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वैभारगिरि पर्वत पर पहुंची। पुत्र के तप के प्रभाव के कारण कृश बनी काया को देखकर और समाधिमरण अवस्था में देखकर वह व्याकुल हो उठी। उस भद्रा ने सब प्रकार के दुःख देखे थे। यह दुःख बहुत दिल हिलाने वाला था। वह दहाड़ मारकर रोने लगी। तभी वहाँ राजा श्रेणिक आ गये। उसने मुनि को प्रणाम किया। माता को सांत्वना दी। शालिभद्र आयु पूर्ण कर सर्वार्थसिद्ध देवलोक में देव बने। इसी प्रकार धन्ना ने भी इसी लोक में देव आयुष्य बाँधा।१५
दोनों का सांसारिक जीवन जितना भोगों में डूबा था, उतना त्यागमय जीवन त्याग की उत्कृष्टता लिये हुए था।
प्रभु महावीर ने यह वर्षावास राजगृही में बिताया। हजारों प्राणियों का कल्याण किया। सत्तरहवाँ वर्ष (प्रभु महावीर का पंजाब-सिन्ध के क्षेत्र को पावन करना)
राजगृह का चातुर्मास सम्पन्न कर प्रभु महावीर अपने शिष्य-शिष्याओं के विशाल परिवार सहित चम्पा पधारे। चम्पानगरी में पूर्णभद्र नामक चैत्य था। यह चैत्य नगर से बाहर जंगल में था। प्रभु महावीर का समवसरण वहीं लगा।६ ___ वहाँ का राजा दत्त था। उसकी रानी रक्तवती थी। राजा व रानी विशाल शोभा यात्रा के साथ प्रभु महावीर के दर्शन को आये। प्रभु महावीर का प्रवचन सुना। प्रवचन सुनकर राजा बहुत प्रभावित हुआ। उसने प्रभु महावीर से प्रार्थना की"प्रभु ! मैं साधु बनने में असमर्थ हूँ, अभी आप मुझे श्रावक के व्रत प्रदान करें।"
प्रभु महावीर ने कहा-“देवानुप्रिय ! जैसी आपकी आत्मा को सुख हो, वैसा करो परन्तु शुभ कार्य में विलम्ब मत करो।"
उसके कुछ समय के पश्चात् प्रभु महावीर पुनः चम्पा पधारे। राजकुमार महाचन्द्र ने माता-पिता की आज्ञा से संयम स्वीकार किया। ग्यारह अंगों का स्वाध्याय किया। अन्त में एक मास का अनशन कर वह मृत्यु को प्राप्त हुये। वह सौधर्मकल्प में देवरूप में उत्पन्न हुए।१७ पंजाब के राजा उदायन की दीक्षा ___ उस समय सिन्धु-सौविर के अंतर्गत पंजाब की सीमा आ जाती थी। उसके आगे अर्ध-केकय देश था जिसमें कश्मीर, गंधार का क्षेत्र पड़ता था। कुरु देश की सीमा अम्बाला जिला तक थी और यह मेरठ जिले में समाप्त होती थी।
जधानी हस्तिनापर थी। इसी तरह का वर्णन सिन्ध-सौवीर देश का है। पहले यह एक देश था जिसकी राजधानी वीतभय पत्तन थी। पर प्रभु महावीर के बाद सिन्धु देश अलग हो गया सौवीर अलग। सिन्धु नदी दोनों की प्राकृत विभाजित रेखा थी। प्राचीन वीतभय पत्तन आज का भैरा है जो आजकल पाकिस्तान में पड़ता है।
प्रभु महावीर के समय वहाँ का राजा उदायन था। उसके विस्तृत राज्य के बारे में शास्त्रकार कहते हैं
सोलह बृहद् देश, तीन सौ तिरेसठ नगर और आगर उसके अधीन थे। उदायन वहाँ का राजा था। चण्डप्रद्योतन आदि दस मुकुटधारी महापराक्रमी राजा उसके अधीन थे।१८ वैशाली गणराज्य प्रमुख चेटक की सुपुत्री प्रभावती उसकी महारानी थी। अभीचिकुमार उसका पुत्र था और केशीकुमार उसका भानजा था।१९
प्रभावती स्वयं निग्रंथों की सेविका थी। उसने श्राविका के व्रत ग्रहण किये हये थे।२० अपने जप-तप के प्रभाव से मरकर वह देवलोक में उत्पन्न हुई थी। उसने अपने पति को प्रतिबोध देकर श्रमणोपासक बनाया था। वह जीव-अजीव का ज्ञाता हो गया था। इससे पहले राजा तापसों का भक्त था।२१
एक समय राजा अपनी पौषधशाला में बैठा धर्म आराधना कर रहा था। रात्रि के समय धर्म-जागरण करते समय उसके मन में विचार उठे-'वह ग्राम-नगर धन्य हैं जहाँ प्रभु महावीर पधारते हैं। यदि किसी समय प्रभु महावीर मेरी नगरी को पवित्र करें. तो मैं उनके चरणों में प्रव्रज्या ग्रहण
प्रभु महावीर सर्वज्ञ, सर्वदर्शी तीर्थंकर थे। उनसे संसार के किसी जीव की बात छिपी नहीं थी। प्रभु महावीर का जन्म ही मानव जाति के उद्धार के लिये हुआ था। उस समय प्रभु महावीर चम्पानगरी में विराजमान थे। उन्होंने उदायन
सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र
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