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________________ देवानंदा की यह हालत देखकर गणधर गौतम इन्द्रभूति ने प्रभु महावीर से पूछा-“भगवन् ! देवानंदा आपको देखकर रोमांचित क्यों हो गई है ? उसके स्तनों से दूध की धारा क्यों बह रही है ?" । प्रभु महावीर ने कहा-“गौतम ! देवानंदा ब्राह्मणी मेरी माता हैं। मैं इस देवानंदा ब्राह्मणी का पुत्र हूँ।'४ भगवान महावीर ने गणधर गौतम को अपने गर्भ-परिवर्तन की घटना बताई। आचार्य देवेन्द्र मुनि जी अपनी पुस्तक 'महावीर : एक अनुशीलन' के पृष्ठ ४३० पर लिखते हैं--"इतने समय तक भगवान (महावीर) के गर्भ-परिवर्तन की बात किसी को ज्ञात नहीं थी। देवानंदा और ऋषभदत्त ब्राह्मण के साथ सारी धर्मसभा इस घटना को सुनकर आश्चर्यचकित हो गई।" ___इस बात का ऋषभदत्त ब्राह्मण व देवानंदा ब्राह्मणी पर गहरा प्रभाव पड़ा। दोनों ने गृह त्यागकर प्रभु महावीर के चरणों में प्रवज्या ग्रहण की। दीक्षा से पहले उन्होंने शरीर पर पहने वस्त्राभूषण त्याग दिये फिर पंच मुष्टिक लोच किया और वन्दन करते हुए दोनों प्रभु के समक्ष आये। ऋषभदत्त ने प्रार्थना की-"प्रभु ! यह संसार जल रहा है-जरा, मरण, रोग, शोक आदि विपदाओं की आग से यह संसार चारों ओर से प्रज्वलित हो रहा है। प्रभु, मुझे इस आग से बचाइये।" ऋषभदत्त ब्राह्मण को प्रभु महावीर ने अपने श्रमणसंघ में शामिल कर लिया। दीक्षा के पश्चात् मुनि ऋषभदत्त ने ग्यारह अंगों का अच्छी तरह अध्ययन किया। छट्टम, अट्ठम, दशम आदि अनेक प्रकार के तप किये। लम्बा समय साधुजीवन में गुजारा। अंतिम समय एक मास की संल्लेखना कर मोक्ष पद प्राप्त किया। उसकी पत्नी देवानंदा ने भी चन्दनबाला के सान्निध्य में दीक्षा ग्रहण की थी। उसने भी ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। उसने भी लम्बी-लम्बी तपस्याएँ कर्मक्षय हेतु की। फिर चन्दनबाला की आज्ञा से संल्लेखना स्वीकार की। इस प्रकार नाना तपस्याओं द्वारा कर्मक्षय करती हुई मोक्ष की अधिकारी बनी।५। जमाली-प्रियदर्शना की प्रव्रज्या जमाली एक क्षत्रिय राजकुमार था जो सांसारिक रिश्ते से प्रभु महावीर की बहिन सुदर्शना का पुत्र था। प्रभु महावीर का भानेज था। प्रियदर्शना प्रभु की सुपुत्री थी। प्रभु महावीर की इस सुपुत्री की शादी जमाली राजकुमार से हुई थी। ___कुछ ग्रंथों में प्रभु महावीर के ब्राह्मणकुण्डग्राम के स्थान पर क्षत्रियकुण्डग्राम पधारे का वर्णन है पर दोनों परम्पराओं में उनके पधारने का स्थल बहुशाल चैत्य है जो दोनों गाँवों-नगरों के बीच पड़ता था। __ प्रभु महावीर का उपदेश सुनने जमाली राजकुमार बहुशाल चैत्य में आया। प्रभु महावीर को वन्दन किया। जमाली प्रतिबुद्ध हुआ। उसने प्रभु महावीर से कहा-"प्रभु ! आपने जो कहा है वही वस्तुतः सत्य है। मुझे निग्रंथ प्रवचन पर श्रद्धा हो गई है। मैं साधु बनना चाहता हूँ। आप मुझे शरण दीजिये।" प्रभु महावीर ने कहा-“देवानुप्रिय ! जैसे आपकी आत्मा को सुख हो, वैसा करो। पर शुभ कार्य में प्रमाद मत करो।" जमाली राजमहल आया। माता-पिता से आज्ञा माँगने लगा। माता-पिता ने उसे बहुत समझाया। जमाली ने एक भी न सुनी। उसने ५०० राजकुमारों के साथ दीक्षा ग्रहण की।६ साथ में प्रभु महावीर की सुपुत्री व जमाली की पत्नी भी १,००० स्त्रियों के साथ साध्वी बनी। बाद में जमाली निन्हव (प्रवचन के विरोध में चलने वाला) बना। वह प्रभु महावीर का विरोधी हो गया। इसका वर्णन यथा स्थल पर हम करेंगे। कई आचार्यों की मान्यता है कि इस सभा में प्रभु महावीर के बड़े सांसारिक भ्राता राजा नंदीवर्द्धन भी आये थे। उन्होंने भी प्रभु महावीर का उपदेश सुना था। प्रभु महावीर को वन्दन कर वह घर लौटे थे। __ प्रभु महावीर ने यह वर्षावास वैशाली में किया। जैसे पहले वर्णन किया जा चुका है यहाँ का गण-प्रमुख चेटक श्रमणोपासक था। वैशाली की जनता के लिए प्रभु महावीर का नाम नया नहीं था। वैशाली की जनता ने प्रभु महावीर के वर्षावास से अभूतपूर्व लाभ उठाया। । चार १४६ सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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