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के मनोगत भावों को जाना। कहते हैं भक्त के वश में भगवान होता है। यह उक्ति सत्य सिद्ध हुई। प्रभु महावीर अपने भक्त का उद्धार करने उसके घर चल पड़े।
चम्पा से लेकर वीतभय पत्तन का रास्ता ७०० कोस का उग्र विहार था। भीषण गर्मी थी। योजनों तक गाँवों का नामोनिशान नहीं था। भोजन-पानी, साधु-साध्वियों को मिलना असंभव था। शायद प्रभु महावीर का यह सबसे लम्बा भ्रमण था। प्रभु महावीर विहार कर रहे थे। शिष्यों को भूख-प्यास सता रही थी। उस समय तिलों से भरी गाड़ियाँ जा रही थीं। गाड़ी वालों ने कहा-"आप इन तिलों को खाकर भूख मिटाइये।" _प्रभु महावीर ने अपने शिष्यों को ऐसा भोजन स्वीकार करने से मना कर दिया। इसका प्रमुख कारण था यद्यपि तिल साधु के लेने योग्य थे, पर यह भिक्षा साधु के ४२ दोषों की मर्यादा पूरी नहीं करती थी। फिर तिल अचित्त थे इस बात को वह स्वयं जानते थे। अन्य छद्मस्थ मुनि श्रमण इनको कैसे अचित्त समझते ? __यदि आज मैं इन तिलों को लेने की आज्ञा देता हूँ तो भविष्य में इस घटना को सामने रखकर सभी साधु सचित्त तिल भी लेने लगेंगे।
फिर आगे बढ़े; एक जल का बृहद् सरोवर था। उसमें जो पानी भरा था मिट्टी के सहयोग से स्वयं अचित्त हो गया था। साधु इसे भी काम में ले सकते थे। पर प्रभु महावीर ने इसे भी लेने की आज्ञा प्रदान नहीं की। क्योंकि सभी सरोवरों का पानी अचित्त नहीं होता। आज इस सरोवर के पानी का उपयोग साधुओं को करने दिया जाए, तो भविष्य में भी अन्य सचित्त जल सरोवरों के पानी का उपयोग भी प्रारम्भ हो जायेगा। प्रभु महावीर के इन्कार करने का मुख्य यही कारण था।२२
यह निश्चय धर्म से भी बढ़कर व्यवहार धर्म पर चलने की ओर आदेश था। इस पर अनेक परीषह-उपसर्ग आ रहे थे। प्रभु महावीर अनेक कष्टों को सहते हुए आगे बढ़ रहे थे। रास्ते में योग्य भिक्षा के अभाव के कारण अनेकों मुनिराज स्वर्ग सिधार गये।२३
शिवपल्ली की रेतीली भूमि में कोसों तक बस्ती का नामोनिशान न था। भगवान महावीर उसी बीहड़ मार्ग से पूर्व की ओर जा रहे थे। कोमल शरीर वाले शिष्यों को यही गर्मी मृत्यु का कारण बन रही थी। गौतम द्वारा किसान को प्रतिवोध ___वीतभय नगरी के रास्ते में चलते-चलते गणधर गौतम इन्द्रभूति ने एक किसान को हल जोतते देखा। किसान बूढ़ा हो चुका था। उसके बैल उससे भी ज्यादा बूढ़े थे। वह हल का भार भी सहन नहीं कर पा रहे थे। वह काम करने में असमर्थ थे। किसान इसी कारण से बैलों को पीट-पीटकर चमड़ी उधेड़ रहा था।
प्रभु महावीर ने अपने प्रथम शिष्य इन्द्रभूति को आदेश दिया-“जाओ, उन बैलों को पीटते किसान को धर्म-उपदेश दो।" गणधर गौतम ने प्रभु महावीर की आज्ञा को शिरोधार्य किया। वह किसान के पास आये और अपने मधुर स्वर में कहा-"भद्र ! तू इन बैलों को क्यों पीट रहा है? क्या इन्हें कष्ट नहीं होता?"
किसान ने गणधर गौतम को प्रणाम करने के पश्चात् कहा-"बाबा ! आपसे ज्यादा मुझे इन्हें पीटते कष्ट हो रहा है। यह बैल तो मेरी जान हैं, मुझे बेहद प्रिय हैं। पर मेरे पास दूसरी जोड़ी नहीं। यह बूढ़े होने के कारण नहीं चल पा रहे हैं। अगर ये न हों तो मैं और मेरा समस्त परिवार भूखा मर जाये।"
गौतम स्वामी को किसान की दशा पर करुणा आ गई। उन्होंने किसान को निर्ग्रन्थ प्रवचन सुनाया। निर्ग्रन्थ प्रवचन के प्रभाव से वह किसान गणधर गौतम का शिष्य बन गया। उसने अहिंसा के मार्ग पर चलने का व्रत लिया। __ अब दोनों गुरु शिष्य बन गये। गणधर गौतम ने कहा-“चलो भद्र ! हम अपने प्रभु के दर्शन करने चलें।"
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सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र
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