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इन्द्रभूति गौतम ने भगवान से प्रश्न किया-“प्रभु ! क्या आनंद श्रावक श्रमण बनने में समर्थ है ?"
प्रभु महावीर ने कहा-गौतम ! ऐसा नहीं है। श्रमणोपासक आनन्द साधु नहीं बनेगा। वह लम्बे समय तक इन व्रतों की आराधना करेगा। अंतिम समय अनशनपूर्वक शरीर-त्याग, सौधर्मकल्प नामक स्वर्ग में अरुणाभ विमान में उत्पन्न होगा। इस देवलोक में उसकी आयु चार पल्योपम की है।" - इस प्रकार प्रभु महावीर ने वाणिज्यग्राम के आस-पास के ग्रामों में धर्म-प्रचार किया। फिर वर्षावास का समय बिताने वाणिज्यग्राम में आ गये। प्रभु महावीर का पन्द्रहवाँ चातुर्मास इसी वाणिज्यग्राम में सम्पन्न हुआ जहाँ अनेक भव्य
7 कल्याण किया। वाणिज्यग्राम का वर्षावास पूरा करने के बाद आप पूनः मगध देश में पधारे। सोलहवाँ वर्ष
प्रभ महावीर वाणिज्यग्राम से मगध देश की राजधानी राजगही पधारे। वहाँ आपका समवसरण गणशील चैत्य में लगा। राजा श्रेणिक अपने राजकमारों, राजकमारियों, सैनिकों. महारानियों से घिरा हआ बडी शान के साथ प्रभ महावीर को वन्दन करने लगा। उसने प्रभु महावीर का प्रवचन सुना।
उस समय प्रभु महावीर के प्रमुख गणधर इन्द्रभूति गौतम ने प्रभु महावीर से काल के संबंध में प्रश्न पूछे जिनका विवरण भगवतीसूत्र के शतक ६, उद्देशक ७ में उपलब्ध है। धना-शालिभद्र की प्रव्रज्या ___इसी वर्षावास में धन्ना शालिभद्र ने प्रव्रज्या ग्रहण की थी। शालिभद्र राजगृह के ऐसे परिवार में संबंध रखता था, जिसकी धन सम्पत्ति के सामने मगध सम्राट श्रेणिक की सम्पत्ति तुच्छ थी। वह धनाढ्य गोभद्र का पुत्र था। उसकी माता का नाम भद्रा तथा बहिन का नाम सुभद्रा था। सुभद्रा की शादी धन्ना से सम्पन्न हुई थी। ____ जब शालिभद्र बहुत छोटा था, तो उसके पिता ने प्रभु महावीर से श्रमण दीक्षा ग्रहण की थी। वह मरकर देवलोक में उत्पन्न हआ था।१२ शालिभद्र मात-स्नेह में पला था। उसकी माता भद्रा सारा व्यापार स्वयं देखती थी।
गोभद्र जो देव बना था, वह अपने पुत्र और पुत्र-वधुओं के सुख-भोग के लिए रोजाना ३३ पेटियाँ वस्त्र-आभूषण प्रदान करता था। उनका महल सात मंजिला था। उस महल में मुनीमों, नौकरों के आवास भी थे। अनेक दास-दासियाँ रहते थे। इसी महल की सातवीं मंजिल पर रात-दिन सुख-भोग में तल्लीन शालिभद्र रहता था।
जीवन में कुछ घटनायें ऐसी घटती हैं कि जीवन को पलटकर रख देती हैं। माता भद्रा जहाँ आदर्श माता थीं वहाँ वह देश-भक्ति की जीती-जागती प्रतीक थीं। उसे यह पसंद नहीं था कि कोई उसके देश के राजा व देश के प्रति अपमानजनक भाषा बोले। आज हम स्त्री जाति की जागृति की बात करते हैं। आज से २,५०० साल पहले प्रभु महावीर का प्रभाव था कि स्त्रियाँ धर्म के साथ-साथ व्यापार के क्षेत्र में भी किसी सीमा तक आ चुकी थीं। यह नारी जागृति का सुन्दर उदाहरण है। उस एक ही घटना ने शालिभद्र व धन्ना के समस्त परिवार को भोग से त्याग का मार्ग दिखा दिया।
एक बार नेपाल देश से रत्नकम्बल बेचने वाले आये। उन व्यापारियों के पास १६ रत्नकम्बल थे। हर कम्बल की कीमत सवा लाख स्वर्ण-मुद्राएँ थीं। सारे राजगृह में उनका एक कम्बल भी न बिका। व्यापारी थक चुके थे। फिर वह मगध सम्राट श्रेणिक के दरबार में गये। राजा कीमत सुनकर चुप हो गया। उसकी प्रिय रानी चेलना कम्बल की माँग कर रही थी, पर अधिक कीमत के कारण राजा श्रेणिक खरीद न पाये। ___ आखिरी आशा भी समाप्त हो गई। व्यापारियों ने वापस जाने का निर्णय लिया। सुबह का समय था। व्यापारी आपस में बातें कर रहे थे-"यह कैसा शहर है? कैसा देश है ? यहाँ के सब लोग गरीब हैं। यहाँ की प्रजा के साथ-साथ राजा भी गरीब है जो एक कम्बल खरीदने में असमर्थ है।"
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सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र
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