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एक रात्रि वह धर्म-चिन्तन कर रहे थे कि मध्य रात्रि में एक देव प्रकट हुआ। उसके हाथ में चमचमाती तलवार थी। उसने कहा-“यदि तुम शील आदि ग्रहण किये व्रतों को भंग नहीं करोगे, तो मैं तुम्हारे सामने तुम्हारे तीनों पुत्रों के शरीरों को पहले इस तलवार से टुकड़े-टुकड़े करूँगा। फिर उन्हें गर्म कड़ाही में तल डालूँगा। उनके रक्त और माँस से तुम्हारे शरीर का सिंचन करूँगा।"
देवता की धमकियाँ भी श्रावक को धर्म-साधना से गिरा न सकीं। वह धर्म-साधना में लीन था। उधर देवता ने अपनी माया शुरू की। उसने अपनी शक्ति द्वारा तीनों पुत्रों को उसके सामने मारा, फिर हर पुत्र के शरीर के खण्ड-खण्ड कर पूर्व कथित रक्त से शरीर को सींचा।
चौथी बार देव गरजा। भयंकर अट्टहास करते हुए उसने कहा-“अब भी तू शील आदि व्रत नहीं छोड़ेगा तो मैं तुम्हारी माता भद्रा को तुम्हारे सामने मारूँगा और उबलते तेल में उसका रक्त-माँस पकाकर तुम्हारे शरीर को सिंचित करूँगा।"
ता घबरा गया। उसमें माता का मोह भाव जागत हआ। वह सोचने लगा-'यह परुष अनार्य है. दुष्ट है। पहले इसने मेरे तीनों पुत्रों को मेरी आँखों के सामने मार दिया। उनके टुकड़े-टुकड़े कर दिये। मेरा कर्त्तव्य है कि मैं इस पुरुष से अपनी माता की रक्षा करूँ।'
वह आसन से उठा और देवता को पकड़ने के लिए दौड़ा। देवता अन्तर्धान हो गया। अंधेरे में चुलनीपिता के हाथ में देव के स्थान पर खम्भा आया। वह उसे पकड़कर चिल्लाने लगा।
पुत्र की पुकार सुनकर माता भद्रा स्वयं आई। उसने कहा-"तुम्हारे तीनों पुत्र और मैं पूरी तरह सुरक्षित हूँ। लगता है तुम्हारी साधना में किसी देव ने उपसर्ग पैदा किया है। कषाय के कारण तुम उसे मारना चाहते हो। इस प्रवृत्ति से स्थूलप्राणातिपात विरमणव्रत और पौषधव्रत भंग हुआ है क्योंकि पौषधव्रत में तो अपराधी और निरपराधी दोनों प्रकार की हिंसा का त्याग है। इसलिए तुम दण्ड प्रायश्चित्त स्वीकार करो।" । ___ चुलनीपिता परम मातृ भक्त था। इसीलिए उसने अपने तीनों पुत्रों के मारे जाने की परवाह नहीं की। पर जब माता की बारी आई, तो वह देव को पकड़ने दौड़ा। उसने माता की आज्ञा को मानते हुए आलोचना द्वारा पापों का प्रायश्चित्त किया। ग्यारह प्रतिमाओं का पालन कर सौधर्म देवलोक में उत्पन्न हुआ।२७ सुरादेव श्रावक द्वारा व्रत ग्रहण
भगवान महावीर का समवसरण अभी वाराणसी के कोष्टक उद्यान में था। लोग अपनी आत्मा के कल्याणार्थ साधु व श्रावक के व्रत अंगीकार कर रहे थे। उनकी सभा में एक भक्त सुरादेव भी था जो अपनी धर्मपत्नी धन्या के साथ प्रभु के वचनामृत सुन रहा था। प्रभु महावीर के प्रति उसके मन में श्रद्धा उत्पन्न हो गई थी। वह १८ करोड़ स्वर्ण-मुद्राओं का स्वामी था। उसके ६ गोकुल थे। प्रभु महावीर के उपदेशों से प्रभावित होकर उसने प्रभु महावीर से श्रावक के १२ व्रत स्वीकार किये।
चुलनीपिता श्रावक की तरह सुरादेव भी धर्म-आराधना में लग गया। एक रात्रि जब वह धर्म-आराधना पौषधशाला में कर रहा था, तो एक मिथ्यात्वी देव आया। आते ही उसने धमकी दी-“हे मृत्यु को चाहने वाले ! इन शील आदि व्रतों को भंग कर दो। अगर तू ऐसा नहीं करेगा, तो मैं तुम्हारे तीन पुत्रों को मारकर खण्ड-खण्ड करूँगा। फिर उन्हें कड़ाही में उबालकर उनके रक्त-माँस से तुम्हारे शरीर को सिंचित करूँगा।" फिर देवता ने तीनों पुत्रों को मार दिया पर सुरादेव श्रावक देवता की धमकी के आगे नहीं झुका। वह धर्म में स्थिर रहा। देवता ने उसे चौथी बार धमकी देते हुए कहा-“मैं तुम्हारे शरीर में श्वास, कुष्ट आदि रोग पैदा करूँगा जिनके प्रभाव से तू जल्द मृत्यु को प्राप्त होगा।"
अब सुरादेव घबरा गया, क्योंकि उसने अपने पुत्रों की हत्या आँखों के सामने होती देखी थी। वह अंधेरे में उस दुष्ट देव को पकड़ने दौड़ा। देव अन्तर्धान हो गया। हाथ में खम्भे को पकड़कर चिल्लाने लगा।
सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र
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