का जीवन ही प्रभु-भक्ति का साकार उदाहरण है । वैसे भी धार्मिक व्यक्ति के मन में मौत का भय नहीं होता। फिर वह अर्जुन के भय से कैसे डरता ? वह धीरे-धीरे अभय भाव से आगे बढ़ रहा था । दूर से अर्जुन ने उसे आते देखा। वह सुदर्शन की ओर लपका। सुदर्शन ने अपनी ओर अर्जुन को आते देखकर सागारी संथारा कर ध्यान मुद्रा में खड़ा हो गया। अर्जुन ने मुद्गर घुमाकर सुदर्शन को ललकारा, किन्तु सुदर्शन ध्यानस्थ थे। एक ओर हिंसक शक्ति थी, दूसरी ओर अहिंसा की शक्ति । कुछ क्षण दोनों में संघर्ष चला। हिंसा व आसुरी शक्ति का प्रतीक, यक्ष देव सुदर्शन की अहिंसा के कारण अर्जुन का शरीर छोड़ भाग गया । यक्ष के निकलते ही अर्जुन धड़ाम से भूमि पर गिरा। उस समय तो वह मूर्च्छित हो गया । ध्यान से निवृत्त हो सुदर्शन ने अर्जुन को सँभाला। फिर सुदर्शन ने उसे प्रतिबोध दिया। अर्जुन ने पूछा - "देवानुप्रिय ! आप कौन हैं और कहाँ जा रहे हैं? मैं यहाँ कैसे पहुँचा ?" सुदर्शन ने उत्तर दिया- "प्रिय ! यक्ष का तुम्हारे शरीर में प्रवेश के कारण तू अपना स्वरूप भूल गया था। अब यक्ष निकल गया है, तू अब ठीक है। बाकी मैं अपने धर्माचार्य श्रमण भगवान महावीर के दर्शन करने जा रहा हूँ।" अर्जुन भी महावीर के दर्शन करने के लिए तैयार हो गया। दोनों बड़ी श्रद्धा से प्रभु महावीर के समवसरण में पहुँचे । अर्जुन के शुभ कर्म का उदय हो चुका था। उसने धर्म - उपदेश सुना । वह प्रभु महावीर के चरणों में भिक्षु बन गया । कल का चोर, हत्यारा, आतंकवादी प्रभु महावीर के धर्म-उपदेश से साधु बन चुका था। साधु बनते ही वह बैले-बैले तप की आराधना करने लगा। पर वह ज्यों ही किसी गली, मोहल्ले में भिक्षा के लिए पहुँचता तो उसे ताड़ना, तर्जना और प्रहार सहना पड़ता । गली मोहल्ले में लोग इकट्ठे हो जाते, वह उस पर ताने कसते । छोटे बच्चे अर्जुन मुनि पर ईंटें बरसाते । जब भी वह पारणा के लिए भिक्षा को निकलते, लोग चिल्लाते - "कोई कहता इसने मेरी माँ की हत्या की है। मेरे मित्र और स्वजनों को बिना कारण मारा है।" उन्हें भिक्षा मिलनी दुर्लभ थी । कभी-कभी अन्न मिलता तो पानी न मिलता । पानी मिल जाता तो भोजन असंभव हो जाता । सब परीषहों को वह शांत होकर समभाव से सहते । किसी के प्रति भी क्रोध, द्वेष की भावना मन में न लाते । वह उलाहाने, भर्त्सना, गालियों को सहते गये। १६२ Jain Educationa International सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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