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________________ धन्ना के भी सात पत्नियाँ थीं। सभी पत्नियाँ देखती रह गईं। अन्य पारिवारिक जनों ने भी बहुत प्रयत्न किया, सभी समझाने में असफल रहे। धन्ना सीधा अपने ससुराल शालिभद्र के यहाँ पहुँचा। उसने पुकारते हुए कहा-“यह कैसी कायरता है; अगर साधु बनना है तो सभी कुछ एक ठोकर से त्यागो। देखो, मैंने भी ऐसा किया है। अब बहुत देर हो चुकी है। जीवन की क्षण-भंगुरता को पहचानो। चलो, हम दोनों प्रभु महावीर के चरणों में दीक्षा ग्रहण करें।" शालिभद्र ने अपने बहनोई का सुझाव मानते हुए समस्त पत्नियों का त्याग कर दिया। माता भद्रा ने न चाहते हुए अपने प्रिय पुत्र शालिभद्र को साधु बनने की आज्ञा प्रदान की। दोनों प्रभु महावीर के समवसरण में पहुँचे। प्रभु महावीर को वन्दना की और साधु बन गये। धन्ना और शालिभद्र का भिक्षु जीवन उत्कृष्ट था। जैन इतिहास में अभयकुमार जैसी किसी की बुद्धि नहीं मानी जाती। शालिभद्र-जैसा धनवान नहीं माना जाता। धन्ना-जैसा तपस्वी नहीं माना गया। दोनों मिलकर तपस्या, स्वाध्याय द्वारा अपनी आत्मा को निर्मल करते, उनके लगातार मासिक, द्विमासिक व त्रैमासिक तप चलते रहते। ___ एक बार प्रभु महावीर अपने श्रीसंघ सहित राजगृह पधारे। शालिभद्र भी उनके साथ था। उनके एक महीने का पारणा था। उन्होंने भगवान महावीर को नमस्कार किया और विधि अनुसार भिक्षा ग्रहण करने की आज्ञा माँगी। प्रभु महावीर ने कहा-“देवानुप्रिय ! आज तुम्हारा पारणा तुम्हारी माता के हाथ से होगा।' ___ मुनि शालिभद्र पारणा हेतु अपने ही घर पहुंचे। माता व अन्य लोगों ने कोई ध्यान न दिया। इसका प्रमुख कारण यह था कि शालिभद्र शरीर तप के कारण इतना सूख गया था कि कोई भी उन्हें पहचानने में असमर्थ था। शालिभद्र बिना भिक्षा ग्रहण किये वापस आ रहे थे कि उसी समय रास्ते में उन्हें एक ग्वालिन मिली। मुनि को देखकर उसके हृदय में वात्सल्य भाव उमड़ आया। वह रोमांचित हो गई। उसके स्तनों से दूध की धारा निकलने लगी। उसी ग्वालिन ने मुनि शालिभद्र से दही लेने का प्रेमपूर्वक आग्रह किया। मुनि भिक्षा लेकर स्व-स्थान पर आये। पारणा किया। फिर प्रभु महावीर से पूछा-“आप कहते थे कि मेरा पारणा मेरी माता के यहाँ से होगा। पर उन्होंने मुझे कोई भिक्षा नहीं दी। यह भिक्षा मुझे एक अहीरन ने दी है।'' सर्वज्ञ महावीर ने कहा-“भद्र ! यही तेरी पूर्वभव की माता थी। तू पूर्वजन्म में इसका पुत्र था। उस जन्म में यह एक गरीब महिला थी। इसका पति नहीं था। एक बेटा था। लोगों के घरों में काम-काज कर गुजारा करती थी। घर में पीछे इसका बेटा पशु चराता। एक बार कोई त्यौहार था। सारे गाँव में खीर बनी थी। एक इस अहीरन का घर था जिसमें खीर का अभाव था। इसी अवस्था में तुम्हारा मन खीर खाने को ललचा रहा था। उस माता ने पड़ोसियों से दूध व चावल माँगकर तुम्हें खीर बनाकर दी। खीर को थाली में पलटकर वह काम पर चली गई। थाली तुम्हारे सामने थी। खीर गर्म थी। तुम खीर को ठण्डा करने के प्रयास में खीर को किनारों की ओर कर रहे थे। ___ इस अवसर पर एक मासखमण के तपस्वी मुनिराज आ पहुँचे। तुमने स्वयं भूखे रहकर उस खीर को मुनिराज को अर्पण कर दिया। इसी सुपात्रदान के कारण तुम्हें ऐसी ऋद्धि व सुख-सम्पदा के सब साधन मिले। अब दान देने वाला बालक आज का शालिभद्र मुनि है। अहीरन तुम्हारी पूर्वभव की माता है। तुम्हें देखते ही उसके मन में जो मातृभाव जागृत हुआ, यह तुम्हारे पूर्वभव के संबंधों के कारण हुआ है। शालिभद्र प्रभु महावीर के समाधान से संतुष्ट हुए। शालिभद्र का समाधिमरण प्रभु महावीर की आज्ञा लेकर शालिभद्र ने वैभारगिरि पर्वत पर जाकर अनशन किया। भद्रा माता दर्शन हेतु आई। प्रभु महावीर ने दीक्षा से लेकर अब तक बीती सारी घटनाएँ माता भद्रा से कह डालीं। माता को अपार वेदना हुई। वह १५४ सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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