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________________ जब श्रावक अपनी साधना में स्थिर रहा तो देव ने अपनी माया से यह काम भी कर डाला । चुल्लशतक स्थिर रहा। देव ने पुनः धमकी देते हुए कहा - " अगर तू अभी भी नहीं मानता, तो मैं तुम्हारा धन चौराहे में फेंक दूंगा जिस कारण तू दरिद्री हो जायेगा। भिखारी बनकर दर-दर की ठोकरें खायेगा ।" इस बार चुल्लशतक घबरा गया। उसने वही चिन्तन किया जो पूर्व कथित श्रावकों ने किया था। उसने देव को पकड़ना चाहा, पर देव - माया सिमट चुकी थी । हाथ में खम्भा आया । पत्नी श्यामा ने यहाँ उसे धर्म में स्थिर कर, उसकी भूल का प्रायश्चित्त करने को कहा । पत्नी के कहे पर उसने शास्त्र की विधि अनुसार दण्ड प्रायश्चित्त ग्रहण किया और पुनः धर्म में स्थित हो गया । जीवन के अन्तिम क्षणों में वह आयुष्य पूर्ण कर सौधर्म देवलोक में उत्पन्न हुआ । ने श्रावक धर्म के व्रत स्वीकार किये। आलभिया में धर्म-प्रचार करने के पश्चात् गाँव-गाँव घूमते पुनः राजगृही नगरी में पधारे। वहाँ प्रभु महावीर गुणशील चैत्य में पधारे। राजा श्रेणिक व रानी चेलना दर्शन करने आये । यहाँ अन्तकृद्दशा, वर्ग ७, अ. २ में वर्णित मंकाती, विक्रम, अर्जुन और काश्यप ने दीक्षा अंगीकार की । गाथापति मंकाती राज्यगृह का निवासी था । प्रभु महावीर के उपदेश से प्रभावित हो इसने पुत्र को घर-भार सौंपा। १६ वर्ष तक साधु-जीवन का पालन किया। मंकाती मुनि ने ग्यारह अंगों के अध्ययन के साथ-साथ गुणरत्न संवत्सर तप किया। केवलज्ञान प्राप्त कर विपुलांचल पर्वत पर मोक्ष पधारे। १३१ चुल्लशतक के साथ अनेक लोगों राजगृही निवासी विक्रम ने भी इसी प्रकार से साधु-जीवन ग्रहण किया। स्वाध्याय किया । गुणरत्र संवत्सर तप किया । अन्त समय विपुलांचल पर्वत से मोक्ष गमन किया। अर्जुनमाली की दीक्षा अर्जुनमाली की दीक्षा का प्रकरण जैन इतिहास का महत्त्वपूर्ण प्रकरण है। इन्हीं दिनों राजगृह में महत्त्वपूर्ण घटना घटी। अर्जुन नाम का एक माली यहाँ रहता था। वह रोजाना अपनी सुन्दर पत्नी के साथ बगीचे में जाता । फूल मालाएँ तैयार करता फिर उसके अधीन कर्मचारी उन मालाओं को बाजार में जाकर बेच आते। उस बगीचे में मुद्गरपाणी यक्ष का मन्दिर था । अर्जुन बचपन से के साथ उस यक्ष की पूजा, अर्चना, वन्दना करता । उसका भक्त था । वह हर सुबह स्नान कर पत्नी उसी राजगृही नगरी में ललित नाम का स्वछन्द, आवारा, क्रूर और व्यभिचारी रहता था । उसके मित्र उसी की तरह उसका अनुकरण करते थे। शहर में इन लोगों का आतंक था। यह लोग ललितगोष्ठी नाम से प्रसिद्ध थे, क्योंकि ललित इनका मुखिया था । एक दिन अर्जुनमाली फूलों को तोड़ने बाग में पहुँचा । उस दिन दुर्भाग्यवश यह छह बदमाश उस मन्दिर में आकर छिप गये, जहाँ अर्जुनमाली रोजाना पूजा के लिए आता था । ज्यों ही अर्जुनमाली ने सिर झुकाया, उन छह व्यक्तियों ने अर्जुनमाली को बाँध दिया। Jain Educationa International फिर उसके सामने सभी व्यक्तियों ने बारी-बारी से बंधुमति के साथ दुष्कर्म किया। अर्जुनमाली को अपनी पत्नी व देवता, दोनों पर गुस्सा आ गया। वह सोचने लगा- 'यह कैसा देव है जो अपने भक्त की रक्षा नहीं कर पा रहा। इसी के सामने, इसी के मन्दिर में मुझे बाँधा गया । फिर छह व्यक्तियों ने मेरी स्त्री से बारी-बारी कुकर्म किया है। यह तो पत्थर मूर्ति है। मैं तो बेकार इसकी पूजा बचपन से करता आ रहा हूँ । इसने मुझे क्या लाभ दिया है ?' सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र For Personal and Private Use Only १६१ www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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